Friday, March 29, 2024
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आखिर कौन होगा गुजरात का विजेता?

गुजरात का विजेता कौन होगा यह तो वक्त ही बताएगा! अहमदाबाद के बाद गुजरात सर्वाधिक सीटें सूरत में हैं। सूरत पिछले तीन दशक से बीजेपी का मजबूत गढ़ बना हुआ है। इसकी बड़ी वजह है कि यहां पर डबल नहीं बल्कि ट्रिपल इंजन की सरकार। लेकिन पिछले 20 से 22 दिन में सूरत में जिस परिस्थिति का निर्माण हुआ है, उससे बीजेपी के इस मजबूत गढ़ में सेंधमारी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। फरवरी, 2021 में आम आदमी पार्टी ने नगर निगम के चुनावों में 27 सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया था। ऐसे में जब पहले फेस की वोटिंग में अब सिर्फ सात दिन बाकी रह गए हैं तो सूरत में चुनावी पारा चढ़ रहा है।सूरत में चुनावी पारा चढ़ाने का पूरा श्रेय आम आदमी पार्टी को है। आम आदमी पार्टी ने सूरत की तीन सीटों पर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। इनमें वारछा रोड, कतारगाम और करंज की सीटें शामिल हैं। इनमें से वराछा रोड सीट पर बेहद कड़े मुकाबले की संभावना देखी जा रही है, इसके बाद कतारगाम सीट हैं। वारछा रोड से बीजेपी ने पूर्व मंत्री किशोर कनाणी और कतारगाम से वीनू मोरडिया को उतारा है, जबकि आप की तरफ ये यहां पर अल्पेश कथीरिया और गोपाल इटालिया मुकाबले में हैं। सूरत में अगर बीजेपी की सीटों की संख्या कम होती है तो प्रदेश अध्यक्ष सी आर पाटिल, गृह राज्य मंत्री हर्ष संघवी और दर्शना जरदोश के कद पर असर पड़ेगा। तो वहीं आप ने हैवीवेट नेता गोपाल इटालिया, मनोज सोरठिया और अल्पेश कथीरिया सफल नहीं रहे तो निश्चित तौर पर उनकी कद भी प्रभावित होगा।

सूरत से केंद्रीय रेल राज्य मंत्री दर्शना जरदोश सांसद हैं, तो शहर की मजूरा सीट से विधायक हर्ष संघवी प्रदेश सरकार में गृह राज्य मंत्री का दायित्व संभाल रहे हैं। इसके अलावा सूरत जिला सीधे बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल से जुड़ा हुआ है। वे नवसारी से सांसद हैं, लेकिन सूरत में उनका गृह नगर माना जाता है, लेकिन इस सब के बीच सूरत में सिर्फ चर्चा दो सीटों की हो रही है। इनमें वराछा रोड और कतारगाम शामिल हैं। 30 अक्तूर को आम आदमी पार्टी से जुड़े अल्पेश कथीरिया ने वारछा में मुकाबले को हाईवोल्टेज बना दिया है। अल्पेश का गब्बर वाला अंदाज युवाओं और लोगों को खूब पंसद आ रहा है।

सूरत शहर में विधानसभा की 12 सीटें आती हैं। पिछले चुनावों में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए सभी 12 सीटें जीत ली थी। तब बीजेपी के इस प्रदर्शन से सभी चौंक गए थे, क्योंकि पाटीदार आंदोलन के गढ़ रहे सूरत में बीजेपी को नुकसान होने का अनुमान हर किसी ने लगाया था। 2022 में जब पाटी 150 का लक्ष्य छूना चाह रही है तो उसे सूरत की तीन से चार सीटों पर कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है। ग्राउंड जीरो पर मौजूद लोगों का कहना है कि चुनाव में जो गर्मी है वह आम आदमी पार्टी के चलते है। पाटीदार आंदोलन में नंबर दो की भूमिका निभाने वाले अल्पेश कथीरिया को वराछा से टिकट मिलने के कारण आप का ग्राफ ऊपर चढ़ा है। यही वजह है कि हर किसी की नजरें वारछा सीट पर लगी हैं तो वहीं कतारगाम में गाेपाल इटालिया के लड़ने से पार चढ़ गया है। इतन ही नहीं सट्‌टा बाजार में भी इन दोनों सीटों को लेकर ज्यादा दांव लगाए जा रहे हैं।

सूरत बीजेपी का कितना मजबूत गढ़ है? इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सूरत लोकसभा सीट पर कांग्रेस को आखिरी बार 1984 में जीत मिली थी। इसके बाद से लगातार बीजेपी इस सीट पर जीत हासिल कर रही है। सूरत से 1951 में कन्हैयालाल देसाई सांसद बने थे। इसके बाद पांच बार मोरारजी देसाई यहां से जीते। कांग्रेस की टिकट 1984 में सी डी पटेल जीते। वे कांग्रेस के आखिरी सांसद बने। इसके बाद 1989 से बीजेपी के कांशीराम राणा जीतने लगे। वे यहां से छह बार जीते। 2009 से दर्शना जरदोश यहां से सांसद हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति विधानसभा सीटों की है।

गुजरात में विधानसभा कुल सीटों की संख्या 182 है। इसमें 40 सीटें आरक्षित हैं। 27 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए और 13 सीटें अनुसूचित जाति के रिजर्व हैं। विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 92 सीटों का है। 2017 के चुनाव में सत्तारूढ़ बीजेपी मुश्किल से सरकार बचा पाने में सफल रही थी। दो दशक में पहली बार पार्टी की सीटों की संख्या दो अंकों में सिमट गई थी और बीजेपी सिर्फ 99 सीटें जीत सकती थी। कांग्रेस को 2017 के चुनाव 77 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस से गठबंधन करके लड़ी भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) को 2 सीटें मिली और 1 सीट पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) विजयी हुई थी। तीन सीटों पर निर्दलीय जीते थे। इनमें वडगाम से दलित नेता जिग्नेश मेवाणी की कांग्रेस के समर्थन से जीत हुई थी।

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