Friday, March 29, 2024
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आखिर कौन है गुजरात का डॉन?

आज हम आपको गुजरात के डॉन की कहानी सुनाने जा रहे हैं! अपराध से राजनीति में कदम रखने वाले नेता सिर्फ उत्तर प्रदेश या बिहार में ही हैं। गुजरात में भी ऐसे कई नेता हुए जिन्होंने अपराध की काली दुनिया से राजनीति की सफेदपोश दुनिया में अपनी जगह बनाने की कोशिश की। इनमें से ही एक एक नाम है- अब्दुल लतीफ। वो अब्दुल लतीफ जो भारत की मोस्ट वांटेड क्रिमिनल लिस्ट में तो शामिल था ही, उसकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दाऊद इब्राहिम भी उसे सिरदर्द समझता था।गुजरात के डॉन अब्दुल लतीफ का जन्म अहमदाबाद के दरियापुर इलाके में हुआ। बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले अब्दुल लतीफ का बचपन काफी कमियों में बीता। आठ-भाई बहनों वाले परिवार में पिता की कमाई से बड़ी मुश्किल से घर चल पाता। हालांकि पिता ने अब्दुल लतीफ को पढ़ाना चाहा, लेकिन परिवार की आर्थिक हालात अच्छे न होने की वजह से 12वीं के बाद उसने स्कूल जाना छोड़ दिया।

घर में इतनी गरीबी देखी कि अब्दुल लतीफ ने इसे दूर करने की कसम खा ली। उसने तय कर लिया कि चाहे जैसे भी हो, लेकिन आगे की ज़िंदगी गरीबी में नहीं बिताएगा। फिर शुरू हुआ गलत राह में आगे बढ़ने का सिलसिला। सत्तर के दशक की शुरुआत में ही अब्दुल लतीफ ने अपराध जगत में कदम रख दिया। शुरुआत की गैर-कानूनी तरीके से देसी शराब सप्लाई करने से। अस्सी के दशक में गुजरात में देसी शराब का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा था और इसलिए अब्दुल भी इसमें कूद पड़ा।अब्दुल लतीफ ने राजस्थान के उदयपुर में भी कई शराब भट्टियों में पैसा लगाया। वो अपने काले कारोबार के जरिए देश के दूसरे राज्यों में भी अपने पांव पसारना चाहता था और हुआ भी ऐसा ही। इस काले कारोबार से अब्दुल लतीफ ने जमकर पैसा कमाया, लेकिन ये तो अपराध की दुनिया में महज एक शुरुआत थी। ये शुरुआत थी गुजरात का माफिया डॉन बनने की। ये शुरुआत थी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के लिए मुसीबत बनने की।

थोड़े ही समय में अवैध शराब के कारोबारियों की लिस्ट में अब्दुल का नाम सबसे ऊपर हो चुका था। इस कारोबार से ढेर सारा पैसा कमाने के बाद अब्दुल लतीफ के कदम क्राइम की दलदल में में धंसते ही चले गए। अब्दुल लतीफ का अगला पड़ाव था हथियारों की तस्करी। शराब के कारोबार में अपना नाम बनाने के बाद अब्दुल का कई शातिर अपराधियों के साथ उठना-बैठना हो गया था जिसका फायदा उन्हें हथियारों की तस्करी में मिला। अस्सी के दशक तक वो गुजरात में अपराध की दुनिया का जाना-माना नाम बन चुका था। हत्या, अपहरण, फिरौती और रंगदारी जैसे कई मामलों में अब्दुल के खिलाफ मामले दर्ज हुए।

बाकी सभी डॉन माफियाओं की तरह अब्दुल लतीफ एक वर्ग के लिए मसीहा के रूप में भी उभरा। गरीबी की जिंदगी को करीब से देख चुका अब्दुल लतीफ जरूरतमंद लोगों की मदद करता। लड़कियों की शादियां करवाना, लोगों का कर्ज उतारना, गरीबों को पढ़ाई के लिए पैसा देना… इन सब कामों में भी लतीफ अक्सर आगे रहता। अहमदाबाद में लतीफ के चाहने वालों की भी कमी नहीं थी। यही वजह थी कि उसने जेल से ही राजनीति में कदम रखने का भी मन बना लिया। 1986-87 में गुजरात नगरपालिका चुनावों में अब्दुल ने पांच सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारे। कालूपुर, शाहपुर, दरियापुर, जमालपुर और राखांडा नगरपालिका सीट पर अब गुजरात के माफिया डॉन अब्दुल का कब्जा था।

