Friday, March 29, 2024
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भारत किसको दे रहा पिनाका रॉकेट लॉन्चर? जानिए!

भारत पिनाका रॉकेट लॉन्चर के साथ अपनी सुरक्षा की राजनीति खेलने में लगा हुआ है!भारत ने आर्मीनिया को पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर बेचने की मंजूरी दे दी है। इसी के साथ आर्मीनिया ऐसा पहला देश बन गया है जो स्वदेशी पिनाका को अपनी सेना में शामिल करेगा। आर्मीनिया लंबे समय से अपने पड़ोसी देश अजरबैजान की आक्रामकता का सामना कर रहा है। अभी चंद दिनों पहले ही अजरबैजानी सेना के हमले में आर्मीनिया के 50 से अधिक सैनिकों की मौत हो गई थी। 2020 में आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच नागोर्नो काराबाख को लेकर 3 महीने तक भीषण युद्ध हुआ था। उस समय आर्मीनिया को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। बाद में रूस के बीच-बचाव और सेना भेजने के बाद नागोर्नो काराबाख में शांति स्थापित हुई थी। ऐसे में आर्मीनिया खुद को सैन्य रूप से ताकतवर बनाने के लिए कोशिश कर रहा है। आर्मीनिया की हालत कमोबेश भारत जैसे ही है। भारत के कश्मीर की तरह अजरबैजान भी नागोर्नो काराबाख पर कब्जे के लिए आर्मीनियाई कब्जे वाली जमीन पर हमले करते रहता है। आर्मीनिया ईसाई बहुल देश है, जबकि अजरबैजान इस्लामिक राष्ट्र है।

विशेषज्ञों के अनुसार, तुर्की पाकिस्तान सैन्य सहयोग से अजरबैजान का उदय भारत के लिए सीधी चेतावनी है। अजरबैजान ने इस्लाम के नाम पर तु्र्की और पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ाकर कई घातक हथियार हासिल किए हैं। इन्हीं हथियारों के दम पर वह आर्मीनिया को गहरे जख्म देता रहा है। भारत को यह भी आशंका है कि अजरबैजान को उदाहरण के तौर पर देखकर कई दूसरे देश भी पाकिस्तान और तुर्की की गोद में जा सकते हैं। इन तीनों देशों ने पिछले साल ‘थ्री ब्रदर्स’ नाम से एक संयुक्त अभ्यास भी किया था। इसमें पाकिस्तान, तुर्की और अजरबैजान की सेनाओं ने हिस्सा लिया था। यह युद्धाभ्यास आर्मीनिया के खिलाफ 44 दिनों तक चले अजरबैजानी नरसंहार के चंद महीनों के अंदर ही किया गया था।

अजरबैजान ने 2020 में तुर्की से खरीदे गए बायरकटार टीबी-2 ड्रोन के जरिए आर्मीनियाई सेना को जबरदस्त चोट पहुंचाई थी। इन ड्रोन हमलों ने आर्मीनियाई तोपखाने, टैंक और मिलिट्री बेस पर कहर बरपा दिया था। अजरबैजान अब पाकिस्तान के साथ अपने सैन्य संबंधों को मजबूत करने के लिए जेएफ -17 लड़ाकू विमानों की खरीद पर भी बातचीत कर रहा है। जेएफ-17 चीन का बनाया और पाकिस्तान में असेंबल किया गया लड़ाकू विमान है, जिसका इस्तेमाल खुद चीन भी नहीं करता है। लेकिन, इस खरीद से पाकिस्तानी सैन्य उद्योग को फायदा हो सकता है। ऐसे में पाकिस्तान अन्य देशों में भी अपने लड़ाकू विमान की मार्केटिंग कर सकता है।

तुर्की और अजरबैजान हाल के दिनों में कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के दृढ़ समर्थक रहे हैं। दोनों देश जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 को वापस लेने के भारत के फैसले के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी प्रोपगैंडा का भी हिस्सा बनते रहे हैं। बदले में, पाकिस्तान ने हमेशा आर्मीनिया के साथ नागोर्नो कराबाख क्षेत्रीय विवाद पर अजरबैजान की लाइन का समर्थन किया है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान तुर्की को भी रिटर्न गिफ्ट में ग्रीस के साथ द्वीप विवाद पर समर्थन देता है। अजरबैजान ने अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी में सहायता करने में पाकिस्तान की भूमिका और प्रयास की सराहना भी की है।

दिलचस्प बात यह है कि आर्मेनिया की तुलना में भारत के अजरबैजान के साथ अधिक मजबूत आर्थिक संबंध हैं। भारतीय कंपनी ओएनजीसी ने अजरबैजान के गैस के क्षेत्र में काफी निवेश भी किया है। लेकिन, अजरबैजान ने शुरू से ही आर्थिक संबंधों को महत्व न देते हुए कश्मीर पर पाकिस्तान का समर्थन किया है। ऐसे में भारत ने भी अपनी विदेश नीति को बदलते हुए सीधे तौर पर आर्मीनिया को हथियारों की सप्लाई करने का फैसला किया है। इससे भारत की डिफेंस इंडस्ट्री को लाभ होगा ही साथ में विदेशों में भारतीय हथियारों की स्वीकार्यता भी काफी बढ़ेगी।

अजरबैजान की तुलना में आर्मीनिया के दुनिया की दो महाशक्तियों रूस और अमेरिका के साथ अच्छे ताल्लुकात हैं। 1991 में सोवियत संघ के विघटन से पैदा हुए दोनों देश रूस के करीबी हैं, लेकिन पुतिन आर्मीनिया को ज्यादा पसंद करते हैं। 2020 के आर्मीनिया अजरबैजान युद्ध में पुतिन के हस्तक्षेप से ही शांति समझौता हुआ था। वहीं, हाल में ही अमेरिकी कांग्रेस की अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी ने भी आर्मीनिया की यात्रा कर अजरबैजान को हमलावर और उकसाने वाला देश बताया। भारत ने इन सैन्य झड़पों पर किसी देश का नाम न लेते हुए आक्रामक पक्ष से शत्रुता को रोकने के लिए कहा था।

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