भारत के तेल बेचने से यूरोप को परेशानी हो सकती है! यूरोपीय संघ के विदेश और सुरक्षा नीति प्रमुख जोसेप बोरेल की एक शिकायत है। वे कहते हैं कि भारतीय रिफाइनर भारी मात्रा में रूस से कच्चा तेल खरीद रहे हैं। फिर इसे प्रोसेस कर डीजल जैसे ट्रांसपोर्ट ईंधन में बदलकर यूरोप में बेच रहे हैं। बोरेल ने कहा, ‘अगर डीजल या गैसोलीन यूरोप में प्रवेश कर रहा है…भारत से आ रहा है और रूसी तेल के साथ उत्पादित किया जा रहा है, तो यह निश्चित रूप से प्रतिबंधों का उल्लंघन है और सदस्य देशों को उपाय करना होगा।’ भारत लंबे समय से ईयू के लिए डीजल का बड़ा निर्यातक रहा है। पिछले साल में ऐसा निर्यात तेजी से बढ़ा। भारत को बोरिल के बोरेल के आरोप सिरे से खारिज करने चाहिए और EU को डीजल के निर्यात के अधिकार पर जोर देना चाहिए, भले ही कच्चा तेल वह कहीं से भी खरीदता हो। वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन के नियमों के अनुसार, एक बार रूसी तेल को भारत डीजल जैसे रिफाइंड उत्पादों में बदलता है, फिर उसे रूसी नहीं भारतीय माना जाएगा। असल में बोरेल भारत पर प्रतिबंधित रूसी तेल को अप्रतिबंधित भारतीय डीजल बनाकर वैध करने का आरोप लगा रहे हैं। लेकिन रिफाइनिंग एक इंडस्ट्रियल प्रक्रिया है, केवल धुलाई भर नहीं। ऑयल रिफाइनरी में क्रूड ऑयल को कई रूपों में बदला जाता है- डीजल, पेट्रोल, नेफ्था, केरोसीन, फ्यूल ऑयल, बिटुमेन और कोक। यह मैन्युफैक्चरिंग है, लॉन्ड्रिंग नहीं। दूसरी बात, भारतीय रिफाइनरियां कई जगह से कच्चे तेल का आयात करती हैं। यह पता लगाना कि डीजल का कौन सा बैरल कच्चे तेल के किस बैरल से निकला है, असंभव है। कई रिफाइनरियां अलग-अलग क्रूड ऑयल को मिक्स करके अपना उत्पाद तैयार करती हैं।
अलग-अलग तरह के क्रूड ऑयल में अलग-अलग चीजें होती हैं। हल्के क्रूड ऑयल ज्यादा मूल्यवान होते हैं क्योंकि उनसे पेट्रोल और केरोसीन ज्यादा निकलता है। क्रूड में एसिड और सल्फर की मात्रा उसके दाम और यील्ड पर काफी असर डालती है। भारत की निर्यातक रिफाइनरियां अपनी जरूरत के हिसाब से कई तरह के क्रूड मिक्स करती हैं ताकि सबसे मुनाफे वाला उत्पाद तैयार कर सकें।
भारत की दो एक्सपोर्ट-ओरिएंटेड रिफाइनरियां हैं- रिलायंस और नायरा पहले Essar Oil थी, बाद में रूस की Rosneft ने खरीदा। रूस से आयातित तेल का आधे से ज्यादा इन्हीं दो के खाते में जुड़ता है। ये दोनों कंपनियां देश की प्रमुख डीजल निर्यातक हैं। सरकारी क्षेत्र में मंगलौर रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड की गिनती भी प्रमुख डीजल एक्सपोर्टर्स में होती है। नायरा का मालिकाना हक एक रूसी तेल कंपनी के पास है। जाहिर है, वह रूस में अपने खुद की ऑयल फील्ड्स से कच्चा तेल इम्पोर्ट करेगी। इससे EU के लिए और असहज स्थिति बनती है। रूसी कच्चे तेल को भारत में एक रूसी कंपनी रिफाइन कर रही है और डीजल के रूप में यूरोप को बेच रही है।
पहली बात, भारतीय डीजल का सबसे बड़ा खरीदार अमेरिका है। रूस विरोधी प्रतिबंधों की अगुवाई करने वाला देश है। जब अमेरिका को भारत से डीजल लेने में परेशानी नहीं तो ईयू को दिक्कत क्यों होनी चाहिए? नायरा का मालिकाना हक एक रूसी तेल कंपनी के पास है। जाहिर है, वह रूस में अपने खुद की ऑयल फील्ड्स से कच्चा तेल इम्पोर्ट करेगी। इससे EU के लिए और असहज स्थिति बनती है। रूसी कच्चे तेल को भारत में एक रूसी कंपनी रिफाइन कर रही है और डीजल के रूप में यूरोप को बेच रही है।दूसरी बात, प्रतिबंधों का मकसद रूस को चोट पहुंचाना है, भारत को नहीं। रूस पहले ही से भारत को डिस्काउंट पर कच्चा तेल बेचकर नुकसान उठा रहा है।
सीधी-सीधी बात यह है कि EU में डीजल की कमी है। भारत के पास डीजल सरप्लस है जिसका कहीं न कहीं निर्यात होगा ही। मान लीजिए कि नायरा अभी रूसी क्रूड से बना डीजल यूरोप को एक्सपोर्ट कर रहा है, जबकि इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन गल्फ क्रूड से डीजल बनाकर श्रीलंका को। अगर नायरा श्रीलंका को डीजल बेचे और IOC ईयू को क्या जियोपॉलिटिक्स पर कोई फर्क पड़ेगा? बिल्कुल नहीं। रूस को उतना ही नुकसान होगा, EU के ग्राहकों को उतना ही मूल्य चुकाना होगा। इन देा तेल कंपनियों की ट्रांसपोर्ट लागत में थोड़ा बदलाव जरूर होगा, मुनाफे पर भी असर पड़ेगा लेकिन जियोपॉलिटिकल सिचुएशन नहीं बदलेगी। ऐसे में EU के दावे कि प्रतिबंधों को धता बताया जा रहा है, का कोई तुक नहीं बनता।