Thursday, March 28, 2024
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क्या बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हो गए हैं बेचैन?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बेचैन हो चुके हैं! जनता दल यू ने कार्यकारिणी घोषित कर आगामी लोक सभा की चुनावी तैयारी की यह पहली बानगी प्रस्तुत की है। जदयू की इस नई कार्यकारिणी पर उपेंद्र कुशवाहा के जाने का भय दिखता है। लव कुश समीकरण को मजबूत कर जदयू का यह प्रयास एक डैमेज कंट्रोल की तरह दिखता है जहां कुशवाहा नेताओं की तो भरमार है। यह चाहे राष्ट्रीय कमिटी हो या प्रदेश की कमिटी, कुशवाहा जाति से इस कार्यकारिणी में काफी लोग शामिल है। लव कुश समीकरण के टूटने के साथ इस कार्यकारिणी से के सी त्यागी का जाना और गुलाम रसूल बलियावी का महत्वपूर्ण पद पर काबिज होना भी JDU की लीक से हट कर दिख रहा है। जेडीयू के पार्टी अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने 32 सदस्यीय राष्ट्रीय कमेटी की घोषणा की है। इसमें कुशवाहा जाति से संतोष कुशवाहा, रामसेवक सिंह, भगवान सिंह कुशवाहा और रामकुमार शर्मा को जनरल सेक्रेटरी बनाया गया है। इसके साथ ही सांसद आलोक सुमन पार्टी के कोषाध्यक्ष भी हैं। प्रदेश कमिटी में अध्यक्ष उमेश कुशवाहा के अलावा प्रदेश महासचिव के लिए जिनका नाम आया है उनमें बासुदेव कुशवाहा, नंद किशोर कुशवाहा, अरुण कुशवाहा, धीरज कुशवाहा, संतोष कुशवाहा, राजेश कुशवाहा, मणिलाल कुशवाहा, बबन सिंह कुशवाहा, ब्रजेश कुशवाहा, बीरेंद्र सिंह कुशवाहा, कौशल किशोर कुशवाहा और शंभू कुशवाहा का नाम शामिल है। सूची यहीं खत्म नहीं हुई है। प्रदेश सचिव के पद पर भी कुशवाहा जाति के लोग विराजमान हैं। इनमें अजय कुशवाहा, संजय कुशवाहा, बबन कुशवाहा, दिलीप कुशवाहा, राजेश कुशवाहा, कबिंद्र कुशवाहा, अनिल कुमार कुशवाहा, चंदन कुशवाहा, पूनम कुशवाहा, सत्येंद्र कुशवाहा, रामबालक कुशवाहा और अमरेंद्र कुशवाहा शामिल हैं। यानी प्रदेश महासचिव और सचिव के पद पर कुल 24 पद कुशवाहा के पास।

दरअसल ,पिछड़ी जाति में यादव के बाद सबसे ज्यादा वोट कुशवाहा का है। यह लगभग 6 से 7 प्रतिशत के आसपास है। भाजपा की नजर कुशवाहा वोट पर है। यही वजह है कि भाजपा ने विधान परिषद में प्रतिपक्ष के नेता सम्राट चौधरी को प्रोजेक्ट कर कुशवाहा वोट को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है। उपेंद्र कुशवाहा के जाने के बाद जदयू को यह कमजोरी दिख भी रही है। खास कर राज्य में हुए 2020 का विधान सभा चुनाव हो या 2019 का लोक सभा चुनाव । यहां तक कि कुछ ही महीने पहले हुए तीन उपचुनावों में भी कुशवाहा के वोट बैंक का असर दिखा। कुशवाहा वोट भाजपा की तरफ ज्यादा जाता दिखा। कुशवाहा के भीतर भाजपा के बढ़ते प्रभाव को देख कर ही नीतीश कुमार इस जाति पर कुछ ज्यादा मेहरबान हुए और संगठन में कुशवाहा को ज्यादा हिस्सेदार मिली।

के सी त्यागी का जाना ठीक वैसे ही है, जैसे एक म्यान में दो तलवार का नहीं रहना। के सी त्यागी ने तो आरसीपी सिंह के साथ ही कार्य करना स्वीकार नहीं किया था। लेकिन दवाब में वे जुड़े रहे। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इस बार ललन सिंह के नेतृत्व में काम करने से उन्होंने साफ इंकार कर दिया।यही वजह है कि भाजपा ने विधान परिषद में प्रतिपक्ष के नेता सम्राट चौधरी को प्रोजेक्ट कर कुशवाहा वोट को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है। उपेंद्र कुशवाहा के जाने के बाद जदयू को यह कमजोरी दिख भी रही है। खास कर राज्य में हुए 2020 का विधान सभा चुनाव हो या 2019 का लोक सभा चुनाव । यहां तक कि कुछ ही महीने पहले हुए तीन उपचुनावों में भी कुशवाहा के वोट बैंक का असर दिखा। कुशवाहा वोट भाजपा की तरफ ज्यादा जाता दिखा। लगातार विवादित शब्दों का इस्तेमाल करने वाले गुलाम रसूल बलियावी का संगठन में शामिल होना थोड़ा चौंकाता है। यह शायद महागठबंधन में शामिल होने के बाद मुस्लमि वोटों को अपने पक्ष में करने के मजबूरी रही होगी। ऐसा इसलिए भी कि एम वाई राजद की यू एस पी भी रही है। ऊपर से ओवैसी ने महागठबंधन की नाक में अलग से दम कर रखा है।

यह तो होना ही था। उपेंद्र कुशवाहा के जाने के बाद जदयू में उनकी बराबरी के कोई और नेता भी नही हैं।यही वजह है कि भाजपा ने विधान परिषद में प्रतिपक्ष के नेता सम्राट चौधरी को प्रोजेक्ट कर कुशवाहा वोट को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है। उपेंद्र कुशवाहा के जाने के बाद जदयू को यह कमजोरी दिख भी रही है। खास कर राज्य में हुए 2020 का विधान सभा चुनाव हो या 2019 का लोक सभा चुनाव । यहां तक कि कुछ ही महीने पहले हुए तीन उपचुनावों में भी कुशवाहा के वोट बैंक का असर दिखा। कुशवाहा वोट भाजपा की तरफ ज्यादा जाता दिखा। इसलिए कुशवाहा नेताओं की भरमार तो होनी ही थी। लव कुश समीकरण को इंटैक्ट रखना नीतीश कुमार की राजनीति के लिए जरूरी है। अब एक सवाल उठता है कि क्या ये नेता उपेंद्र कुशवाहा की जगह ले भी पाते हैं या नहीं?

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