राजनीति में अब्दुल लतीफ ने अपनी जगह तो बना ली, लेकिन अपराध से उसका मन अब तक नहीं भरा था। 1990 के आसपास वो गुजरात में इतना पावरफुल हो चुका था कि मुंबई में अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद को भी खटकने लगा था। दरअसल अब्दुल ने दाऊद के एक दुश्मन को पनाह दे दी। गरीबी में पैदा हुआ अब्दुल अब तक बेहद स्टाइलिश ज़िंदगी जीने लगा था। हाथ में हर वक्त सिगरेट और उसकी सफेद फिएट कार उसकी पहचान बन चुकी थी। इलेक्शन जीतने के बाद उसका रुतबा गुजरात में और बढ़ गया था। सुप्रीम कोर्ट से उसे जमानत भी मिल गई थी।

दाऊद इब्राहिम को भी अब्दुल लतीफ की ताकत का अंदाजा हो चुका था। कहते हैं नब्बे की शुरुआत में ही दाऊद ने भी अब्दुल से दोस्ती करने का मन बना लिया और इसलिए अब्दुल को दुबई बुलाया गया। दोनों की मुलाकात दुबई में सफल रही थी। कुछ वक्त पहले के दुश्मन अब दोस्त बन चुके थे। लेकिन दोनों की ये दोस्ती मुंबई के ही एक और क्रिमिनल शाहजादा को पसंद नहीं आ रही थी। अब्दुल के दुबई से लौटने के बाद शाहजादा और अब्दुल के बीच दुश्मनी काफी बढ़ गई थी। अक्सर इनके गैंगवार की खबरें सामने आती रहतीं।

एक बार शाहजादा गुजरात में एक शराब कारोबारी हंसराज के साथ राधिका जिमखाना में बैठा हुआ था, तभी अब्दुल लतीफ के गैंग ने वहां गोलीबारी शुरू कर दी। इस घटना में शाहजादा समेत नौ लोगों की मौत हो गई। गुजरात पुलिस अब अब्दुल के पीछे पड़ गई थी। वो पुलिस से बचता फिर रहा था। उस वक्त के कांग्रेस नेता रऊफ वल्लीउल्लाह भी किसी भी कीमत पर अब्दुल को सजा दिलवाना चाहते थे। वो सबसे बचता फिर रहा था। उस वक्त भी अब्दुल की मदद दाऊद ने ही की। बचने के लिए अब्दुल एक फिर दुबई भाग गया। दुबई में ही अब्दुल ने कांग्रेस नेता रऊफ वल्लीउल्लाह की हत्या की प्लानिंग की। बाद में 1992 में अब्दुला के गैंग के दो शार्प शूटर्स ने रऊफ वल्लीउल्लाह को गोलियों से भून डाला।अब्दुल के लिए अब गुजरात में रहना मुश्किल होता जा रहा था। उस पर टाडा और रासुका जैसे कठोर कानून की धाराएं लग चुकी थीं। इसलिए उसने देश छोड़कर दुबई में रहना शुरू किया। वो वहां से पाकिस्तान भी गया जहां उसकी मुलाकात टाइगर मेमन से भी हुई। कहते हैं 1993 मुंबई धमाकों में हथियार सप्लाई के काम में अब्दुल ने दाऊद की मदद की थी। मुंबई हमलों के बाद तो अब्दुल मोस्ट वांटेड क्रिमिनल की लिस्ट में शामिल हो चुका था। वो पुलिस से छुपता फिर रहा था। माना जा रहा था कि वो पाकिस्तान भाग गया है। हालांकि 1995 में गुजरात एटीएस ने अब्दुल लतीफ को दिल्ली से गिरफ्तार किया।

अब्दुल लतीफ को गुजरात की साबरमती जेल में डाला गया जहां दो साल तक वो बंद रहा। हालांकि, 29 नवंबर 1997 में उसने पुलिस की गिरफ्त से भागने की कोशिश की। यह उसकी सबसे बड़ी गलती थी। पुलिस ने अब्दुल लतीफ को एनकाउंटर में मार गिराया। कभी किसी के लिए मसीहा, तो कभी राजनीति में अपनी पहचान बनाने का ख्वाब देखने वाला गुजरात का डॉन अपने आखिरी वक्त में देश का सबसे बड़ा दुश्मन बन चुका था। दाऊद से मुलाकात के बाद अब्दुल लतीफ की जिंदगी पूरी तरह बदल गई थी और उसका अंत भी वैसा ही हुआ जैसा होना चाहिए था।

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