Tuesday, December 5, 2023
HomeIndian Newsक्या विपक्ष का हथियार उसी पर पड़ चुका है भारी?

क्या विपक्ष का हथियार उसी पर पड़ चुका है भारी?

वर्तमान में विपक्ष का हथियार उसी पर भारी पड़ चुका है! राजनीति में श्रेय लेने की होड़ सीखनी हो तो वो बीजेपी से सीखे। बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने कई ऐसे काम अपने कार्यकाल में किए हैं, जिसकी परिकल्पना कांग्रेस राज में हुई थी। नये संसद भवन की बात हो या महिला आरक्षण बिल पास कराने की, परिकल्पना किसी और की थी और मूर्त रूप दिया बीजेपी ने। संसद भवन की बात करें तो साल 2010 में ही कांग्रेस सरकार ने इसकी जरूरत महसूस की थी। तत्कालीन लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार ने इसके लिए कमिटी भी बनाई थी, लेकिन मामला लटका रहा और मोदी ने इसे मूर्त रूप दे दिया। महिला आरक्षण बिल को पास कराने की कवायद 1996 में शुरू हुई, लेकिन बीजेपी नीत एनडीए सरकार के कार्यकाल में यह पास हो सका। महिलाओं को आकर्षित करने के लिए अपने-अपने स्तर से कई राज्य सरकारों ने अच्छे काम किए हैं। बिहार से महिला सशक्तिकरण का काम शुरू हुआ था। नीतीश कुमार ने एनडीए की सरकार चलाते वक्त महिलाओं को पंचायत और निकाय चुनाव में 33 प्रतिशत आरक्षण देकर इसकी शुरुआत की थी। ऐसा तब हुआ, जब विधानसभा और लोकसभा चुनावों में महिला आरक्षण के सवाल पर विपक्षी दल, खासकर समाजवादी नेता नाक-भौं सिकोड़ लेते थे। लालू यादव अपनी लाश पर बिल पास होने की धमकी देते थे तो उनके ही एक सांसद ने लोकसभा में महिला आरक्षण बिल की कापी तक फाड़ दी थी। शरद यादव को तो इसमें सवर्णों की ओर से हकमारी की गंध आ रही थी। मुलायम सिंह यादव भी मुंह बिचकाए हुए थे। बीजेपी ने रणनीतिक ढंग से ऐसे मौके पर इस बिल को पास कराया, वह भी सर्वासम्मति से। लोकसभा में सिर्फ दो सदस्य ही विरोध में रहे।

कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने बिल पास कराने में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इसे बीजेपी को विपक्ष का साथ भी कह सकते हैं, लेकिन यह कब लागू होगा, किसे कितना आरक्षण चाहिए या मिलेगा, जैसे सवाल उठा कर विपक्ष ने अपनी ही किरकिरी करा ली। कहते भी हैं कि जो जीता, वही ‘सिकंदर’। देवेगौड़ा के जमाने से बिल पास कराने की कवायद राजीव गांधी और मनमोहन सिंह से होते हुए नरेंद्र मोदी ने की। इसमें पीएम मोदी के अलावा कोई सफल नहीं हो पाया। किसी ने सर्वसम्मति की कोशिश नहीं की। इस मामले में नरेंद्र मोदी कामयाब रहे और बीजेपी इसका श्रेय लूट ले गई। साथ देकर भी विपक्ष के हाथ कुछ नहीं आया।

नया संसद भवन भी मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि है। इसकी भी मूल कल्पना कांग्रेस शासन के दौरान 2010 में हुई थी। पुराने संसद भवन की सौ साल उम्र को देखते हुए नए भवन की बात उठी। तत्कालीन स्पीकर मीरा कुमार के सामने नए संसद भवन का प्रस्ताव साल 2010 में आया था। स्पीकर ने इसके लिए साल 2012 में एक समिति बनाई। वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में आ गई। अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी ने इस पर काम शुरू कराया और रिकॉर्ड समय में नया संसद भवन बन कर तैयार हो गया। नया भवन बनने से लेकर इसके उद्घाटन तक कम विवाद नहीं हुआ। विपक्ष इस निर्माण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गया, लेकिन वहां से उसे निराशा हाथ लगी। जब इसके उद्घाटन की तारीख घोषित की गई तो विपक्ष ने विरोधस्वरूप उद्घाटन समारोह से अलग रहने का फैसला किया। 28 मई 2023 को नये भवन का उद्घाटन हुआ। कांग्रेस समेत 19 विपक्षी दलों ने कार्यक्रम का बायकाट कर अपनी किरकिरी करा ली। हालांकि बाद में इन्हीं विपक्षी दलों के सांसदों को नये भवन में बैठ कर महिला आरक्षण बिल पास करने में कोई आपत्ति नहीं हुई।

बीजेपी को सनातन समर्थक माना जाता है। इसे हिन्दुत्व का कट्टर समर्थ भी कह सकते हैं। हाल के दिनों में तमिलनाडु के डीएके नेता जिस तरह सनातन पर तंज कसते रहे हैं, उसे बीजेपी ने अपनी ताकत के रूप में स्वीकार करना शुरू कर दिया है। तमिलानाडु के सीएम एमके स्टालिन के बेटे उदय निधि स्टालिन सनातन को खत्म करने का संकल्प बार-बार दोहराते हैं। डेंगू-मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारियों से सनातन की तुलना करते हैं। उनकी पार्टी के एक सांसद इसे एचआईवी से भी खतरनाक बताते हैं। बीजेपी ने अब इसे बड़ा हथियार बना लिया है।

बीजेपी इसके सहारे हिन्दू वोटों को ध्रुवीकृत करने की कोशिश करेगी। बिहार में बड़ी पार्टी आरजेडी के एक नेता ने तो हिन्दू धर्मग्रंथों के खिलाफ अभियान ही छेड़ दिया है। संभव है कि लोकसभा चुनाव में आरजेडी को इसका खामियाजा भी भुगना पड़े, क्योंकि चुनावी मौसम में बीजेपी इसे भुनाने में तनिक भी देर नहीं करेगी। ऐसे बयानों पर बीजेपी ने शोर मचाना शुरू भी कर दिया है। ऐसे बयानों से विपक्षी दलों में ही एका नहीं बन पा रही। कांग्रेस, टीएमसी, जेडीयू जैसी पार्टियों ने पहले ही पल्ला झाड़ लिया है, जो बीजेपी के लिए ताकत का काम करेगी।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments