पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:धर्म को जानने से कहीं ज्यादा उसे जीना जरूरी है

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सर्वाधिक पर्वों वाला मास कार्तिक पूरा हो गया। आज से मार्गशीर्ष मास शुरू हो रहा है। श्रीमद्भगवद्गीता में कृष्ण ने महीनों में स्वयं को मार्गशीर्ष बताया है। इसी महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रीकृष्ण ने गीता उपदेश दिया था। इस महीने की एक और खासियत है। गुरु नानक देव की जयंती। हम जिस दौर में जी रहे हैं, यह बहुत तेजी से बदलने का वक्त है। बदलाव जीवन में जरूरी है। गुरु नानक देव में बहुत विशेषताएं थीं। उसमें से एक विशेषता थी कि उन्होंने धर्म को एकदम नई दृष्टि से देखा और लोगों के जीवन में उतारा। आज प्रबंधन की दुनिया में कहते हैं कि वो ही लोग सफल होंगे, जो हुनरमंद होंगे। यानी आपकी भूमिका से ज्यादा आपके हुनर यानी स्किल काम करेंगे। यही प्रयोग किया था नानक जी ने। उन्होंने कहा था कि आप कितने धर्मिक हैं, यह बात महत्वपूर्ण नहीं है। आप धर्म को कितना जानते हैं, यह उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है और उससे भी अधिक जरूरी है कि आप धर्म को कितना जीते हैं। क्योंकि धर्म जीवनशैली होना चाहिए।