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क्या पूर्व पीएम नरसिम्‍हा राव का था अफेयर?

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क्या पूर्व पीएम नरसिम्‍हा राव का था अफेयर?

पूर्व पीएम नरसिम्‍हा राव का अफेयर था! पीवी नरसिम्‍हा राव 1991 से 1996 तक प्रधानमंत्री रहें। 90 के दशक में उदारीकरण के जरिये देश की तस्‍वीर बदलने का श्रेय उन्‍हें ही जाता है। पीएम बनने के बाद तत्‍कालीन वित्‍त मंत्री मनमोहन सिंह के साथ उन्‍होंने प्राइवेटाइजेशन का रास्‍ता मजबूत किया। यह और बात है कि राव के निजी जीवन में काफी उथल-पुथल थी। पत्‍नी, 3 बेटे और 5 बेटियों का भरा-पूरा परिवार। लेकिन, बेटों की पिता से जरा नहीं बनती थी। सबसे छोटे बेटे प्रभाकर राव को छोड़ किसी को उनसे मिलने की इजाजत नहीं थी। बताया जाता है कि राव ने अपने दूसरे बेटे राजेश्‍वर के ल‍िए आदेश जारी किए थे कि 7 रेस कोर्स में वह अकेले नहीं दिखने चाहिए। उन्‍हें सिर्फ अपनी पत्‍नी और बच्‍चों के साथ आने की इजाजत थी। इस तरह के रिश्‍तों के पीछे की कहानी है। वह कहानी है राव के ‘अफेयर’ की, 10 साल की उम्र में नरसिम्‍हा राव की शादी सत्‍यम्‍मा से हुई थी। सत्‍यम्‍मा उन्‍हीं की उम्र की थीं। सत्‍यम्‍मा का 1 जुलाई 1970 में निधन हो गया था। दोनों के तीन बेटे और पांच बेटियां हुईं। सबसे बड़े बेटे पीवी रंगाराव। दूसरे पीवी राजेश्‍वर राव और तीसरे पीवी प्रभाकर राव। तीनों में सिर्फ छोटे बेटे प्रभाकर राव को बिना किसी शर्त पीएम आवास आने और रहने की इजाजत थी। बड़े बेटे रंगा राव यूं भी पिता से मिलने से कतराते थे। कई सालों तक दोनों की बात भी नहीं हुई। रंगा राव आंध्र प्रदेश में मंत्री रहे। दूसरे बेटे राजेश्‍वर राव को सिर्फ प‍त्‍नी और बच्‍चों के साथ ही घर आने की इजाजत थी।

पिता और बेटों के बीच इस तरह के रिश्‍तों के पीछे नरसिम्‍हा राव का अफेयर माना जाता है। इंदिरा गांधी को भी इस अफेयर के बारे में पता था। राव के बेटे इंदिरा से इसकी शिकायत करने भी आते थे। कांग्रेस के कई वरिष्‍ठ नेताओं से इंदिरा ने इसके बारे में चर्चा भी की थी। राव का अफेयर उन्‍हें भी चुभता था। आंध्र प्रदेश के मुख्‍यमंत्री रह चुके वेंगल राव ने अपनी ऑटोबायोग्रफी ‘माई लाइफ स्‍टोरी’ में इसका जिक्र भी किया है। इंदिरा ने झुंझलाकर यहां तक कह दिया था कि पीवी का आखिर क्‍या करें। पीवी ने लक्ष्‍मीकांतम्‍मा के साथ फ्लर्ट करने के अलावा कुछ नहीं किया। उनके बेटे पर उन्‍हें दया आती है। वह खुद परेशान हैं।

हां, उस महिला का नाम लक्ष्‍मी कांतम्‍मा था। बेहद आकर्षक, तेजतर्रार और पढ़ी-लिखी। उनका ताल्‍लुक आंध्र प्रदेश के अनंतपुर के नामी रेड्डी जमींदार परिवार से था। लक्ष्‍मी 33 साल की उम्र में विधानसभा में पहुंची थीं। तब राव 36 साल के थे। वह भी इसी विधानसभा में मंथनी से जीतकर पहुंचे थे। दोनों की विधानसभा सत्रों के दौरान मुलाकातें हुईं। भले दोनों के बैकग्राउंड में भारी अंतर था, लेकिन लक्ष्‍मी राव की ओर आकर्ष‍ित होने लगीं। बैकग्राउंड में अंतर इसलिए क्‍योंकि राव साधारण परिवार से आते थे। दूसरी ओर लक्ष्‍मी बेहद रईस परिवार से आती थीं।

राव को इंदिरा और नेहरू दोनों पंसद करते थे। इस कारण उनका सियासी ग्राफ तेजी से बढ़ा। जल्‍दी ही वह मंत्री बन गए। फिर मुख्‍यमंत्री बने। करियर में बढ़ते राव से लक्ष्‍मी की करीबी अब और बढ़ रही थी। दोनों ने इसे दबाने की काफी कोशिश की, लेकिन भला ऐसी बातें कहां छुपने वाली। उधर, लक्ष्‍मी भी संसद में कद्दावर नेता के तौर पर अपनी पहचान बन चुकी थीं। इसकी कीमत चुकानी पड़ी सत्‍यम्‍मा को।

‘द हाफ लायन’ में भी इसका जिक्र मिलता है। विजय सीतापति ने अपनी इस किताब में राव की निजी जिंदगी के कई पन्‍नों को खंगाला है। वह कहते हैं कि पति की उपेक्षा के कारण सत्‍यम्‍मा के जीवन में अकेलापन था। जब 1970 में सत्‍यम्‍मा का निधन हो गया तो लक्ष्‍मी के साथ राव का रिश्‍ता और मजबूत होने लगा। दोनों के रिश्‍ते 1962 से 1975 तक चले। इस रिलेशनशिप में बहुत ज्‍यादा कमिटमेंट था।

यह और बात है कि किस्‍मत को कुछ और ही बदा था। यह अफेयर सिर्फ अफेयर तक रह गया। लक्ष्‍मी का अचानक ही राजनीति से मन उचट गया। उन्‍होंने अध्‍यात्‍म का रास्‍ता पकड़ लिया। दुनिया से सारे रिश्‍ते-नाते तोड़कर वह साध्‍वी बन गईं। अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्‍सा भी दान कर दिया। वह चाहती थीं कि नरसिम्‍हा भी उन्‍हीं की राह पकड़ लें। कहा तो यह भी जाता है कि इसके लिए राव तैयार भी हो गए थे। हालांकि, राजीव गांधी की अचानक हत्‍या ने सबकुछ बदल दिया। राजीव का निधन होते ही नरसिम्‍हा राव पर सत्‍ता संभालने की जिम्‍मेदारी आ गई।