तमिलनाडु में वर्तमान में सनातन पर निशाना साधा जा रहा है! तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम ने हिंदू धर्म और हिंदुओं के खिलाफ नए सिरे से अभियान छेड़ दिया है। पहले प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की तुलना गंभीर बीमारियों से करते हुए इसके समूल नाश का आह्वान किया। उदयनिधि के इस बयान पर बवाल थमा भी नहीं था कि एक अन्य डीएमके नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री ए. राजा ने और भी जहरीला बयान दे दिया। उन्होंने हिंदू धर्म को कुष्ठ और एचआईवी बता दिया। ए. राजा ने बाद में अपनी सफाई में कहा कि उन्होंने तो सिर्फ डॉ. भीमराव आंबेडकर और पेरियार जैसे विचारकों की बातें ही दुहराईं। सवाल है कि क्या डॉ. आंबेडकर ने सनातन की तुलना बीमारियों से की थी या फिर उसके समूल नाश का आह्वान किया था? दरअसल, ए. राजा ने बुधवार को तमिलनाडु में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा, ‘अगर घृणित शब्दों में सनातन धर्म की आलोचना की जाए तो यही कहा जाएगा कि एक समय था जब कुष्ठ रोग हुआ करता था और हाल में एचआईवी आया। हमारे लिए, इसे सनातन को एचआईवी और कुष्ठ रोग जैसा मानना चाहिए जिसने सामाजिक बीमारियां दीं।’ उन्होंने कहा, ‘मैं किसी भी मंच पर पेरियार और आंबेडकर के व्यापक लेखन प्रस्तुत करने के लिए तैयार हूं, जिन्होंने सनातन धर्म और इसके समाज पर नकारात्मक प्रभाव पर गहन शोध किया है। मैं अपने बयान की मूल बात दुहराता हूं, मैं मानता हूं कि मच्छरों से पैदा कोविड-19, डेंगू और मलेरिया जैसे रोगों के प्रसार की तरह सनातन धर्म कई सामाजिक बुराइयों के लिए जिम्मेदार है।’ फिर उन्होंने कहा, ‘मैं किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हूं जो मेरे रास्ते में आती है, चाहे वह कानूनी अदालत में हो या जनता की अदालत में। फर्जी खबरें फैलाना बंद करो।’
लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट भी किया कि धर्म के विनाश से उनका मतलब क्या है। आंबेडकर ने लिखा, ‘कुछ लोग नहीं समझ सकते कि धर्म के विनाश से मेरा आशय क्या है; कुछ को यह धारणा विद्रोही लग सकती है और कुछ को यह क्रांतिकारी विचार लग सकता है। इसलिए मैं अपनी स्थिति स्पष्ट करना चाहता हूं। मैं नहीं जानता कि क्या आप सिद्धांतों और नियमों में भेद करते हैं या नहीं। लेकिन मैं इनके बीच भेद मानता हूं। मैं न केवल इनको अलग-अलग मानता हूं, बल्कि यह भी मानता हूं कि इनमें भेद वास्तविक और महत्वपूर्ण है। नियम व्यावहारिक होते हैं इनके निर्धारित मानदंड के अनुसार काम करने के प्रथागत रास्ते हैं। परन्तु सिद्धांत बौद्धिक होते हैं, ये चीजों को परखने के उपयोगी साधन हैं। ये नियम मानने वाले को बताते हैं कि कोई काम किस विधि से किया जाए।’
वो नियम और सिद्धांत की विस्तार से व्याख्या करते हैं और फिर कहते हैं कि हिंदू धर्म मूल रूप से सिद्धांत है। आंबेडकर ने बताया कि उन्हें धर्म से आपत्ति क्यों है। फिर वो कहते हैं कि वो धर्म का विनाश नहीं चाहते हैं। वो लिखते हैं, ‘यद्यपि मैं धर्म के नियमों की निंदा करता हूं, इसका अर्थ यह न लगाया जाए कि धर्म की आवश्यकता ही नहीं। इसके विपरीत मैं बर्क के कथन से सहमत हूं, जो कहता है, ‘सच्चा धर्म समाज की नींव है, जिस पर सब नागरिक सरकारें टिकी हुई हैं।’ वो आगे कहते हैं, ‘इसलिए जब मैं यह अनुरोध करता हूं कि जीवन के ऐसे पुराने नियम समाप्त कर दिए जाएं, तब मैं यह देखने का उत्सुक हूं कि इसका स्थान ‘ धर्म के सिद्धांत’ ले लें, तभी हम दावा कर सकते हैं कि यही सच्चा धर्म है। वास्तव में, मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि धर्म आवश्यक है। इसलिए मैं आपको कहना चाहता हूं कि धर्म में सुधार को मैं एक आवश्यक पहलू मानता हूं।’
डॉ. आंबेडकर ने हिंदू धर्म में सुधार के कुछ सुझाव भी दिए।
ए. राजा ने भी अपनी सफाई में कहा है कि वो हिंदुओं के नरसंहार की बात नहीं कर रहे हैं। उन्होंने अपने बचाव में कहा, ‘मैंने कभी भी सनातन धर्म का पालन करने वाले लोगों के नरसंहार का आह्वान नहीं किया। सनातन धर्म एक सिद्धांत है जो जाति और धर्म के नाम पर लोगों को बांटता है। सनातन धर्म को उखाड़ फेंकने का मतलब है मानवता और मानव समानता को संरक्षित करना। मैं अपनी हर बात पर दृढ़ता से कायम हूं। मैंने सनातन धर्म के कारण पीड़ित शोषित और वंचित लोगों की ओर से बात की।’ ध्यान रहे कि सनातन धर्म के खिलाफ जहर उगलने का ताजा सिलसिला तमिलनाडु सरकार के मंत्री उदयनिधि स्टालीन के बयान से शुरू हुआ। उन्होंने कहा, ‘कुछ चीजों का विरोध नहीं किया जा सकता है; उनका केवल उन्मूलन ही किया जाना चाहिए। हम डेंगू, मच्छर, मलेरिया या कोरोना का विरोध नहीं कर सकते हैं; हमें उन्हें मिटाना होगा। यही तरीका है जिससे हमें सनातन को मिटाना होगा। सनातन का विरोध करने के बजाय, इसे मिटा दिया जाना चाहिए।’
बात यह नहीं है कि आंबेडकर ने हिंदू धर्म के बारे में क्या कहा था। बात यह है कि आंबेडकर ने धर्मों के बारे में क्या कहा था। क्या उन्होंने इस्लाम और इसाइयत का समर्थन किया था? क्या आंबेडकर हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम या इसाई बन गए थे? जवाब है नहीं। वो बौद्ध बने थे जिसकी जन्मभूमि भी भारत ही है। क्या उदयनिधि स्टालीन या ए. राजा डॉ. आंबेडकर की इस्लाम के लिए कही गईं बातें ही दोहरा पाएंगे? सबको पता है कि डॉ. आंबेडकर का इस्लाम और मुसलमानों के प्रति क्या रुख था। लेकिन किसी नेता की क्या मजाल कि वो इस्लाम की खामियां गिना दे या उसमें सुधार का सुझाव दे दे, समूल नाश की बात तो बहुत दूर है।