Thursday, April 18, 2024
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आखिर चीन कैसे फंसाता है कर्ज के जाल में अन्य देशों को? जानिए!

आपने श्रीलंका और पाकिस्तान की हालत तो चीन की वजह से देखी ही होगी! श्रीलंका के दिवालिया होने के बाद पाकिस्तान भी तेजी से आर्थिक संकट में फंसता जा रहा है। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड निचले स्तर पर है। इस कारण अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी पाकिस्तान को राहत पैकेज देने से पहले कड़ी शर्तों की बौछार कर दी है। इन दोनों देशों की खराब हुई आर्थिक सेहत के पीछे इनका सदाबहार दोस्त चीन का हाथ है। पिछले कई साल से दुनियाभर के एक्सपर्ट चीनी कर्ज के जाल को लेकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों को चेतावनी देते रहे, लेकिन श्रीलंका और पाकिस्तान के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। इसी कारण चीन श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे कमजोर देशों में अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत अरबों डॉलर मूल्य की परियोजनाओं को हासिल करने में कामयाब रहा। श्रीलंका और पाकिस्तान पर कर्ज का बोझ इतना ज्यादा बढ़ गया है कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं भी राहत पैकेज जारी करने से हिचक रही हैं।

दिवालिया के कगार पर पहुंचाया

पाकिस्तान और श्रीलंका में आर्थिक संकट कई कारणों का मिला जुला परिणाम है। इसमें कुशासन से लेकर कोरोना महामारी का बड़ा हाथ है। हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन के कर्ज ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चीन के बीआरआई कार्यक्रम की जब अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने आलोचना की तब भी श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देश चौकन्ने नहीं हुए। अमेरिका ने कहा था कि चीन बीआरआई के जरिए विकासशील देशों को अपने ऊपर अधिक निर्भर बनाने के लिए डेब्ट डिप्लोमेसी का इस्तेमाल कर रहा है। हालांकि, चीन ने इस तरह के आरोपों का खंडन किया और कहा था कि इस परियोजना ने विकासशील देशों को बहुत जरूरी बजट उपलब्ध करवाया है।चीन के खोखले दावों ने न केवल श्रीलंका और पाकिस्तान को कर्ज के जाल में फंसा दिया, बल्कि इन देशों को अरबों डॉलर की अधूरी परियोजनाओं के साथ भी छोड़ दिया। अब पहले से ही कंगाली से जूझ रहे ये दोनों देश अपने दम पर अरबों डॉलर की परियोजनाओं में एक ईंट भी नहीं रख सकते हैं। ऐसे में मजबूरी में उन्हें हर कदम पर चीन की मदद लेनी होगी। अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट में एक सीनियर फेलो माइकल रुबिन ने कहा कि एक के बाद एक पाकिस्तान के राजनेता आर्थिक सुधारों से बचते रहे। इसका एक कारण यह था कि उनका मानना था कि चीन की बनाई परी कथाओं की कहानियों को स्वीकार करना कहीं अधिक आसान है। पाकिस्तान के लिए आर्थिक सहायक बनने से दूर चीन ने तो इस देश को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के जाल में उलझा दिया।

पाकिस्तान की तरह ही चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के जरिए श्रीलंका को भी ठगा। इन परियोजनाओं में से अधिकांश हंबनटोटा जिले में धूल फांक रही हैं। हंबनटोटा बंदरगाह दक्षिणी श्रीलंका में पूर्व-पश्चिम समुद्री मार्ग के करीब स्थित है। इस बंदरगाह का निर्माण 2008 में शुरू हुआ था, जिसके लिए चीन ने लगभग 1.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कर्ज दिया था। इस बंदरगाह के विकास को लेकर पहले तो चीन ने श्रीलंका को खूब सपने दिखाए। चीन ने कहा कि यह बंदरगाह हिंद महासागर से होकर गुजरने वाले महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग पर स्थित है। लेकिन, श्रीलंका को इस बंदरगाह से रत्ती भर भी फायदा नहीं हुआ। यही कारण था कि श्रीलंकाई सरकार ने कर्ज चुकाने के डर से जान बूझकर इस बंदरगाह को 99 साल की लीज पर चीनी कंपनी को सौंप दिया।

हंबनटोटा बंदरगाह के पास ही राजपक्षे हवाई अड्डा है। इसका निर्माण चीन ने 200 मिलियन डॉलर की कर्ज पर किया था। इस हवाई अड्डे का इस्तेमाल इतना कम किया जाता है कि एक समय में यह अपना बिजली का बिल भी चुकाने में सक्षम नहीं था। जिसके बाद से इस हवाई अड्डे को भी बिना इस्तेमाल वैसे ही छोड़ दिया गया। अब चीनी कंपनिया अपने फायदे के लिए इन हवाई अड्डों का इस्तेमाल तो करती हैं, लेकिन कर्ज की राशि में कोई रियायत नहीं दी है। यही कारण है कि चीन का कर्ज चुकाने के चक्कर में श्रीलंका अपना पूरा विदेशी मुद्रा भंडार खाली करवा बैठा। इतना ही नहीं, उसकी रही सही कसर कोरोना महामारी और देश की खराब राजनीतिक हालात ने पूरी कर दी।

ठीक इसी तरह चीन ने सीपीईसी परियोजना को भी अब तक पूरा नहीं किया है। पाकिस्तानी सरकार के अनुसार, सीपीईसी परियोजनाएं या तो समय से पीछे चल रही हैं या अभी तक शुरू नहीं हुई हैं। मई में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्वादर में अब तक 15 में से सिर्फ तीन प्रोजेक्ट ही पूरे हो पाए हैं। सीपीईसी प्राधिकरण के अनुसार, पानी की आपूर्ति और बिजली उत्पादन सहित 2 अरब डॉलर तक की एक दर्जन परियोजनाएं अधूरी हैं।

पाकिस्तान पर चीन का कर्ज

भले ही परियोजनाएं अधूरी हैं या अधर में हैं, चीन पर बकाया कर्ज वर्षों से बढ़ता जा रहा है। पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय से जारी दस्तावेजों के अनुसार, जून 2013 में पाकिस्तान का कुल सार्वजनिक और सार्वजनिक रूप से गारंटीकृत बाहरी कर्ज 44.35 अरब डॉलर था, जिसमें से सिर्फ 9.3 फीसदी चीन का बकाया था। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, अप्रैल 2021 तक, यह विदेशी ऋण बढ़कर 90.12 बिलियन डॉलर हो गया था, जिसमें पाकिस्तान पर चीन कर्ज कुल विदेशी कर्ज का 27.4 फीसदी था। वास्तव में, पाकिस्तान को अगले तीन वर्षों में चीन को आईएमएफ की बकाया राशि के दोगुने से अधिक चुकाने की जरूरत है।

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