आज हम आपको मोहम्मद सैफ खान की कहानी के बारे में बताने जा रहे है! हमारी जिंदगी छोटे-छोटे पलों से मिलकर बनी है। कभी कभार इन पलों में देखे सपने हमें नई राह दिखाते हैं लेकिन कभी ऐसा भी होता है कि इनमें घटे हादसे हमारे जीवन को पटरी से ही उतार देते हैं। लेकिन विजेता वही होता है जो किसी दूसरे की उजड़ी जिंदगी को देखकर लाखों जीवन संवारने का संकल्प साध ले। लखनऊ से 30 किलोमीटर दूर एक कस्बा है मलीहाबाद। मलीहाबाद के आम दुनिया भर में मशहूर हैं। मलीहाबाद के इन्हीं आमों के बगीचे में इसी तरह के शख्स का संकल्प पल रहा है। इस शख्स का नाम है मोहम्मद सैफ। सैफ खान के बगीचों में आम तो कुछ ही महीने दिखाई देते हैं, लेकिन साल भर इन पेड़ों से पंचिंग बैग जरूर लटके मिल जाते हैं। आम के ये बगीचे गांव की लड़कियों के बॉक्सिंग रिंग हैं जहां वे बॉक्सिंग के दांव पेच सीखती हैं।
मोहम्मद सैफ खान बॉक्सर रह चुके हैं। वह नेशनल लेवल तक खेले थे लेकिन जब देखा कि उनमें और आगे बढ़ने की बहुत संभावना नहीं है तो वापस गांव लौटकर खेती, बागवानी और छोटे-मोटे बिजनेस में जुट गए। बॉक्सर बनने का उनका सपना भी अनोखा है। वह बताते हैं, ‘मेरी उम्र करीब 15 साल की थी। मैं लखनऊ गया था। वहां मैंने टीवी पर माइक टाइसन का एक बॉक्सिंग मैच देखा। टाइसन उस समय अपने करियर के चरम पर थे। मैंने ठान लिया कि मुझे भी उनके जैसा बनना है।’इसके बाद सैफ ने नेशनल लेवल बॉक्सिंग कोच नसीम कुरैशी को अपना गुरु बनाया। कुछ दिनों उनसे सीख कर सैफ ने दूसरे कोच आरएस बिष्ट की शार्गिदी की। इससे वह डिस्ट्रिक्ट और नेशनल लेवल तक बॉक्सिंग के मुकाबले में पहुंचे। लेकिन फिर आगे नहीं बढ़ पाए। इसके बाद उन्होंने गांव वापस आकर अपने बॉक्सिंग ग्लव्स खूंटी पर टांग दिए। लेकिन साल 2007-08 में कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने फिर से मुक्कबाजी के दस्ताने पहन लिए। लेकिन इस बार वजह कुछ और थी। हुआ यह कि उन दिनों उनके इलाके में कुख्यात ‘कच्छा बनियान गिरोह’ का आतंक था। ये निर्मम लुटेरे सिर्फ कच्छा-बनियान पहनकर आते थे और घरों में लूटपाट करते थे। जिस घर को लूटते वहां दरिंदगी भी करते।
एक बार इनके पड़ोस में एक घर इन लुटेरों का शिकार बना। जब सैफ उस परिवार का हाल-चाल पूछने गए तो पता चला कि घर की मूल्यवान चीजें लूटने के अलावा उन दरिंदों ने उस घर की बेटी के साथ रेप भी किया। सैफ ने घर के मुखिया से कहा कि इसकी पुलिस में शिकायत करें लेकिन वह मुकर गया, उसे बेटी की बदनामी की चिंता थी। इस वाकये ने सैफ को अंदर तक झकझोर दिया। उन्होंने तय किया कि वह लड़कियों को इतना मजबूत बनाएंगे कि उनकी तरफ कोई बुरी नजर न उठा सके। उन्होंने जोश अकैडमी समिति बनाई और उसके तहत लड़कियों को बॉक्सिंग सिखाने का फैसला किया। लेकिन यह आसान काम नहीं था। गांव के लोग अपनी बेटियों को बॉक्सिंग सिखाने के लिए राजी नहीं थे।
सैफ ने उन्हें समझाया कि बॉक्सिंग सीखकर बेटियां खुद की रक्षा तो कर ही पाएंगी साथ ही अगर वह देश के लिए खेलने के काबिल बनीं तो स्पोर्ट्स कोटे से सरकारी नौकरी भी मिलेगी। किसी तरह एक-दो लड़कियां उनके यहां सीखने आईं। उनकी कोशिशें तब रंग लाईं जब उनकी एक स्टूडेंट बीनू रावत जिला स्तर तक मुक्केबाजी प्रतियोगिता में पहुंची। उसकी कामयाबी से प्रेरित होकर और लड़कियां सीखने आने लगीं। धीरे-धीरे कुछ लड़के भी सैफ से बॉक्सिंग सीखने लगे।
इस तरह पिछले 15 बरस में सैफ ने 87 लड़कियों और 18 लड़कों को बॉक्सिंग सिखाई है। इनमें से 15 लड़कियों ने जिला, प्रदेश स्तर पर गोल्ड मेडल जीते हैं और नेशनल बॉक्सिंग कैंप तक पहुंची हैं। लेकिन सैफ के सामने सबसे बड़ी समस्या है पैसे का अभाव। इसके कारण वह बॉक्सिंग सिखाने की मूलभूत जरूरतें पूरी नहीं कर पाते। उनके पास इतना पैसा नहीं है कि बॉक्सिंग स्कूल तो दूर की बात रही, बॉक्सिंग रिंग तक बनवा सकें।पिछले कुछ दिनों में उन्हें कुछ एनजीओ जरूर मिले हैं जिन्होंने उनकी मदद करने का वादा किया है। उम्मीद है कि जल्द ही मोहम्मद सैफ अपनी बॉक्सिंग अकैडमी में इंटरनेशनल लेवल के प्लेयर तैयार कर सकें। वह खुद कहते हैं, मेरा सपना है कि यहां मैरी कॉम जैसी खिलाड़ी तैयार हों। आखिर वह भी तो ऐसी ही एक छोटी सी जगह से थीं।