Thursday, April 25, 2024
HomeIndian Newsऐसा शानदार बल्लेबाज जो अब चला रहा है ऑटो रिक्शा!

ऐसा शानदार बल्लेबाज जो अब चला रहा है ऑटो रिक्शा!

आज हम आपको ऐसे शानदार बल्लेबाज के बारे में बताने जा रहे है, जो वर्तमान में ऑटो रिक्शा चला रहा है! 2017 की गर्मियां, मेरठ में ‘हौसलों की उड़ान’ नाम का नैशनल लेवल क्रिकेट मैच चल रहा था। दिल्‍ली के खिलाफ उत्‍तर प्रदेश के लिए खेलते हुए राजा बाबू ने 20 गेंद में 67 रन कूट दिए। उस पारी के लिए राजा बाबू को न सिर्फ तारीफें मिलीं, बल्कि इनाम भी। ताबड़तोड़ बैटिंग से प्रभावित होकर एक लोकल कारोबारी ने राजा बाबू को ई-रिक्‍शा दिया। बाबू ने तब सोचा भी नहीं था कि यह इनाम एक दिन उनके इतना काम आएगा। बाएं हत्‍था क्रिकेटर की पहचान विस्‍फोटक बल्‍लेबाज के रूप में बनी। दिव्‍यांग क्रिकेट सर्किट में स्‍टेट और नैशनल लेवल के टूर्नमेंट्स में राजा बाबू का जलवा हो गया। 2017 में IPL की दर्ज पर एक T20 टूर्नमेंट में मुंबई की टीम का कप्‍तान चुन लिया गया। हालांकि पिछले दो साल से भी ज्‍यादा वक्‍त से राजा बाबू गाजियाबाद की सड़कों पर वही ई-रिक्‍शा चला रहे हैं। राजा बताते हैं कि कोरोना वायरस महामारी ने उनके करियर और जिंदगी, दोनों की दिशा बदलकर रख दी। अब उन्‍हें चार लोगों के परिवार जिनमें पत्‍नी निधि और बच्‍चे- कृष्‍णा और शानवी शामिल हैं, को पालने के लिए रोज सड़कों की खाक छाननी पड़ती है।

क्रिकेट खेलने के दौरान भी बाबू को इधर-उधर का काम करना पड़ता था। कभी-कभी इनकम बढ़ाने को ई-रिक्‍शा भी चलाया। लेकिन असल परेशानी 2020 में आई जब यूपी में दिव्‍यांग क्रिकेटर्स के लिए बनी चैरिटेबल संस्‍था, दिव्‍यांग क्रिकेट एसोसिएशन (DCA) भंग कर दी गई। राजा बाबू के लिए पैसों की आमद रुक गई। बाबू कहते हैं, ‘उससे सच में हमारी कमर टूट गई। शुरुआती कुछ महीने मैंने गाजियाबाद की सड़कों पर दूध बेचा और जब मौका मिला ई-रिक्‍शा चलाया। टीम के मेरे बाकी साथी उस दौरान मेरठ में ‘डिसेबल्‍ड ढाबा’ पर डिलिवरी एजेंट्स और वेटर्स का काम करते थे। वह ढाबा एसोसिएशन के संस्‍थापक और कोच अमित शर्मा ने खोला था।’

DCA उत्‍तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (UPCA) की छत्रछाया में नहीं था। शर्मा ने हमारे सहयोगी टाइम्‍स ऑफ इंडिया को बताया, ‘हमने कुछ लोकल कारोबारियों की मदद और चंदे से एसोसिएशन चलाई। टूर्नमेंट्स के दौरान ट्रांसपोर्ट और खाने का खर्च कवर हो जाता था। DCA न तो BCCI के तहत था, न ही UPCA के, ऐसे में खिलाड़‍ियों की फिक्‍स्‍ड इनकम नहीं थी। मैन ऑफ द मैच की अवार्ड मनी के रूप में उन्‍हें जो कुछ मिलता था, वही उनकी सैलरी थी।’

ट्रोफियों और मेडल्‍स से भरे कमरे में बैठे बाबू अपनी आवाज से निराशा जाहिर नहीं होने देते। उनकी बातों में पिच पर वापसी की उम्‍मीद झलकती है। वह कहते हैं, ‘1997 में स्‍कूल से घर लौटते वक्‍त एक ट्रेन हादसे में मैंने बायां पैर खो दिया। उस वक्‍त मेरे पिता रेलवे में ग्रेड IV कर्मचारी थे और कानपुर के पनकी में तैनात थे। हादसे के बाद मेरी पढ़ाई रुक गई क्‍योंकि परिवार स्‍कूल की फीस नहीं चुका सकता था। हादसे ने मेरी जिंदगी बदली मगर मैंने सपने देखना नहीं छोड़ा।’ महामारी में एक के बाद एक झटकों के बावजूद राजा का जीवट बरकरार है।

