Friday, March 29, 2024
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क्या गुजरात में जाति के आधार पर होंगे चुनाव?

गुजरात में लगभग छः दशक से जाति के नाम पर चुनाव होते हैं! गुजरात की राजनीति आज भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन एक वक्त था जब गुजरात की राजनीति की धुरी माधव सिंह सोलंकी थे। यह किस्सा 1980 का है, जनता पार्टी की सरकार के गिरने के बाद कुछ समय के लिए राष्ट्रपति शासन लागू रहा था और फिर चुनावों का ऐलान हुआ। राज्य में कांग्रेस को जिताने की जिम्मेदारी 107 दिन तक सीएम रहे चुके माधव सिंह सोलंकी को दी गई। पत्रकारिता से राजनीति में प्रवेश करने वाले माधव सिंह सोलंकी खाम थ्योरी ले आए। इसमें उन्होंने क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासियों के साथ मुसलमान मतदताओं को लुभाने का दांव खेल दिया। जब चुनाव नतीजे आए तो कांग्रेस को 182 में 141 सीटें मिलीं।जातीय गोलबंदी में सफल हुए माधव सिंह सोलंकी पांच साल तक मुख्यमंत्री रहे। 1985 के चुनाव से पहले सोलंकी एक और बड़ा दांव खेला और राणे कमीशन की सिफारिशों को लागू करके राज्य में पिछड़ी जातियों के आरक्षण को बढ़ाकर 10 से 28 कर दिया और इसमें शामिल जातियों की संख्या बढ़ाकर 82 की बजाए 104 कर दी। इसका विरोध हुआ, लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या और KHAM थ्योरी के सहारे माधव सिंह सोलंकी ने इतिहास रच और 182 में से 149 सीटें जीत लीं। 11, मार्च 1985 को वे फिर से गुजरात के मुख्यमंत्री बने, हालांकि इसके बाद गुजरात में आरक्षण विरोधी आंदोलन हो गया। हिंसा हुई तो सोलंकी को इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन जातीय राजनीति में माहिर सोलंकी का यह कीर्तिमान गुजरात की राजनीति में अब तक बरकरार है। माधव सिंह सोलंकी ऐसे राजनेता रहे जिन्हें गुजरात का चार बार सीएम बनने का गौरव हासिल है।

10 दिसंबर 1989 को सोलंकी ने सीएम पद की शपथ ली और 83 दिन बाद 4 मार्च 1990 तक इस पद पर बने। सोलंकी के खाम की काट के लिए पूर्व मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल अपनी थ्योरी लेकर ले आए। उन्होंने KOKAM नाम का एक सामाजिक संगठन बनाया। उस वक्त चिमनभाई पटेल जनता दल ने नेता थे। उनका भी वही हाल था जो इस वक्त गुजरात में कांग्रेस का है, कांग्रेस 27 सालों से सत्ता से दूर है तो चिमनभाई पटेल 16 साल से सत्ता में वापसी करना चाह रहे थे। इस संगठन का सौराष्ट्र मे बहुत ज्यादा प्रभाव था, जो कांग्रेस के खाम सिद्धांत को देखते हुए बनाया गया था। कोकम का अर्थ ‘को से कोली, क से कणबी और म से मुस्लिम’ था। यह सिद्धांत कोली, कनवी और मुस्लिमों की वोट पाने के लिए अपनाया गया था। कोकम में सबसे ज्यादा महत्व कोली जाति को दिया गया था जिसके चलते जनता दल ने सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात मे कांग्रेस की खाम नीति को कमजोर करते हुए काफी कोली अपनी तरफ़ कर लिए थे एवं कुछ पाटीदार भी जनता दल और बीजेपी की तरफ़ चले गए।

1990 में जब चुनाव के नतीजे आए तो जनता दल सबसे बड़ा दल बना। बीजेपी दूसरे नंबर पर और सत्तारूढ़ कांग्रेस को सिर्फ 37 सीटें मिली। राज्य में बीजेपी के साथ मिलकर जनता दल की सरकार बनी। चिमनभाई सीएम और केशुभाई डिप्टी सीएम। 16 साल बाद चिमनभाई सीएम थे तो वहीं कांग्रेस सबसे कमजोर हालत में। अब जब राज्य में 15वीं विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं तो हिंदुत्व और मोदीत्व पर सवार बीजेपी माधव सिंह सोलंकी का रिकॉर्ड तोड़ना चाहती है। बीजेपी के रणनीतिकार मान रहे हैं कि आप के आने से खाम को पार किया जा सकता है। इसकी बड़ी वजह ये है कि सत्ता विरोधी वोट विभाजित होंगे तो इसकी सबसे बड़ी गेनर बीजेपी होगी। इसलिए बीजेपी ने अब मिशन 150 टारगेट किया है। तो वहीं प्रदेश में पहली बार तैयारी के साथ पैर रख रही आप भी सामाजिक समीकरण साधने में जुटी है। इसका एपिसेंटर सौराष्ट्र ही है। पार्टी कपुरजोर कोशिश कर रही है, कोई कास्ट कॉम्बिनेशन बन जाए और बीजेपी के तिलिस्म को तोड़ा जाए। बीजेपी के निशाने पर खाम है तो कांग्रेस और आप चिमनभाई के फॉर्मूले पर चल रहे हैं जिसमें मुस्लिम वोटों का बड़ा शेयर है। चर्चा तो यह भी है कि कांग्रेस इन चुनावों में BDAM थ्योरी लाने पर विचार कर रही है, जिसमें ओबीसी, दलित, आदिवासी और मुस्लिम वर्ग के लोग शामिल होंगे।

इतने दशकों बाद भी जब भी चुनाव होते हैं तो खाम थ्योरी की चर्चा होती है। यह पहली ऐसी सोशल थ्योरी थी जिसने जातीय लामबंदी की शुरुआत की। खाम थ्योरी की सफलता के बाद देश के दूसरे राज्य में भी इसके प्रयोग हुए। वोट प्रतिशत के हिसाब से देखें तो माधव सिंह सोलंकी के खाम प्रयोग के बाद कांग्रेस को गुजरात में 1980 में 51.04 फीसदी वोट मिले और सीटें 75 से सीधे 141 हो गई थीं। तो वहीं 1985 में 55.55 प्रतिशत वोट मिला और सीटों की संख्या 149 पर पहुंच गई। खाम की काट के तौर पर आई कोकम थ्योरी भी कारगर रही 1990 के चुनाव में चिमनलाल पटेल की अगुवाई वाले जनता दल को 29.36 प्रतिशत वोट मिले और 70 सीटें मिली। डबल इंजन की सरकार चला रही बीजेपी की नजर खाम थ्योरी से बने रिकॉर्ड पर है। त्रिकोणीय लड़ाई में क्या बीजेपी को लाभ मिलेगा, यह तो नतीजों में स्पष्ट हो हो जाएगा। दिलचस्प तथ्य यह है कि खाम थ्योरी के माधव सिंह सोलंकी के बेटे भरत सोलंकी और कोकम थ्योरी के जनक चिमन भाई के बेटे सिद्धार्थ पटेल दोनों कांग्रेस में हैं। दोनों नेता गुजरात कांग्रेस के प्रमुख भी रह चुके हैं।

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