आज हम आपको स्कूल बस के महत्वपूर्ण नियमों के बारे में बताने जा रहे हैं! बच्चे माता पिता की जान होते हैं। पैरेंट्स को हर वक्त बच्चों की फिक्र बनी रहती है। तब भी जब वे स्कूल जाते हैं। बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल बसों में विद्यालय जाते हैं। इन स्कूल बसों को लेकर अक्सर शिकायतें भी आती हैं। कभी बच्चे सीटें खराब होने की बात कहते हैं तो कभी जगह कम होने की। ओवरस्पीडिंग की तो जब-तब खबरें आती हैं। यह सबकुछ तब है जब स्कूल बसों को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने स्पष्ट दिशानिर्देश दिए हुए हैं। इनमें बच्चों की सेफ्टी के अलावा उनके आराम पर खास तवज्जो दी गई है। स्कूल बसें कैसी होनी चाहिए और उनकी क्वालिटी क्या हो, इस पर स्पष्ट निर्देश हैं। बावजूद इसके अगर इन मानकों का पालन नहीं किया जाता है तो पैरेंट्स को प्रिंसपल के अलावा उचित मंचों पर इस मसले को उठाने का अधिकार है। काफी माता-पिता ऐसे हैं जिन्हें इन नियमों की जानकारी नहीं है। आइए, यहां हम आपको बताते हैं कि एक स्कूल बस में क्या-क्या चीजें होनी चाहिए।
स्कूल बस का रंग कुछ भी नहीं हो सकता है। इसे सिर्फ पीला होना चाहिए। यह रंग इंटरनेशनल पैरामीटर पर रखा गया है। दरअसल, अन्य दूसरे रंगों की अपेक्षा पीला रंग आंखों को जल्दी दिखाई देता है। यही कारण है कि भारत में ही नहीं, दुनियाभर में स्कूल बसों के लिए पीले रंग को अपनाया गया है। इसे लेकर एक स्टडी में पाया गया कि तमाम रंगों में सबसे ज्यादा ध्यान पीले रंग पर जाता है। इसी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी स्कूल बसों को पीले रंग से रंगने के लिए अनिवार्य किया।
निर्देशों के अनुसार, सभी स्कूल बसों के आगे और पीछे ‘School Bus’ लिखा होना जरूरी है। इसके पीछे वजह यह है कि दूसरे वाहन चालक जान सकें कि उनके आसपास से स्कूल बस गुजर रही है। उन्हें स्कूल बस को जाने के लिए जगह देनी है। स्कूल बसें कुछ खास समय पर ही सड़कों पर चलती हैं। यह ड्राइवर को बिना रुकावट स्कूल बसों को दूसरे वाहनों के बीच से निकालने में मदद करता है।किसी भी स्कूल बस में फर्स्ट-एड बॉक्स का होना जरूरी है। दुर्घटना में यह मददगार साबित होता है। इसके चलते अस्पताल पहुंचने से पहले ही बच्चों का शुरुआती उपचार करने में मदद होती है। फर्स्ट-एड बॉक्स के अंदर पट्टी, एंटी-सेप्टिक लोशन, पेनकिलर्स, बैंडेज और दूसरी जरूरी दवाएं होनी चाहिए। यह इस तरह का होना चाहिए जिसका इस्तेमाल कोई भी कर सके। बस में इसे ऐसे रखा जाना चाहिए ताकि यह सभी बैठे हुए लोगों को दिखाई दे।
स्कूल बस की खिड़कियां कैसी हों, इस पर भी निर्देश हैं। इन खिड़कियों के बीच में ग्रिल होना चाहिए। इसका मकसद यह है कि बच्चे बाहर हाथ या सिर को बाहर नहीं निकाल सकें। ऐसा देखने को मिला है कि शैतानी करते हुए बच्चों ने सिर या हाथ बाहर निकाला और उनके साथ हादसा हो गया।स्कूल बस में बच्चों के आराम का भी पूरा ख्याल रखा जाना चाहिए। उनके बैठने और बैग रखने के लिए अलग जगह होनी चाहिए। अक्सर देखने में आया है कि बच्चे स्कूल बसों के अंदर सीट पर बैठे हुए गोद में या कंधे पर बैग लटकाए रहते हैं। यह बिल्कुल गलत है। स्कूल बसों में इतनी पर्याप्त जगह होनी चाहिए कि वे खुद भी आराम से बैठ सकें और बस्ते को भी अलग रख पाएं।
ऐसी बसों पर स्कूल से जुड़ी हर जानकारी लिखी होनी चाहिए। यह बस के ऊपर ही डिस्प्ले होनी चाहिए। मसलन, इसमें साफ शब्दों में दिखना चाहिए कि स्कूल बस कहां की है। उसका पता क्या है। स्कूल का फोन नंबर भी दिया जाना चाहिए। प्रिंसिपल ऑफिस के नंबर का भी उल्लेख होना चाहिए।हरेक स्कूल बस में बच्चों के लिए अटेंडेंट होना चाहिए। यह उस वक्त बच्चों पर नजर रखे जब वे बसों पर चढ़ते और उतरते हैं। अटेंडेंट को बच्चों को स्कूल बस में चढ़ने और उतरने में मदद करनी चाहिए। उसे ड्राइवर को निर्देश देते रहना चाहिए कि कब बच्चों के चढ़ते और उतरते समय उन्हें बस को रोके रखना है। बच्चों के साथ तमाम हादसे स्कूल बस से चढ़ते और उतरते होते हैं।
स्कूल बस के लिए अधिकतम स्पीड निर्धारित है। यह 40 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा नहीं हो सकती है। इससे ज्यादा स्पीड पर स्कूल बस चलाने की अनुमति नहीं है। यह स्पीड बच्चों की सेफ्टी को ध्यान में रखकर तय की गई है। अगर ड्राइवर स्पीड लिमिट क्रॉस करता है तो उसकी शिकायत कोई भी कर सकता है। इस तरह की शिकायत पर स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन के लिए ऐक्शन लेना जरूरी है।