Tuesday, March 19, 2024
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गठबंधन के लिए क्या प्लानिंग कर रहे हैं तेजस्वी यादव?

गठबंधन विवाद के बीच तेजस्वी यादव नई प्लानिंग में जुट चुके हैं! बिहार के सियासी पर्दे पर इन दिनों एक फिल्म चल रही है। जानकार कहते हैं कि फिल्म क्लाइमेक्स के करीब पहुंच चुकी है। फिल्म का नाम है ‘तेजस्वी बिहार’ जिसके निर्माता निर्देशक कोई और नहीं महागठबंधन के चंद नेता हैं। ये नेता इस फिल्म को जल्द से जल्द सत्ता के पर्दे पर लाना चाहते हैं। पटकथा, संवाद और डायलॉग पूरे बिहार ने सुन लिया है। बस थोड़े दिनों की बात है। फिल्म का प्रदर्शन पूरे जश्न के साथ किया जाएगा। इस फिल्म के अंदर सियासी दांव-पेच, रणनीति, मौकापरस्ती और लालच सबकुछ समाहित है। बस फिल्म के सत्ता के पर्दे पर आने की देर है। पिछले सप्ताह सोमवार को शिक्षा मंत्री ने ट्वीटर पर बकायदा इस फिल्म की घोषणा कर दी। मंत्री ने ट्वीट कर लिखा- बुनियादी संसाधन, उचित पाठन, शिक्षित बिहार, तेजस्वी बिहार। देखने में भले ये सामान्य सा ट्वीट लगे। लेकिन इसके मायने जेडीयू के नेता समझ गये। जानकार मानते हैं कि शिक्षा मंत्री की इतनी हैसियत नहीं कि बिना इशारे के इतनी बड़ी बात कह दें। अंदर ही अंदर तैयारी पूरी है।

आखिर बिहार में जो इस तरह की चर्चा हो रही है उसका आधार क्या है? उन्होंने कहा कि हालिया दो तीन घटनाओं को देखने के बाद ऐसा लगता है कि बिहार में नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है। वजह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समाधान यात्रा पर निकले हुए हैं। इस यात्रा की कोई खास आवश्यकता नहीं थी। इस यात्रा में तेजस्वी भी जा सकते थे। नीतीश कुमार उन्हें साथ लेकर जा सकते थे। जब मुख्यमंत्री खुद 2025 में कार्यभार तेजस्वी को सौंपने की बात कर रहे हैं, तो तेजस्वी को साथ लेकर जाते। धीरेंद्र कहते हैं कि हालिया विधानसभा उपचुनाव में हुई जेडीयू की हार। राजद के वोटों का जेडीयू की तरफ नहीं जाना नीतीश कुमार को चिंतित कर चुका है। राजा अब अपनी इमेज और जनता के बीच पार्टी की स्थिति जानने निकले हैं। दूसरी बात ये कि मुख्यमंत्री की इस समाधान यात्रा से राजद के मंत्रियों ने दूरी बनाई हुई है। एक तरह से नीतीश कुमार उनसे दूरी बनाये हुए हैं। ये संकेत है कि महागठबंधन के अंदर सबकुछ सही नहीं है। तीसरा और महत्वपूर्ण सुधाकर सिंह प्रकरण है। चंद्रशेखर सिंह प्रकरण। कई फ्रंट पर आरजेडी अपने एजेंडे पर काम कर रही है। जेडीयू की बात को आरजेडी की ओर से गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। जेडीयू के लाख धमकाने और इशारे करने के बाद तेजस्वी अपने इन लोगों को करीबी बनाये हुए हैं।

इस बार के महागठबंधन वाली सरकार में 2015 वाली बात नहीं है। इस बार तेजस्वी अपनी अलग से छवि बनाने में लगे हुए हैं। तेजस्वी यादव और उनकी टीम नीतीश पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर पा रही है। उन्होंने कहा कि ये लिखकर ले लीजिए। रहीम के दोहे की तरह ‘जुड़े गांठ परी जाए’ वाली स्थिति है। तेजस्वी हर बार ये संदेश देने में सफल रहे हैं कि नीतीश कुमार महागठबंधन के नेता जरूर हैं, लेकिन आरजेडी में वही होगा, जो लालू और तेजस्वी चाहेंगे। नीतीश कुमार के इशारों पर आरजेडी में कुछ नहीं होगा। धीरेंद्र कहते हैं कि बिहार की राजनीति को पर्दे के पीछे से हैंडल करने वाले लोगों का मत है होली आते-आते बिहार का नेतृत्व तेजस्वी यादव के हाथ में आ जाएगा। चाहे जिस तरीके से आए। होली आने के पहले से जिस तरह से घटनाएं मुड़ रही हैं। उन राजनीतिक घटनाओं को देखने पर लगता है कि नीतीश कुमार भी इस बात को समझ रहे हैं कि महागठबंधन धीरेंद्र कहते हैं कि ऐसा मत रखने वालों की नवंबर में एक गुप्त बैठक भी हुई थी। ये लोग बिहार की सियासत को पर्दे के पीछे से चलाते हैं। धीरेंद्र ये भी कहते हैं कि तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने की चर्चा तो ठीक है, लेकिन इस पहलू पर गौर करना होगा कि वर्तमान संख्या बल क्या है? क्या संख्या बल के आधार पर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बन सकते हैं? जवाब यदि नहीं है, तो आखिर इसका गणित कहां से फिट बैठ रहा है। इसका जो गणित है, वो देश के अन्य राज्यों में आजमाया जा चुका है। ये भी हो सकता है कि तेजस्वी के ऑफर देने से जेडीयू के कुछ एक विधायक आरजेडी के पाले में चले आएं। तेजस्वी महागठबंधन के बाकी साथियों को संभाल लेंगे। उनके समर्थन के हिसाब से वे 110 का आंकड़ा पार करते हुए दिख रहे हैं। धीरेंद्र ने कहा कि अगर दस विधायक जेडीयू के इस्तीफा दे देते हैं और आरजेडी का दामन थाम लेते हैं। गेंद तेजस्वी के पाले में होगी क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष भी राजद के हैं।

