Saturday, April 20, 2024
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आखिर अंडमान में क्यों की जाती है शिशु की हत्या?

अंडमान में शिशु की हत्या कर दी जाती है यदि वह शिशु गोरा पैदा होता है! हर किसी की चाह होती है कि उसके घर में बच्चे की किलकारी गूंजे। नौ महीने तक पूरा परिवार बच्चे के होने का इंतजार करता है और फिर जब घर में नन्हे बच्चे का जन्म होता है तो खुशियों के साथ उसका स्वागत किया जाता है। बच्चा गोरा हो या सांवला, पतला हो या मोटा उसके रंग या रूप के आधार पर शायद ही कोई हो जो भेदभाव करता हो, लेकिन आज हम अपने ही देश के एक हिस्से की जिस परंपरा के बारे में हम बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर आपके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे। अंडमान जिसके नीले-नीले पानी को देखने देश से ही नहीं दुनिया से भी लोग आते हैं, उसी अंडमान के एक हिस्से में एक ऐसी खतरनाक परंपरा है जिसपर यकीन करना बेहद मुश्किल है। अंडमान में जारवा नाम की एक जनजाति रहती है। ये लोग बच्चे को पैदा होते ही रंग के आधार पर मौत देते हैं। किसी महिला ने अगर गोरे बच्चे को जन्म दिया तो बच्चे के पैदा होने के 5 मिनट के अंदर ही उसे मार दिया जाता है।

जारवा जाति के लोग का स्किन कलर काफी डार्क होता है। एक एक आदिवासी जनजाती है जो हजारों सालों से अंडमान में रह रही है। ये लोग आज भी जंगलों में रहते हैं और इनके समुदाय में इनके ही नियम-कानून चलते हैं। यहां पर अगर कोई महिला गोरे बच्चे को जन्म देती है तो उसे नफरत की नजर से देखा जाता है। ये मान लिया जाता है कि वो बच्चा इनके समुदाय का नहीं है। महिला के ना चाहते हुए भी उस बच्चे को उससे छीनकर मौत दी जाती है और इसपर कोई कुछ बोल भी नहीं पाता।

जारवा जनजाति मूलत अफ्रिका की है, लेकिन पांच हजार साल पहले ये लोग अंडमान में आ बसे थे और तब से ये यहीं जंगलों में अपना गुजारा करते हैं।अंडमान में रह रही है। ये लोग आज भी जंगलों में रहते हैं और इनके समुदाय में इनके ही नियम-कानून चलते हैं। यहां पर अगर कोई महिला गोरे बच्चे को जन्म देती है तो उसे नफरत की नजर से देखा जाता है। ये मान लिया जाता है कि वो बच्चा इनके समुदाय का नहीं है। महिला के ना चाहते हुए भी उस बच्चे को उससे छीनकर मौत दी जाती है और इसपर कोई कुछ बोल भी नहीं पाता। इनके इलाके को सरकार ने रिजर्व घोषित किया हुआ है और बिना परमिशन के यहां जाना मना है। परमिशन के बाद ही इनके रिजर्व इलाके में प्रवेश किया जा सकता है और वो भी कई गाड़ियां एक साथ अंदर जाती हैं। गेट के बाहर पुलिस चौकी पर पर्यटकों की गाड़ियां इकट्ठा होती हैं और फिर साथ में ही आगे बढ़ती हैं।

पहले इस जनजाति के लोगों की संख्या काफी ज्यादा थी, लेकिन अब घटते-घटते ये लोग करीब 250 से लेकर 400 तक रह गए हैं।अंडमान में रह रही है। ये लोग आज भी जंगलों में रहते हैं और इनके समुदाय में इनके ही नियम-कानून चलते हैं। यहां पर अगर कोई महिला गोरे बच्चे को जन्म देती है तो उसे नफरत की नजर से देखा जाता है। ये मान लिया जाता है कि वो बच्चा इनके समुदाय का नहीं है। महिला के ना चाहते हुए भी उस बच्चे को उससे छीनकर मौत दी जाती है और इसपर कोई कुछ बोल भी नहीं पाता। साल 1990 के बाद इनके जीवन शैली में थोड़ा फर्क जरूर आया है, लेकिन अभी भी ये लोग दुनिया से अलग अपना जीवन जीते हैं।

जरा सोचिए ये लोग आज भी शिकार करके अपने खाने की व्यवस्था करते हैं।अंडमान में रह रही है। ये लोग आज भी जंगलों में रहते हैं और इनके समुदाय में इनके ही नियम-कानून चलते हैं। यहां पर अगर कोई महिला गोरे बच्चे को जन्म देती है तो उसे नफरत की नजर से देखा जाता है। ये मान लिया जाता है कि वो बच्चा इनके समुदाय का नहीं है। महिला के ना चाहते हुए भी उस बच्चे को उससे छीनकर मौत दी जाती है और इसपर कोई कुछ बोल भी नहीं पाता। सरकार ने इनके लिए उस इलाके में घर भी बनावाएं हैं, इन्हें मेन स्ट्रीम से जोड़ने की कोशिश तो कई बार की गई, लेकिन उसका असर बहुत ज्यादा नहीं हुआ।आज भी इनके वहां इनके ही नियम-कानून चलते हैं और उनपर प्रशासन भी कोई दखल-अंदाजी नहीं करता।

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