Friday, March 29, 2024
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क्या चीन का हाथ थाम सकता है सऊदी अरब?

सऊदी अरब अब अमेरिका को छोड़कर चीन का हाथ थाम सकता है! पिछले दिनों अमेरिका के राष्‍ट्रपति जो बाइडेन अपनी पहली सऊदी अरब यात्रा पर गए थे। सऊदी अरब, मीडिल ईस्‍ट का वो देश है जो हमेशा से अमेरिका की विदेश नीति का अहम हिस्‍सा रहा है। लेकिन बाइडेन की ये यात्रा पूरी तरह से नाकाम साबित हुई और उनके ही घर में उन्‍हें आलोचकों ने घेरा। इस पूरे घटनाक्रम के बाद अब दुनिया क इस हिस्‍से में जो कुछ हो रहा है या होने वाला है, उससे लगता है कि चीन बाइडेन की इस यात्रा के असफल होने का इंतजार कर रहा था। हालांकि बाइडेन ने अपनी यात्रा शुरू होने से पहले कहा था कि चीन के साथ प्रतिद्वंदिता करने के लिए सर्वश्रेष्‍ठ उपाय करने होंगे। उनकी यात्रा का नतीजा देखकर तो ऐसा नहीं लगता है कि अमेरिका ने कोई ऐसा उपाय किया है।

मीडिल ईस्‍ट में मजबूत चीन

अमेरिका के विदेश नीति के जानकार मानने लगे हैं कि मीडिल ईस्‍ट अब अमेरिका और चीन के बीच प्रतियोगिता का केंद्र बिंदु बनने वाला है। उनकी मानें तो मीडिल ईस्‍ट में अब चीन के कदम मजबूत होने लगे हैं और इसका रंग आने वाले दिनों में दिखने लगेगा। पारंपरिक सेक्‍टर्स जैसे तेल और गैस में तो चीन और खाड़ी देशों के बीच आपसी सहयोग बढ़ा है।

इसके अलावा कोविड-19 के समय चीन को ये मौका मिला कि वो यहां के देशों को जरूरत के समय स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं मुहैया करा सके। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था ने इस क्षेत्र में अपनी आर्थिक ताकत का जाल फेंककर ये साबित कर दिया है कि वो अब यहां पर ज्‍यादा समय के लिए टिकने वाला है।

चीन की बढ़ती मौजूदगी ने इस क्षेत्र के साथ अमेरिका के टकराव को गहरा कर दिया है। अमेरिका को अभी तक लगता था कि मीडिल ईस्‍ट उसके सुरक्षा साये से कहीं निकलकर नहीं जाने वाला है। मगर अब ऐसा नहीं लगता। सऊदी अरब स्थित किंग फैसल सेंटर फॉर रिसर्च एंड इस्‍लामिक स्‍टडीज में एशियाई स्‍टडी के मुखिया मोहम्‍मद तुर्कीअल-सौदरी कहते हैं कि चीन जिस तरह से यहां अपना कद बढ़ाता जा रहा है, उसके बाद लगता है कि ये देश अमेरिका का विकल्‍प साबित हो सकता है। उनका मानना है कि चीन अब एक अमीर ताकतवर देश के तौर पर इस क्षेत्र में मजबूत हो सकता है।

वहीं कुछ विशेषज्ञ इस बात को भी कहने से पीछे नहीं हट रहे हैं कि मीडिल ईस्‍ट और चीन करीब आते जा रहे हैं। हो सकता है कि आने वाले दिनों इसकी वजह से अमेरिका को अपनी विदेश नीति में बदलाव करना पड़ सकता है। हो सकता है कि उसका ध्‍यान तेल और एनर्जी से हटकर दूसरे मुद्दों पर भी जाए। मार्च में इस बात की खबर आई थी कि सऊदी अरब, अमेरिकी डॉलर की जगह चीन की मुद्रा युआन को अपना सकता है। फिलहाल दुनियाभर में तेल का बिजनेस डॉलर में ही होता है।

साल 2021 में चीन वो देश था जिसने सऊदी अरब से सबसे ज्‍यादा तेल आयात किया था। चीन ने साल 2021 में 87.58 मिलियन टन कच्‍चा तेल सऊदी अरब से लिया था। इसके साथ ही सऊदी अरब, कच्‍चे तेल के साझेदार के तौर पर चीन की लिस्‍ट में नंबर वन पर आ गया था।

अगर सऊदी अरब युआन में बिजनेस करता है तो फिर ये चीन के लिए फायदेमंद होगा। अमेरि‍का के नेशनल वॉर कॉलेज के ए‍सोसिएट प्रोफेसर डॉन मर्फी की मानें तो ये चीन को आने वाले समय में संभावित प्रतिबंधों और मुद्रा में होने वाले उतार-चढ़ाव से बचा सकेगा। अगर बात सऊदी अरब की करें तो चीन उसका सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। अगर वो ऐसा करता है तो चीन को ये संदेश देने की कोशिश की जाएगी कि वो उसकी चिंताओं को समझता है।

कई और मुद्दों पर नजर

बहुत से विशेषज्ञ हालांकि मानते हैं कि अमेरिका और चीन के बीच प्रतिस्‍पर्धा सिर्फ मीडिल ईस्‍ट में मौजूद तेल और गैस के भंडार तक ही सीमित नहीं रहेगी। एक्‍सपर्ट्स की मानें तो चीन वो देश है जिसकी विदेश नीति बहुत ही संतुलित है। वो मीडिल ईस्‍ट के हर देश के साथ एक सकारात्‍मक संबंध रखे है। चीन ने हाल ही में इजरायल और सऊदी अरब के साथ एक डील साइन की है। इसके अलावा ईरान के साथ भी वो 25 साल तक के आपसी सहयोग से जुड़े एक प्रोग्राम में शामिल है। कुछ विशेषज्ञ इस बात से कोई सरोकार नहीं रखते हैं कि चीन, मीडिल ईस्‍ट में अमेरिका की जगह ले सकता है।

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