Friday, March 29, 2024
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आखिर आफताब जैसे लड़कों के पीछे क्यों जाती है लड़कियां?

लड़कियां अक्सर आफताब जैसे लड़कों के पीछे ही चली जाती है! पिछले एक हफ्ते से देशभर में हर किसी की जुबान पर श्रद्धा मर्डर की खबर है। जिस तरह से 26 साल की श्रद्धा वाकर के लिव-इन पार्टनर आफताब पूनावाला ने उसकी हत्या कर शव के 35 टुकड़े किए, हर कोई भीतर से सन्न रह गया। हैवानियत शब्द भी इस आफताब की करनी के लिए छोटा पड़ गया। इसने शवों के टुकड़ों को फ्रीज में रखा और कटे सिर को रोज देखता था। बाकी हिस्से आधी रात के बाद दो हफ्ते तक दिल्ली में फेंकता रहा। इस हत्याकांड के बाद क्राइम शो, डेटिंग एप और दूसरे धर्म के लोगों के साथ संबंधों को लेकर एक बहस छिड़ गई है। शायद इस केस की अहम कड़ी तीन साल तक चले संबंध में ही छिपी है, जिस दौरान श्रद्धा प्रताड़ित होती रही।

शेफ से फूड व्लॉगर बना आफताब 2019 में कॉल सेंटर में काम करने वाली श्रद्धा से मिलता है। वे दोनों मुंबई में एक साथ अपार्टमेंट में अपनी ‘अलग दुनिया’ बसाने का फैसला करते हैं। उनके बीच रिश्ते कैसे थे, इसके बारे में दोस्त अच्छे से बताते हैं। उन्होंने खुद देखा था कि कैसे आफताब अक्सर श्रद्धा को बुरा-भला कहने के साथ ही पीटता भी था। एक दोस्त ने यहां तक कहा कि उसने कई बार श्रद्धा के जख्म देखे थे। एक अन्य दोस्त बताता है कि श्रद्धा अपने जीवन से डरी हुई थी। वह बताता है कि श्रद्धा इस रिलेशनशिप से बाहर निकलना चाहती थी लेकिन ऐसा कर नहीं पाई क्योंकि वह आफताब के जाल में शायद फंस चुकी थी। वह इमोशनली ब्लैकमेल करता था कि अगर वह चली गई तो आत्महत्या कर लेगा।

इस साल की शुरुआत में दोनों हिमाचल प्रदेश ट्रिप पर गए थे, शायद यह सोचकर कि उनके लिव-इन रिलेशन में सब कुछ ठीक हो सके। लेकिन उसके बाद क्या हुआ, एक वायरल हॉरर स्टोरी बन चुकी है। लेकिन यहां सवाल एक श्रद्धा का नहीं है। श्रद्धा की तरह ऐसी कई लड़कियां हैं जो तनावपूर्ण, जहरीले रिलेशनशिप के बावजूद उससे बाहर नहीं निकल पाती हैं। आखिरकार इसका परिणाम हिंसा सहते रहकर या फिर जान देकर चुकाना पड़ता है।

पुणे की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट कहती हैं, ‘जो भी लोग ऐसे रिलेशनशिप में होते हैं, उनके लिए इसमें बने रहा मुश्किल तो होता है लेकिन इससे बाहर निकलना और भी मुश्किल हो जाता है।’ यह एक गलत धारणा बन गई है कि महिला को सब कुछ सहते हुए रिश्ते निभाने पड़ते हैं।हम पितृसत्तात्मक समाज में रह रहे हैं, जहां महिलाएं ऐसा सोचने लगती हैं कि बिना पुरुष के उनके पास सुरक्षा कवच नहीं है। यह धारणा भी गलत है कि केवल कमजोर को ही सुनना या सहना पड़ता है। बिनेफर साहूकार कहती हैं, ‘ऐसी कई महिलाएं भी इसका शिकार हुई हैं जो स्मार्ट और आत्मनिर्भर थीं।’ वह कहती हैं कि परिवार और दोस्तों के लिए यह मानना मुश्किलभरा क्यों होता है कि महिला पीड़ित हैं। ऐसे में दूसरे क्षेत्रों में मजबूत होने के बाद भी वे ऐसे असहज रिश्ते से बाहर नहीं उबर पाती हैं। वे मां या दूसरे जिगरी दोस्तों की तर्कपूर्ण बातों को भी नजरअंदाज कर देती हैं।

महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले एक वकील उनके ऑफिस आए थे। उनके साथ एक महिला थी। उन्होंने बताया, ‘जो शख्स उसके साथ लिव-इन रिलेशनशिप में था उसने उसके चेहरे पर काफी वार किए थे। उसके होंठ भी कट गए थे। एक साल से ये सब चल रहा था लेकिन महिला ने उसके खिलाफ जाने का फैसला तब लिया जब उसे आंखों से कम दिखने लगा। इसके बाद वह थाने पहुंची और केस दर्द कराया। उसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही शख्स है जिससे वह प्यार करती थी।’सवाल उठता है कि एक साल तक वह किस बात का इंतजार करती रही। दरअसल, उसे उम्मीद थी कि एक दिन पार्टनर बदल जाएगा और फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा। ऐसे मर्द भी शातिर होते हैं और प्रताड़ना के साथ भावनात्मक रूप से महिला को अलग होने नहीं देते। उम्मीद अच्छी चीज है लेकिन यह आपके साथ छल भी हो सकता है।

बेंगलुरु की क्रिमिनल सैक्रेटिस्ट मेघना श्रीवास्तव ने कई महिलाओं की काउंसलिंग की है जो हिंसक संबंधों में फंस गई थीं। वह बताती हैं कि शोध के मुताबिक चार स्टेज होते हैं।

  1. पहले स्टेज में प्रताड़ित करने वाला शख्स किसी भी मामूली बात पर रिएक्ट करता है।
  2. दूसरे स्टेज में गाली और बुरा-भला कहा जाता है जो धमकी से लेकर शारीरिक प्रताड़ना भी हो सकता है।
  3. तीसरे स्टेज में गाली देने वाला शख्स माफी मांगता है या अपने किए को जस्टिफाई करने की कोशिश करता है।
  4. आखिरी स्टेज को ‘हनीमून फेज’ कहते हैं। इसमें पीड़ित अपने पार्टनर के साथ समझौता कर लेती हैं और यह हिंसा जारी रहती है।

पहले प्यार, प्रताड़ना और फिर पछतावा, ये महिला के लिए बड़ी कन्फ्यूजिंग स्थिति होती है। साहूकार कहती हैं कि क्योंकि वह शख्स हमेशा गुस्से में या पीटता नहीं है तो महिला को लगता है कि वह आदमी बुरा नहीं है। ऐसे में महिला अपने ही फैसले पर शक करने लगती है। उसे लगने लगता है कि उसी में कुछ गलती है और वह इन सबके लिए खुद को ही गुनहगार ठहराने लगती है।

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