Friday, April 19, 2024
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क्या सीएम नीतीश कुमार और तेजस्वी की दूरी का कारण भी है राहुल?

राहुल गांधी अब सीएम नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की दूरी का कारण बन चुके हैं! राहुल गांधी को मानहानि मामले में सजा, संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराया जाना, ईडी-सीबीआई के केंद्र सरकार पर दुरुपयोग को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी को विपक्षी नेताओं के पत्र और फिर 14 पॉलिटिकल पार्टियों का सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना। इन सब में बिहार में बने सात दलों के महागठबंधन के प्रमुख घटक दल आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव शामिल होते रहे हैं, लेकिन आरजेडी के सहयोग से ही सीएम बने जेडीयू नेता नीतीश कुमार कटे-कटे दिख रहे हैं। राजनीति में यह अनोखा और अजूबा प्रयोग है। दल तो साथ दिख रहे, लेकिन दिल का मिलान नहीं हो पा रहा। नीतीश कुमार केंद्र सरकार की नीतियों और पीएम नरेंद्र मोदी की आलोचना तो कभी कभार करते हैं, लेकिन विपक्ष के मुद्दों पर वे साथ क्यों नहीं जा रहे, सबसे बड़ा सवाल यही है। बीजेपी का साथ छोड़ कर विपक्षी दलों के महाजुटान में शामिल होकर नीतीश कुमार ने सीएम की कुर्सी बरकरार रखी है, लेकिन जब भी लालू यादव के परिवार पर सीबीआई-ईडी या आईटी की कार्रवाई होती है, वे चुप्पी साध लेते हैं। दरअसल नीतीश कुमार के उत्थान की कहानी ही लालू यादव के विरोध की बुनियाद पर लिखी गयी है। चारा घोटाला, जंगल राज, भष्टाचार जैसे लालू परिवार से जुड़े मुद्दे उछाल कर ही नीतीश ने सीएम की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाबी पायी थी। 2020 में नीतीश की पार्टी जेडीयू का नारा ही लालू-राबड़ी शासन के 15 साल बनाम नीतीश कुमार के 15 साल था। ऐसे में नीतीश कुमार इन मुद्दों पर लालू परिवार के साथ खड़ा होने का नैतिक साहस जुटा ही नहीं सकते।

सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों के भाजपा नीत केंद्र सरकार के दुरुपयोग का आरोप विपक्ष लगाता रहा है। जब विपक्षी दलों के 9 नेताओं ने इस बाबत पीएम मोदी को पत्र लिखा तो आरजेडी की ओर से डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव ने उस पर दस्तखत किए, लेकिन साथ में रह कर भी नीतीश ने खुद को अलग रखा। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार पर ईडी और सीबीआई का मनमाना इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए देश की 14 पॉलिटिकल पार्टियों ने जब सुप्रीम कोर्ट का रुख किया तो नीतीश का जेडीयू उससे अलग रहा। इन पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का गलत तरीके से इस्तेमाल कर रही है। इनके जरिये विपक्षी पार्टियों के नेताओं को छापे और गिरफ्तारी से डराया जा रहा है।

कांग्रेस का विरोध करने वाली विपक्षी पार्टियां भी राहुल गांधी को दो साल की सजा और उनकी संसद सदस्यता रद्द करने के मुद्दे पर गोलबंद हो गयी हैं। बीजेपी की तरह ही कांग्रेस की धुर विरोधी टीएमसी नेता और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी साथ आ गए हैं। लेकिन बिहार में कांग्रेस के साथ सरकार चलाने वाले नीतीश कुमार इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं। इस मुद्दे पर तमाम विपक्षी पार्टियां कांग्रेस के साथ आंदोलन कर रही हैं। यहां तक कि बिहार के महागठबंधन में शामिल आरजेडी, हम जैसे दल भी कांग्रेस के साथ खड़े हैं। राहुल के समर्थन और बीजेपी के विरोध में उनके बयान-ट्वीट आ रहे हैं, लेकिन नीतीश कुमार ने खामोशी ओढ़ ली है।

रेलवे में जमीन के बदले नौकरी मामले में बिहार के डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव से सीबीआई पूछताछ हो रही है। सीबीआई उनसे यह जानना चाहती है कि इस बारे में उन्हें क्या जानकारी है। इसके लिए उन्हें तीन बार सीबीआई नोटिस दे चुकी थी। हर बार वे किसी न किसी बहाने टालते रहे। सीबीआई कोर्ट की सख्ती के बाद वे पूछताछ के लिए हाजिर हुए। इससे पहले इसी मामले में सीबीआई तेजस्वी के पिता लालू यादव और मां राबड़ी देवी समेत दो बहनों से पूछताछ कर चुकी है। इसके बावजूद नीतीश कुमार का इस मामले में अब तक कभी कोई बयान नहीं आया। बीजेपी के सीनियर नेता और राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने कहते हैं कि नीतीश की पार्टी जेडीयू के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने ही इस मामले में पीएमओ को कागजात उपलब्ध कराये थे। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में नीतीश कुमार क्या बोलेंगे।

नीतीश के आरजेडी के साथ खड़े न होने से सियासी कयासबाजी का दौर भी शुरू हो गया है। राजनातिक विश्लेषक मानते हैं कि जिस तरह दिल्ली सरकार के दो मंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन गिरफ्तार किये गये हैं या बंगाल के कई मंत्री और सत्तारूढ़ दल टीएमसी के विधायक-नेता पकड़े जाते रहे हैं, वैसे में तेजस्वी की गिरफ्तारी भी हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। अगर यह नौबत आती है तो नीतीश को आरजेडी के रहमोकरम पर रहना पड़ेगा या फिर अपनी पुरानी आदत के मुताबिक उन्हें बीजेपी की शरण में जाना पड़ेगा। इसलिए नीतीश सेफ जोन में रहना चाहते हैं।

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