Saturday, April 20, 2024
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कौन होगा भारत का नया प्रधानमंत्री? जानिए विपक्ष ने क्या किया फैसला?

भारत के नए प्रधानमंत्री की दौड़ अभी से शुरु हो गई है! राष्ट्रीय जनता दल के बिहार प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने दावा किया है कि 2023 में तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनेंगे। नीतीश कुमार केंद्र में जाएंगे। मतलब, केंद्र की राजनीति करेंगे। लेकिन, केंद्र में किस धड़े की राजनीति करेंगे? यह सवाल अब तक अस्पष्ट है। नीतीश कुमार अचानक फैसलों से चौंकाते रहे हैं। वर्ष 2013 में एनडीए से हटकर चौंकाया। 2015 में लालू विरोध की राजनीति से बिहार के सत्ता शिखर तक पहुंचने के बाद राजद से हाथ मिलाकर चौंकाया। 2017 में महागठबंधन तोड़कर एनडीए में जाने के फैसले से चौंकाया। फिर, 2022 में एनडीए छोड़कर राजद गठबंधन के साथ जाने का फैसला लेकर चौंका दिया। तो क्या, अब चौंकने की बारी उनकी है। क्योंकि, राजद वैसे ही बैटिंग कर रही है, जैसे बिहार चुनाव 2020 में 43 सीटों पर सिमटने के बाद भी नीतीश कुमार को सीएम बनाने के बाद भाजपा कर रही थी।

सीमांचल में अमित शाह के दौरों से बढ़ी राजनीति के बीच नीतीश के फिलहाल एनडीए में लौटने की संभावना तो बनती नहीं ही दिखती है। ऐसे में उनके ही सरकार के मंत्री सुधाकर सिंह हों या फिर राजद प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह, बिहार से उनकी विदाई की बातें करते तो दिखने ही लगे हैं। 2023 आने में अब दो महीनों का समय बचा है। ऐसे में क्या नीतीश कुमार के लिए परिस्थितियां अनुकूल हो गई हैं? अगर आप यह सोचने बैठेंगे तो आपको जवाब न ही मिलेगा। जिस यूपी की राजनीतिक बिसात के सहारे नीतीश कुमार दिल्ली के सपने देख रहे हैं। वहां उन्हें भी पता है कि भाजपा बूथ स्तर तक मजबूत है। इसे अलग रख भी दें तो विपक्ष की राजनीति के दो बड़े खिलाड़ी, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती, अपनी अलग राजनीतिक बिसात बिछाते दिख रहे हैं। दोनों ही दलों से अपने-अपने प्रमुख के नाम के आगे पीएम उम्मीदवार का टैग चाहिए। ऐसे में अगर यूपी में नीतीश संभावना तलाशने आएंगे भी तो बिना दोनों के साथ के कितनी दूर चल पाएंगे, कह पाना मुश्किल है।

बसपा सुप्रीमो मायावती के दावों ने राजनीतिक गर्मी बढ़ा दी है। यूपी से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक। आप मायावती या बसपा को सिरे तो खारिज नहीं ही कर सकते हैं। हालिया यूपी चुनाव ने इसे साबित भी किया है। मायावती बामुश्किल दर्जन भर स्थानों पर रैली कर पाईं। इसके बाद भी बसपा ने 12 फीसदी से अधिक वोट शेयर हासिल किया। अगर यूपी में मायावती प्रधानमंत्री पद की दावेदारी करती हैं और इस संदेश को जमीन तक पहुंचाने में उनके कार्यकर्ता सफल होते हैं तो फिर यूपी में लगभग 25 फीसदी वोट शेयर की राजनीति करने वाली बसपा अपने पुराने रुतबे तक पहुंच सकती है। इसलिए, बसपा की ओर से मायावती को प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किए जाने के दावों के पीछे की राजनीति को समझ जाइए। अगर उनकी दावेदारी है तो फिर तीसरा मोर्चा या तो उन्हें घोषित तौर पर अपने साथ जोड़ने की कोशिश नहीं करेगा या फिर उनकी मांगों को मान लेगा।