बिहार में नेतृत्व परिवर्तन हुआ और फ्लोर टेस्टिंग की बारी आई उस दिन विधानसभा अध्यक्ष स्वतः तेजस्वी के पक्ष में झुके हुए मिलेंगे। ये एक गणित फिलहाल बनता हुआ दिखता है। इसी फॉर्मूला के आधार पर तेजस्वी यादव बिहार के मुख्यमंत्री हो सकते हैं। बीजेपी शुरू से ही लगी हुई है कि ऐसा ही कुछ बिहार में हो जाए। बीजेपी को इसमें दो तरफ से फायदा दिख रहा है। बीजेपी चाहती है कि तेजस्वी यदि बिहार के सीएम बनें, तो बस बिहार में दो पार्टियों के बीच ही लड़ाई रह जाए और जेडीयू का अस्तित्व खत्म हो जाए। बीजेपी को पता है कि जेडीयू अभी बैकफुट पर है और बिहार के लोग जेडीयू को पसंद नहीं कर रहे हैं। तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनते ही नीतीश कुमार तीसरे फैक्टर हो जाएंगे। उसके बाद नीतीश के पास दो विकल्प बचेंगे। चाहे तो वो स्वतंत्र फाइट करेंगे और बिहार का चुनाव त्रिकोणीय हो जाएगा। इसके अलावा नीतीश बीजेपी के साथ जाएंगे। उस समय बीजेपी की ताकत बढ़ जाएगी। यदि इस परिस्थिति में त्रिकोणीय चुनाव होता है और नीतीश कुमार की पार्टी स्वतंत्र चुनाव लड़ती है, तो स्थिति 2014 वाली हो जाएगी। उस दौरान सबसे ज्यादा लाभ बीजेपी को होगा और लोकसभा सहित विधानसभा चुनाव में बीजेपी दो तिहाई बहुमत का आंकड़ा पार करेगी। कुल मिलाकर जो राजनीतिक व्यवहार बिहार में चल रहा है। बिहार के अंदर सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा है। धीरेंद्र कहते हैं कि बिहार में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना बन रही है। जिस फॉर्मूले की हमने चर्चा की है। उस फॉर्मूले के हिसाब से तेजस्वी मुख्यमंत्री बनते दिख रहे हैं।

बिहार का सियासी समीकरण बिगाड़ने में बीजेपी भी जुटी हुई है। तेजस्वी को परोक्ष मदद भी करेगी कि वे नीतीश का खेल बिगाड़ दें। बीजेपी को दोनों तरफ से फायदा है। नीतीश उनके पाले में आते हैं तब और नहीं आते हैं तब भी दोनों परिस्थितियों में बीजेपी इसका लाभ उठाएगी। इन तमाम बातों के अलावा एक बात जो सबसे महत्वपूर्ण है कि बिहार में अगर नेतृत्व परिवर्तन सही तरीके से हो जाए तो अच्छी बात है। अगर चुनाव की स्थिति बनती है, तो प्रदेश अभी किसी भी परिस्थिति में चुनाव के लिए तैयार नहीं है। हां, महागठबंधन के कुछ नेताओं में खलबली है। ये नेता अपने क्षेत्र विशेष को लेकर परेशान हैं। वो जेडीयू की राजनीति करें या आरजेडी की राजनीति करें या दोनों को मिलाकर लेकर चलने की राजनीति करें, समझ नहीं पा रहे हैं। जमीनी स्तर पर महागठबंधन का नेता जरूर मिल गया है। कार्यकर्ताओं के बीच आपसी तालमेल का पूरी तरह अभाव है। 2025 का ख्वाब देखने वाले नेता भी परेशान हैं। आखिर वो किस रास्ते पर चलें। उन्हें ये भी परेशानी है कि महागठबंधन बना रहा, तो उनकी सीट बचेगी या जाएगी या फिर बदल जाएगी। आरजेडी नेताओं का मानना है कि उनके पास दुगनी ताकत है। इसलिए वे अपने कार्यकर्ता और समर्थकों पर ध्यान देंगे ना कि जेडीयू की राजनीति करेंगे! लेकिन इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल है कि क्या नीतीश कुमार अपने हाथ से नेतृत्व जाने देंगे? धीरेंद्र ये भी कहते हैं कि ये सवाल जब मन में आता है कि तो सारी चर्चाएं महज बस चर्चा बनकर रह जाती है।

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