Thursday, April 18, 2024
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क्या उत्तर प्रदेश में आलू किसान हो रहे हैं परेशान?

उत्तर प्रदेश में आलू किसान परेशान हो रहे हैं! आगरा के किसान बलवीर सिंह ने दस बीघा खेत में आलू बोया। लागत आई पौने तीन लाख रुपये से ज्यादा। अब आलू की खोदाई शुरू हुई तो खरीदार नहीं मिल रहे। कोई खरीदार मिल भी जाए तो 300 से 350 क्विंटल का रेट लगाता है। कोल्ड स्टोर में रखने के लिए भाड़ा खर्च करके जाएं तो पता नहीं कितना इंतजार करना पड़े, पता नहीं? ज्यादातर कोल्ड स्टोर भरा हुआ कहकर लौटा दे रहे हैं। प्रदेशभर में आलू किसानों का यही दर्द है। किसानों का यह दर्द अब सरकार तक भी पहुंचा है। किसानों को कीमत दिलाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और राजनीति भी खूब हो रही है। अब सवाल ये उठ रहे हैं कि आलू किसानों की दुर्दशा की वजह क्या है? ये नौबत आई क्यों और सरकार जो प्रयास कर रही है, वे कितने कारगर होंगे? इन सबका जवाब जानने से पहले लागत और नफा-नुकसान का गणित समझना जरूरी है। नफा-नुकसान की बात करें तो सामान्य तौर पर एक हेक्टेअर में 300 क्विंटल आलू पैदा होता है। बाजार में बेचने पर 350 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से उसे 1,05,000 लाख रुपये मिलेंगे। लागत 1,42, 000 रुपये है। इस तरह बाजार में बेचने पर किसान को 37 हजार रुपये का नुकसान हो रहा है। सरकार ने जो रेट तय किए हैं, उसके अनुसार उसे 1,95,000 रुपये मिलेंगे। ऐसे में उसे एक हेक्टेअर में 53 हजार रुपये मुनाफा होगा।

किसान को वर्तमान में बाजार में आलू बेचकर लागत भी नहीं पड़ रही। अब आते हैं आलू संकट की वजहों पर। सबसे बड़ी वजह है आलू का बढ़ता उत्पादन और भंडारण की समस्या। छह साल में यदि हम यूपी में आलू उत्पादन का रेकॉर्ड देखें तो स्थिति साफ हो जाएगी। कुल उत्पादन 242.93 लाख मीट्रिक उत्पादन के मुकाबले भंडारण क्षमता 162 लाख टन है। जितनी क्षमता है, उसका भी 80-85% आलू ही कोल्ड स्टोर में जमा होता है। कोल्ड स्टोरों की मनमानी भी इसकी वजह है।किसानों की अक्सर शिकायत होती है कि आलू रखने से कोल्ड स्टोर मना कर रहे हैं। छापेमारी के दौरान यह बात सामने भी आई और कार्रवाई भी होती है।

अब बात मौसम की करते हैं। बेमौसम बारिश या घटता-बढ़ता तापमान भी भारी नुकसान पहुंचाता है। इस बार की ही बात करें तो अक्टूबर में हुई बारिश के कारण खेतों में पानी भरा रहा। इससे किसान अगैती फसल की बोआई नहीं कर पाए। उसके बाद जब मौसम सही हुआ तो फिर सबने आलू बो दिया। इस तरह अगैती और मुख्य फसल की आवक एक साथ हो गई। कुल उत्पादन का करीब 10 फीसदी अगैती होता है। इस तरह 10 फीसदी आलू सीजन पर ज्यादा आ गया।यूपी सबसे बड़ा आलू उत्पादक राज्य है। देश का 35% आलू उत्पादन यहां होता है। इसके अलावा पंजाब, बिहार, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में भी आलू उत्पादन होता है। ऐसे में जब यूपी में दाम बढ़ते या घटते हैं तो इसका असर पूरे देश पर पड़ता है।

जब संकट खड़ा होता है तो सरकार आलू किसानों को उचित मूल्य दिलाने के लिए प्रयास करती है। लेकिन ये प्रयास कितने कारगर हैं, समझते हैं। केंद्र सरकार की बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत आलू की खरीद करती है। यह खरीद तब की जाती है जब पिछले साल से बाजार मूल्य 10 प्रतिशत कम हो या फिर पिछले साल से 10 प्रतिशत उत्पादन ज्यादा हो। इससे पहले 2017 में आलू खरीदा गया था लेकिन किसानों को कोई खास लाभ इसका नहीं हुआ। तब महज 1293.70 मीट्रिक टन आलू की खरीद हुई थी। इस साल 242 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा आलू का उत्पादन है और फिलहाल 10 लाख मीट्रिक टन खरीद का लक्ष्य तय किया गया है। इसके अलावा सरकार ने अब निर्यात शुरू किया है लेकिन वह उत्पादन के मुकाबले काफी कम है। नेपाल से हाफेड ने 15000 मीट्रिक टन का अनुबंध किया है। वहीं आगरा से मलेशिया, दुबई और कतर के लिए अभी 600 मीट्रिक टन आलू भेजा गया है।

कोल्ड स्टोरों की निगरानी के लिए अब अफसरों की ड्यूटी लगाई गई है। जबकि यह एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए। इसी तरह आलू खरीद हो या फिर टॉप क्रॉप्स के तहत छूट देने का मामला। ये प्रयास काफी पहले शुरू हो जाने चाहिए। इस साल आलू की बायर-सेलर मीट प्रस्तावित है लेकिन टलती जा रही है। समय रहते ऐसे आयोजन हो सकते हैं।

सरकार को पहले से पता होता है कि इस बार कितना आलू बोया गया, कितनी पैदावार अनुमानित है और कितनी भंडारण क्षमता है। इसके आधार पर जो कदम सरकार अब संकट खड़ा होने पर उठा रही है। वह पहले ही उठाने चाहिए। कृषि उत्पादन आयुक्त मनोज कुमार सिंह ने कहा कि आलू खरीद के लिए बाजार हस्तक्षेप योजना हो या फिर टॉप क्रॉप्स योजना। इसकी मंजूरी केंद्र से मिलती है। प्रस्ताव पहले भेजा गया था। इसके अलावा सरकार ई-नाम योजना और निर्यात बढ़ाने सहित कई प्रयास कर रही है। निश्चित ही इससे किसानों को लाभ मिलेगा।

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