Thursday, April 25, 2024
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जानिए डाकू सीमा यादव की कहानी!

आज हम आपको डाकू सीमा यादव की कहानी बताने जा रहे हैं! वो किसी फिल्मी हिरोइन से कम नहीं थी। तीखे नैन-नक्श, गोरा सुंदर चेहरा, परफेक्ट फिगर और अदाएं ऐसी कि कोई भी कायल हो जाए। लेकिन उसके नसीब में बॉलीवुड नहीं, चंबल का बीहड़ लिखा था। बेशक उसकी खूबसूरती के कई दिवाने होंगे, बेशक उसकी अदाओं से कई लोग घायल हुए हुए होंगे, लेकिन वो प्यार के फूल नहीं खिला पाई क्योंकि बेहद छोटी उम्र में उसकी नाजुक कलाइयों ने बंदूक उठा ली। अल्हड़पन के दिनों में ही उसने खुद को इतना सख्त बना लिया कि उसके खौफ का डंका दूर-दूर तक बजने लगा।

ये कहानी है दस्यु सुंदरी सीमा यादव की, जिसका जीवन बेहद मुश्किलों भरा रहा। कानपुर के महरूपुर गांव में सीमा का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। अभी सीमा 11 साल की ही हुई थी कि पिता ने उसकी शादी इटावा के एक लड़के कल्लू सिंह से करवा दी। कल्लू सीमा से उम्र में 14 साल बड़ा था, लेकिन उन दिनों ये आम बात थी। छोटी उम्र की लड़कियों की शादियां काफी बड़े लड़कों से करवा दी जाती थी। सीमा ने भी इसे पिता का हुक्म मानते हुए स्वीकार किया। बचपन में गुड़िया सी दिखने वाली सीमा की खूबसूरती अब भी छटाएं बिखेर रही थी। शादी के बाद वो अपने ससुराल इटावा आ गई थी।ये क्या! ससुराल का माहौल तो अजीब था। पति के घर में अक्सर डाकुओं का आना-जाना लगा रहता। छोटी सी सीमा समझ नहीं पा रही थी कि चल क्या रहा है। खूबसूरती ने उसकी मुश्किल और बढ़ा दी। घर आने वाले डाकुओं की उस पर बुरी नज़र पड़ने लगी। उसने अपने पति से इस बारे में बात की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। सीमा ने अपने मायके जाकर पिता को भी डाकुओं के घर आने की बात बताई, लेकिन पिता ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। नन्हीं सीमा कर भी क्या सकती थी, वो मजबूर थी उसी घर में रहने के लिए। उसे डाकुओं का घर आना बिल्कुल पसंद नहीं था, लेकिन वो जब भी इस बारे में अपने पति से बात करती, वो उसकी पिटाई कर देता।

शादी के करीब सात महीने ही गुजरे थे कि एक दिन सीमा के पति ने चंद पैसों के लिए उसे डाकुओं के हवाले कर दिया। उसकी खूबसूरती पर फिदा होकर डाकू चंदन यादव ने उसके पति से उसका सौदा कर लिया। साठ हज़ार रुपये में बात तय हुई। मारपीट कर जबरदस्ती सीमा को चंदन यादव के पास भेज दिया गया। अब सीमा के सिर पर छत नहीं थी। था तो बस चंबल का वीरान बीहड़। डाकुओं के बीच 12 साल की लड़की एकदम अकेली। सीमा के पास कोई रास्ता नहीं बचा था। डाकुओं के जुल्मों के बीच ही उसे अपनी ज़िंदगी बीतानी थी।

बस यहीं से शुरू हुई सीमा की डाकू बनने की कहानी। जो हुआ सीमा ने उसे नियति मान लिया और फिर डाकुओं के आतंक से तंग आकर खुद भी बंदूक उठा ली। वो चंदन यादव गैंग में ही शामिल थी। वो जवान हो रही थी। खूबसूरती उसकी जवानी की मुनादी कर रही थी। चंबल के बीहड़ों में भी सीमा यादव के चाहने वालों की कमी नहीं थी। वो थी तो चंदन यादव के गैंग में, लेकिन वो उस आदमी से नफरत करती थी। आखिर चंदन की वजह से ही तो उसे बीहड़ में बंदूक उठानी पड़ी। चंदन यादव को वो कभी माफ नहीं कर पाई। वो कभी नहीं भूल पाई वो दिन, जब चंदन ने उसका सौदा किया था।

चंदन यादव के गैंग का हिस्सा होने के बावजूद सीमा अपना एक अलग गुट बना रही थी। दिन बीतने के साथ-साथ वो अपने दम पर ताकत जुटाती गई। किडनैपिंग, लूटपाट, हत्या, मारपीट में अक्सर उसका नाम सामने आने लगा। सीमा पुलिस के निशाने पर आ गई। करीब 15 साल तक ये डाकू हसीना चंबल के बीहड़ों से आतंक फैलाती रही। वो चंदन यादव के खिलाफ नफरतों से भरी पड़ी थी और सबक सिखाने की फिराक में थी।

2005 में सीमा को ये मौका मिल गया। एक मुठभेड़ में मौका पाकर सीमा यादव ने चंदन यादव का काम तमाम कर दिया। जिस आदमी की वजह वो चंबल के बीहड़ में रहने को मजबूर थी, उसका कत्ल करने के बाद वो इस ज़िंदगी से आजाद थी। चंदन यादव की हत्या के बाद सीमा ने एसएसपी दलजीत चौधरी के सामने सरेंडर कर दिया। सीमा के ऊपर कई मामले दर्ज थे, इसलिए कोर्ट ने सात साल की सजा सुनाई।

सीमा को बीहड़ से छुटाकार मिल चुका था। जेल में सीमा यादव की मुलाकात देवेन्द्र राणा से हुई। देवेन्द्र ने सीमा की पूरी कहानी सुनी। देवेन्द्र को सीमा से हमदर्दी हुई और सीमा को दिल दे बैठा। 2014 में जब सीमा जेल से छूटकर बाहर आई तो उसके माता-पिता ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया। इसके बाद देवेन्द्र राणा ने चंबल की डकैत सीमा यादव से शादी की। दोनों की एक बेटी भी है। हालांकि, अभी वह एक हत्या के मामले में कानपुर जेल में बंद है।

चंबल के बीहड़ से छुटकारा पाने के बाद सीमा यादव ने राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमाई। जेल में रहकर ही वो तीन बार विधानसभा चुनाव में दावेदारी ठोंकी। सीमा का कहना है कि वो सामाजिक काम करना चाहती है। वो महिलाओं के विकास के लिए काम करना चाहती है। फूलन देवी को अपना आदर्श मानने वाली सीमा यादव की राजनीतिक पार्टियों को लेकर अक्सर प्रतिक्रियाएं भी आती रहती हैं। आज भी अगर सीमा यादव से बात की जाए तो वह अपने चंबल के उन भयानक दिनों को याद करके भावुक हो जाती है।

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