Thursday, March 28, 2024
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श्रद्धा के कातिल आफताब ने क्या कहा?

श्रद्धा की कातिल आफताब ने अपना मुंह खोला शुरू कर दिया है! दिल्ली के श्रद्धा वाकर हत्याकांड में ऐसे-ऐसे खौफनाक डीटेल सामने आ रहे हैं जिससे कोई भी हिल जाए। ज्यादातर लोगों के लिए ये हैवानियत चौंकाने वाली तो है ही, समझ से भी परे है कि आखिर कोई इस हद तक हैवान कैसे हो सकता है। क्रिमिनल साइकॉलजिस्ट्स का इस तरह की बर्बर घटनाओं से सामना होता ही रहता है। लेकिन उनके लिए भी सबसे बड़ा सवाल यही है- आखिर कोई व्यक्ति और उसमें भी ज्यादातर पुरुष इस तरह की दरिंदगी क्यों करता है? इसके पीछे क्या कोई केमिकल लोचा है? एक्सपर्ट अब भी इस सवाल का पूरा जवाब नहीं तलाश पाए हैं। तमाम मामलों को बारीकी से देख चुके एक्सपर्ट बस यही कह सकते हैं कि कुछ ऐसे संकेत होते हैं जो यह बताते हैं कि कोई शख्स इस तरह का वीभत्स कांड क्यों करता है।

सबसे पहली बात। इस तरह के अपराधी बहुत गुस्सैल होते हैं। छोटी सी बात पर भी वे भड़क सकते हैं। पार्टनर की थोड़ी सी असहमति पर भी वे अपना आपा खो सकते हैं और वे अपने पार्टनर से जवाब में ‘ना’ नहीं सुनना चाहते। वे एक आत्मविश्वासी महिला को बर्दाश्त नहीं कर सकते जो रिश्तों में जवाबदेही और बराबरी चाहती हो।दूसरी बात- इस तरह के अपराध शायद ही कभी तात्कालिक आवेश, गुस्से के झोक में होते हैं। आम तौर पर ऐसे जघन्य अपराध बहुत सोचसमझकर और व्यवस्थित ढंग से अंजाम दिए जाते हैं। ये अपराध तब होता है जब अपराधी को लगता है कि अब वह अपने पार्टनर को अपने हिसाब से नहीं चला पाएगा। अपराधी के लिए यह ‘सूबत’ होता है कि वह ‘कमजोर’ है, अब उसकी नहीं ‘चल’ रही। उसकी कल्पनाओं में उसका आत्मसम्मान चोटिल होता है। यही वह वक्त होता है जब अपराधी के मन में हत्या का विचार जन्म लेता है। वह मर्डर की फैंटसी में डूबने लगता है।

श्रद्धा का पार्टनर आफताब अमीन पूनावाला ‘शेफ’ के तौर पर भी काम कर चुका था। चाकू चलाना उसके लिए कोई नई बात नहीं थी। वह इसे अपने पसंदीदा औजार के रूप में देखता था। लेकिन जब मर्डर को लेकर उसकी फैंटसी मजबूत होने लगी तब उसका पसंदीदा औजार ही ‘पनिशमेंट’ का हथियार नजर आने लगा। उस मोड़ पर वह ‘बदले’ के लिए अपनी पार्टनर को पीड़ा देने की कल्पनाएं करने लगा होगा। बदला भी किस बात का, अपने काल्पनिक दर्द का।तीसरी बात- इस तरह के अपराधी असल पीड़ित के बजाय खुद को ‘पीड़ित’ के तौर पर देखते हैं। पूरी प्लानिंग के साथ इस तरह की बर्बरता को अंजाम देने के दोषी अपराधियों के इंटरव्यू में यह बात साफ तौर पर सामने आती है। पार्टनर को ‘दर्द देने’ को वे खुद के साथ ‘अन्याय को खत्म करने’ के रूप में देखते हैं।

यही वजह है कि इस तरह के हत्यारे शव के टुकड़े-टुकड़े कर दते हैं। ये बर्बरता समझ से परे होती है। लेकिन क्रिमिनल साइकॉलजिस्ट ने तमाम केसों में ये ऑब्जर्व किया है कि इस तरह के अपराधी को बर्बरता से आत्मसंतुष्टि मिलती है। वे इसे ऐसे कृत्य के रूप में देखते हैं जो उन्हें ‘राहत’ पहुंचाती है। ऐसे भयावह कृत्य कातिल को कुछ समय तक शांति पहुंचाते हैं। श्रद्धा वाकर हत्याकांड को लें तो ऐसा मुमकिन है कि उसके शरीर के टुकड़ों को जंगल में फेंककर आफताब सिर्फ सबूत नहीं मिटा रहा था बल्कि उसे ये करते हुए संतुष्टि भी मिल रही होगी।

इस तरह का अपराधी नहीं पकड़े जाने की स्थिति में क्या सीरियल किलर बन सकता है? इसका कोई निश्चित जवाब नहीं है। लेकिन तमाम मामलों के अध्ययन के आधार पर एक्सपर्ट की राय है कि अपराध इस तरह की बर्बरता दोहराने की कोशिश कर सकता है। यह उसे और ज्यादा संतुष्टि दे सकता है।ऐसे मामलों में अक्सर अपराधी गला घोंटकर या धीरे-धीरे पीड़ित को मौत के घाट उतारता है।श्रद्धा हत्याकांड में यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि आफताब उसके साथ मुंबई से दिल्ली क्यों शिफ्ट हुआ? इसके लिए लड़की के मां-बाप की तरफ से रिश्ते को स्वीकार नहीं किए जाने को कारण बताया जा सकता है। लेकिन ऐसे अपराधों का अध्ययन बताता है कि ऐसे मामलों में अपराधी अक्सर लंबी यात्रा करते हैं ताकि वे अपने अपराध को कम जोखिम वाले इलाके में अंजाम दे सकें। ऐसे इलाके में जहां उसे जानने वाले बहुत कम हो।

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