मांग माने जाने की गारंटी कम है। ऐसे में गठबंधन में शामिल होने के न्योते को सीधे तौर पर नहीं दिए जाने की रणनीति पर ही काम होगा। ताकि, किसी भी स्थिति में मायावती के अपमान का मसला जमीनी स्तर पर छेड़कर इसका राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश न हो सके। यकीन मानिए, मायावती यूपी ही नहीं देश के कई राज्यों की राजनीति में दलित वोट बैंक के बीच अपनी पकड़ रखती हैं। उम्मीदवारों के जीत और हार के बीच के अंतर इतना उनके उम्मीदवार कई सीटों पर वोट काट ले जाते हैं। बसपा प्रवक्ता ने तीसरा मोर्चा में शामिल होने की मायावती को पीएम उम्मीदवार बनाए जाने की शर्त के साथ पत्ते खोल दिए हैं। अब गेंद तीसरे मोर्चे के रणनीतिकारों के पाले में है।

प्रधानमंत्री पद की दावेदारी तो समाजवादी पार्टी की ओर से भी हुई है। वह भी अखिलेश यादव के सामने। मौका था समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन। पांच सालों पर होने वाला यह अधिवेशन रमाबाई अंबेडकर मैदान में चल रहा था। मंच पर सीनियर नेता रविदास मेहरोत्रा अपनी बात रख रहे थे। इसी दौरान उन्होंने कहा कि देश में गैर भाजपा सरकार बने। समाजवादी पार्टी देश में सबसे अधिक सीट जीतने वाली पार्टी बने। अखिलेश यादव देश के प्रधानमंत्री बनें। पार्टी के मंच से इस प्रकार की बातों ने कार्यकर्ताओं में जोश भरा। अखिलेश भैया जिंदाबाद के नारे लगे। अखिलेश यादव बनें पीएम उम्मीदवार के भी। बारी अखिलेश की आई तो उन्होंने रविदास मेहरोत्रा के इस बयान का जिक्र सपनों के माध्यम से किया। उन्होंने कहा कि रविदास मेहरोत्र ने बड़े सपने दिखाए हैं।

अखिलेश ने कहा कि मैं उतने बड़े सपने नहीं देखता। हां, मेरा सपना है कि देश से भाजपा का सफाया हो और केंद्र में गैर भाजपा सरकार बने। लेकिन, नारे बदस्तूर जारी रहे। रविदास मेहरोत्र के सुर में सांसद एसटी हसन और पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने सुर में सुर मिलाया। देश में अखिलेश से बेहतर प्रधानमंत्री उम्मीदवार का विकल्प न होने की बात कही। अखिलेश के चेहरे की मुस्कान हर दावे के साथ बिखड़ती रही।

कांग्रेस ने इस बार पहले ही जोर लगाना शुरू किया है। संगठन के चुनाव हो रहे हैं। माहौल संगठन का चुनावी है, लेकिन नजर 2024 के चुनाव पर है। कांग्रेस में इतनी कवायद हथियार डालने के लिए नहीं हो रही। कांग्रेस नए अध्यक्ष के नए जोश के साथ चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में है। ऐसे में नीतीश कुमार को पार्टी पीएम उम्मीदवार बना देगी, संभावना कम ही लगती है। बात भरोसे की है। 2017 में कांग्रेस को बिहार की सत्ता से दूर करने में नीतीश कुमार की बड़ी भूमिका थी। उस समय कांग्रेस अभी से अधिक मजबूत थी। नीतीश अलग ही नहीं हुए। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक कुमार चौधरी समेत विधान परिषद के अधिकांश सदस्यों को अपने पाले में मिला लिया। ऐसे में कांग्रेस का कितना भरोसा नीतीश जीत पाएंगे, देखना होगा।

देश में वैसे भी कांग्रेस ही ऐसी विपक्षी पार्टी है, जो हर प्रदेश में अपने उम्मीदवार खड़ी कर सकती है। लड़ाई में भी दिखती है। वह नेताविहीन चुनाव लड़े या दूसरे दल के नेता को चेहरा बनाकर, यह सेल्फ गोल भी हो सकता है। और भाजपा को मौका देने का विषय भी। भाजपा मुद्दा बना देगी, कांग्रेस के पास नेता ही नहीं है। ऐसे में देश की राजनीति में पार्टी की स्थिति और खराब हो सकती है। यह कांग्रेस बिल्कुल नहीं चाहेगी। नीतीश की मुश्किलें यहां भी बढ़ती दिखती हैं।

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