बाबू और क्रिकेट का रिश्‍ता 12 साल की उम्र से शुरू हुआ जब उन्‍होंने गली क्रिकेट में हाथ आजमाया। 2000 में उन्‍होंने कानपुर में आरामीना ग्राउंड पर ट्रेनिंग शुरू की। 23 साल की उम्र में वह जिला स्‍तर के टूर्नमेंट्स खेल रहे थे। बाबू ने हमें बताया, ‘2013 में मैंने बिजनौर में कुछ टूर्नमेंट्स खेले। उसी दौरान शर्मा जो तब DCA के निदेशक थे, मुझे एसोसिएशन से जुड़ने को कहा। 2015 के उत्‍तराखंड दिव्‍यांग क्रिकेट टूर्नमेंट में मुझे बेस्‍ट प्‍लेयर का अवार्ड मिला। अगले साल मैं यूपी टीम का कैप्‍टन बन गया।’ बाबू के अनुसार, वह उनके करियर के कुछ सबसे अच्‍छे साल रहे।

शादी के बाद 2014 में बाबू नौकरी की तलाश में गाजियाबाद आ गए। उन्‍होंने कहा, ‘मैंने जूता बनाने वाली एक फैक्‍ट्री में 200 रुपये दिहाड़ी पर काम शुरू किया। पैसा जरूरी था लेकिन क्रिकेट और फैक्‍ट्री के काम में तालमेल बिठा पाना बहुत मुश्किल हो रहा था इसलिए छह महीनों बाद नौकरी छोड़कर सिर्फ क्रिकेट पर फोकस करने की सोची।’ बाबू ऐसे खिलाड़ी थे जिनको हर टीम अपने साथ चाहती थी। टूर्नमेंट के हिसाब से वह कभी क्रचेज के साथ खेलते, कभी वीलचेयर पर। किस्‍मत चमकी तो यूपी और गुजरात में उन्‍होंने कुछ अवार्ड्स जीते। 2016 में वह नैशनल लेवल के टूर्नमेंट में मैन ऑफ द मैच रहे। बाद में उसी साल बिहार सरकार ने उन्‍हें खेल के क्षेत्र में योगदान के लिए सम्‍मानित किया।

इन सबके बावजूद नियमित आय और बढ़‍िया बैंक बैलेंस का भरोसा नहीं मिल सका। प्रफेशनल क्रिकेट की तरह दिव्‍यांग क्रिकेट में पैसा नहीं बहता। बाबू कहते हैं, ‘मैच खेलते हुए मुझे मेडल्‍स भी मिले और इज्‍जत भी मगर गुजारे के लिए उतना काफी नहीं था। 2022 में मैंने मध्‍य प्रदेश के लिए फिर से वीलचेयर क्रिकेट खेलना शुरू किया लेकिन महामारी के चलते कुछ मैच ही हो पाए। हम भी क्रिकेटर्स हैं मगर महामारी के दौरान हमें क्रिकेट संस्‍थाओं से कोई मदद नहीं मिली। हम वह खा रहे थे जो भले लोग सड़क पर बांटते थे। जब लॉकडाउन लगा तो जमा के नाम पर मेरे पास कुल 3,000 रुपये थे। वो कितने दिन चलते भला? मैंने दो बार घर बदला क्‍योंकि किराया चुकाने के पैसे नहीं थे।’

बांग्‍लादेश जैसे देशों में दिव्‍यांग क्रिकेटर्स का सारा खर्च क्रिकेट एसोसिएशन उठाती है। उन्‍हें रिटायरमेंट के बाद पेंशन भी मिलती है। उन्‍होंने कहा कि ‘BCCI को भी इस दिशा में कदम उठाने चाहिए ताकि दिव्‍यांग क्रिकेटर्स पैसे और नौकरी की चिंता किए बिना खेल सकें।’ इसी साल अप्रैल में, BCCI की शीर्ष काउंसिल ने दिव्‍यांगों, मूक-बधिरों और वीलचेयर पार्टिसिपेंट्स के बीच क्रिकेट को प्रमोट करने के लिए डिफरेंटली एबल्‍ड क्रिकेट काउंसिल ऑफ इंडिया (DCCI) को आधिकारिक संस्‍था के रूप में मान्‍यता दी है।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments