मंकीपॉक्स आज पूरे देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में आतंक मचा रहा है! 1950 के दशक की बात है, दुनिया पोलियो की बीमारी के खिलाफ जंग को लेकर गंभीर हो रही थी। यूरोप और उत्तरी अमेरिका में वैक्सीन बना रही प्रयोगशालाओं को टेस्ट के लिए बड़े पैमाने पर बंदरों की जरूरत थी। साल 1958 में डेनमार्क की एक लैब ने पाया कि मलेशिया से भेजे गए बंदर चेचक जैसी एक रहस्यमय बीमारी से ग्रसित हैं। कोपेनहेगन के स्टेट सीरम इंस्टीट्यूट में जब इसकी जांच की गई तो पाया गया कि यह एक नए वायरस की वजह से है। वैज्ञानिकों ने इसे मंकीपॉक्स नाम दिया। साल 1958 से लेकर 1968 तक लैब में उन बंदरों में मंकीपॉक्स के कई मामले सामने आए जो एशिया से भेजे गए थे।वैज्ञानिकों को उस समय लगा कि मंकीपॉक्स का गढ़ एशिया है। वह भी तब जब भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया और जापान से भेजे गए करीब 1 हजार बंदरों के खून के नमूनों में मंकीपॉक्स के एंडीबॉडी नहीं पाए गए। यह थोड़ा अटपटा था क्योंकि एक वायरल संक्रमण में एंटीबॉडी पैदा होता है जो पशुओं के खून में आने वाले कई वर्षों में पाया जा सकता है। इस वायरस के स्रोत के रहस्य का खुलासा 1970 के दशक में उस समय हुआ जब जायरे में मंकीपॉक्स के इंसान में संक्रमण का पहला मामला सामने आया। अफ्रीकी देश जायरे को अब कांगो के नाम से जाना जाता है जहां इस समय बड़ी संख्या में लोग मंकीपॉक्स से संक्रमित हैं।
मंकीपॉक्स का पहला मामला
मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के कई देशों में लिए गए पशुओं के खून के नमूनों में बंदरों की 7 प्रजातियों और गिलहरियों की 2 प्रजातियों के मंकीपॉक्स के एंटीबॉडी पाए गए। एशियाई बंदर संभवत: उस समय मंकीपॉक्स का शिकार हो गए जब उन्हें लैब में अफ्रीकी बंदरों के साथ ले जाया जा रहा था। दुनिया में चेचक के खात्मे के लिए 1967 में अभियान शुरू किए जाने के मात्र 3 साल बाद ही इंसानों में मंकीपॉक्स पाए जाने से वैज्ञानिक टेंशन में आ गए। ये दोनों ही बीमारियां काफी हदतक एकजैसी थीं। मंकीपॉक्स अगर अफ्रीका में फैलता तो यह चेचक के खात्मे के लिए चलाए जा रहे अभियान को पीछे छोड़ सकता था। जायरे या कांगो में 9 महीने के बच्चे में मंकीपॉक्स के पहले मामले ने वैज्ञानिकों के इस भय को पुष्ट कर दिया।
इस बच्चे को 22 अगस्त, 1970 को बुखार आया था। 24 अगस्त को उसके शरीर पर चकत्ते पड़ गए थे। जब उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया तो किसी को यह अहसास नहीं था कि बच्चे को मंकीपॉक्स हुआ है। इसकी जांच के लिए उसके नमूनों को रूस की एक लैब में भेजा गया जहां मंकीपॉक्स से संक्रमण का खुलासा हुआ। इस बच्चे को ठीक होने में 2 महीने लगे लेकिन जब डॉक्टर उसे डिस्चार्ज करने की सोच रहे थे तब उसे खसरा हो गया और उसकी मौत हो गई। इसके बाद लाइबेरिया, नाइजीरिया, सियरालियोन और आइवरी कोस्ट जैसे अफ्रीकी देशों में इस बीमारी के मामलों की पुष्टि हुई। हालांकि अच्छी बात यह थी कि मंकीपॉक्स के ज्यादातर मामले मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के प्राकृतिक जलाशयों तक ही सिमटे हुए थे।
इनमें से 90 फीसदी मामले उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में स्थित छोटे-छोटे गांवों में सामने आए थे। इन गांवों में लोग शिकार करते थे और अक्सर जंगली जानवरों के संपर्क में आते थे। एक चौंकाने वाला मामला उस समय आया था जब एक चिंपाजी ने 6 महीने के बच्चे का अपहरण कर लिया और जब वह वापस आया तो एक सप्ताह बाद उसे बुखार आना शुरू हो गया और चकत्ते निकल आए। जांच मं इसे मंकीपॉक्स पाया गया। हालांकि आंकड़ों की जांच में यह खुलासा हुआ कि मंकीपॉक्स बहुत संक्रामक नहीं है। एक और रोचक आंकड़ा यह निकलकर आया कि मंकीपॉक्स पहले मरीज से 11 वें मरीज तक संक्रमण के बाद प्राकृतिक रूप से अपने आप ही मर जाता है। यही वजह है कि मंकीपॉक्स अफ्रीका में बहुत ज्यादा नहीं फैल पाया। हालांकि इसके बाद भी यह अभी 20 से ज्यादा देशों में फैल गया है। अमेरिका साल 2003 में भी मंकीपॉक्स के 82 मामले सामने आए थे। इसके बाद सरकार ने अफ्रीका से आए चूहों और अन्य जीवों को मार दिया और संक्रमण रुक गया। इसमें किसी इंसान की जान नहीं गई।इस बच्चे को 22 अगस्त, 1970 को बुखार आया था। 24 अगस्त को उसके शरीर पर चकत्ते पड़ गए थे। जब उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया तो किसी को यह अहसास नहीं था कि बच्चे को मंकीपॉक्स हुआ है। इसकी जांच के लिए उसके नमूनों को रूस की एक लैब में भेजा गया जहां मंकीपॉक्स से संक्रमण का खुलासा हुआ। इस बच्चे को ठीक होने में 2 महीने लगे लेकिन जब डॉक्टर उसे डिस्चार्ज करने की सोच रहे थे तब उसे खसरा हो गया और उसकी मौत हो गई। इसके बाद लाइबेरिया, नाइजीरिया, सियरालियोन और आइवरी कोस्ट जैसे अफ्रीकी देशों में इस बीमारी के मामलों की पुष्टि हुई।