इस सप्ताह में है दो बड़े हिन्दू पर्व,जाने कौन से है ये पर्व
आपको शायद पता होगी की इस सप्ताह में दो बड़े पर्व है।जिसमे से एक मंगलवार को था । जो ज्येष्ठ माह ही पूर्णिमा है। वही बुद्धवार यानी कल मिथुन संक्रान्ति पर मानया गया । और तभी से हिन्दू कैलेंडर का आषाढ़ मास शुरू हो जायेगा।अच्छी बात ये है की माह के प्रथम दिन में ही सूर्य पर्व होना एक अच्छा योग बना रहा है।पुराणों के अनुसार पूर्णिमा और उसके अगले दिन संक्रान्ति होने पर दोनो दिन किया गया तीर्थ स्नान और दान अक्षय पुण्य देता है। अर्थ ये है की इन दोनो दिन किए गए स्नान और दान का फल जिंदगी भर लाभ देता है।ज्योतिषचार्यों के अनुसार इस दिन सूर्य भगवान वृष राशि से मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे और इसी समय सौर आषाढ़ मास शुरू हो जाएगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, बुधवार को संक्रांति होने से शासन, प्रशासन, शासकवर्ग के लिए तो यह शुभ संकेत है लेकिन पूरे माह पर्वतीय क्षेत्रों में बारिश और महंगाई चरम पर रहने की संभावना है।
इस दिन सूर्य का राशि परिवर्तन करता है।
सूर्य के राशि परिवर्तन को सक्रांति कहा जाता है। सूर्य 14 मई को शाम 5:33 पर वृषभ राशि में गए थे और अब 14 जून को बुद्धवार के दिन मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे। मिथुन राशि में सूर्य का संक्रमण आषाढ़ सक्रांति कहलाता है। आषाढ़ सक्रांति 14 जून को रात्रि 23:53 पर आरंभ होगी । इस सक्रांति का स्नान और पुण्य काल अगले दिन प्रातः काल 06:17 तक रहेगा।
जाने आषाढ़ संक्रांति का महत्व :
ऐसी मान्यता भी है कि आषाढ़ मास में भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए ब्रह्मचारी रहते हुए नित्य प्रति भगवान लक्ष्मी नारायण की अगर पूजा अर्चना की जाए तो पुण्य फल प्राप्त होता है। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि इस मास में विष्णु के सहस्त्र नामों का पाठ भी करना चाहिए तथा एकादशी तिथि, अमावस्या तिथि और पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों को भोजन, छाता, खड़ाऊं, आंवले, आम, खरबूजे आदि फलों, वस्त्र व मिष्ठान आदि का दक्षिणा सहित यथाशक्ति दान करना चाहिए। इससे जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति होती है और आशाओं व खुशियों का संचार भी होता है। भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर प्रांतों में इस सक्रांति को माता पृथ्वी के वार्षिक मासिक धर्म चरण के रूप में भी मनाया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र और हमारी संस्कृति के मुताबिक सूर्य का राशि परिवर्तन एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है। इस राशि परिवर्तन की बहुत धार्मिक महत्ता भी होती है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में सूर्य को देवता का दर्जा दिया गया है और इन्हें प्रकाश, ऊर्जा, आध्यात्मिक शक्ति, आशा और पौरुष प्रवृत्ति का प्रतीक माना गया है। इसे आत्मा का कारक भी कहा गया है और इसी वजह से लोग प्रात: उठकर सूर्य नमस्कार करते हैं। सूर्य हमें सदैव सकारात्मक चीजों की ओर प्रेरित करते हैं। दिशाओं में यह पूर्व दिशा के स्वामी होते हैं जबकि धातुओं में यह तांबा और सोने का प्रतिनिधित्व करते हैं।
वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह जन्म कुंडली में पिता का प्रतिनिधित्व करता है। सूर्य सिंह राशि का स्वामी है और मेष राशि में यह उच्च जबकि तुला राशि में नीच का होता है। सूर्य ग्रह कभी वक्री चाल नहीं चलता। सूर्य के राशि परिवर्तन से जातकों के राशिफल पर तो असर पड़ता ही है साथ ही सूर्य के परिवर्तन से सौर वर्ष के मास की गणना भी की जाती है। सूर्य चाल के आधार पर ही हिंदू पंचांग की गणना संभव है। सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करता है तो उसे एक सौर माह कहा जाता है । राशि चक्र में 12 राशियां होती हैं। इसलिए संपूर्ण राशि चक्र को पूरा करने में सूर्य को एक वर्ष लगता है।
मिथुन संक्रांति 2022 शुभ मुहूर्त
मिथुन संक्रांति इस साल 15 जून को मनाया गया । मिथुन संक्रांति का पुण्यकाल (Mithun Sankranti 2022 puja shubh muhurat) का समय दोपहर 12 बजकर 18 मिनट से शुरू होगा और शाम को 7 बजकर 20 मिनट तक था ।आपको बता दें कि पुण्यकाल की पूरी अवधि 7 घंटे 2 मिनट । वहीं, महापुण्य काल का समय दोपहर 12 बजकर 18 मिनट पर शुरू होगा और दोपहर 2 बजकर 38 मिनट कर रहेगा। इसकी कुल अवधि 2 घंटा 20 मिनट थी ।
मिथुन संक्रांति 2022 कथा
माना जाता है कि जैसे औरतों को हर महीने मासिक धर्म होता है। जो उनके शरीर के विकास का प्रतीक है। वैसे ही धरती मां या भूदेवी को भी शुरुआत के तीन दिनों में मासिक धर्म हुआ। जो धरती के विकास का प्रतीक है। मिथुन संक्रांति पर्व में ये तीन दिन यही माना जाता है कि भूदेवी को मासिक धर्म हो रहे है। चौथे दिन भूदेवी को स्नान कराया गया।इस दिन को वासुमती गढ़ुआ कहते है। पिसने वाले पत्थर जिसे सिल बट्टा कहते है, भूदेवी का रूप माना जाता है। इस पर्व में धरती की पूजा की जाती है, ताकि फसल अच्छी मिल सके।विष्णु के अवतार जगतनाथ भगवान की पत्नी भूदेवी की चांदी की प्रतिमा आज भी उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर (Mithun Sankranti 2022 katha) में विराजमान है।