संतोष पटेल का गांव देवगांव मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में सबसे छोटे गांवों में से एक है, जहां 2011 में 1500 से ज्यादा लोग नहीं थे। 2009 में जब वे इंजीनियरिंग करने अपने गांव से भोपाल आए तो शायद उनका पूरा संयुक्त परिवार उस समय गांव का सबसे बड़ा परिवार रहा होगा, क्योंकि आज उनका एक बड़ा परिवार है, जिसके सदस्यों की संख्या 120 है। वे गरीब थे और संघर्ष कर रहे थे। वे भोपाल में अप्सरा टॉकिज क्षेत्र में रहते थे, जहां सभी आय वर्ग के लोगों का निवास था, मुख्य रूप से निम्न और मध्यम वर्ग के। पटेल के आवास में बिजली की सुविधा भी नहीं थी, इसलिए उन्होंने केरोसिन लैंप में पढ़ाई की। पेट भरने के लिए उन्होंने अजीब जगहों पर काम किया। सब्जी खरीदते समय उनकी दोस्ती एक सब्जी के ठेले वाले सलमान खान से हुई, जो भोपाल के एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पांच भाई और तीन बहनें हैं। जब संतोष के पास सब्जियां खरीदने के लिए पैसे नहीं होते थे, तो सलमान उन्हें रोटी के साथ खाने के लिए कुछ भटे-टमाटर दे देते थे। बदले में संतोष उस भीड़ भरे बाजार में सब्जी की दुकान चलाने में उनकी मदद करते थे। ऐसा नहीं है कि सलमान संतोष को ज्यादा देते था और दूसरे गरीब छात्रों की मदद नहीं करते थे। उन्होंने उनकी भी मदद की, लेकिन संतोष के साथ उनका एक खास रिश्ता रहा। दुकान बंद करने के बाद भी वे कुछ भटे-टमाटर अलग रख लेते थे, यह सोचकर कि छोटा लड़का भूखा न सोए। ऐसा भी नहीं है कि हर रोज सब्जियां मुफ्त मिलती थीं, लेकिन दोनों के बीच की केमिस्ट्री में पैसे किसी भी तरह से नहीं आ पाते थे। इस रिश्ते ने उन्हें अच्छा दोस्त बना दिया। पटेल ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली। वे अपने गांव लौट आए और पन्ना में वनरक्षक की नौकरी करने लगे। उन्होंने पुलिस बल में शामिल होने के लिए पढ़ाई जारी रखी और 2017 में एमपीपीएससी पास कर ली। उन्होंने बैतूल और निवारी में डीएसपी के तौर पर काम किया, जो भोपाल से क्रमश: 150 और 322 किमी दूर हैं। लेकिन वे कभी वापस लौटकर सलमान का शुक्रिया अदा नहीं कर पाए। पटेल वर्तमान में ग्वालियर में तैनात हैं और इंस्टाग्राम पर 24 लाख फॉलोअर्स के साथ जाने-माने सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स में से एक हैं। वे अपने संघर्ष की कहानियां साझा करते हैं, गरीब परिवारों के छात्रों से मिलते हैं, उन्हें स्कूल यूनिफॉर्म और बैग उपहार में देते हैं, और वीडियो बनाते हैं जिनमें वे किसानों के साथ कविताएं साझा करते हैं। सलमान की याद इतने सालों तक उनके दिमाग में रही लेकिन उनकी व्यस्त नौकरी ने उन्हें राजधानी भोपाल लौटने की अनुमति नहीं दी। सौभाग्य से, उन्हें पिछले सप्ताह चार दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए भोपाल बुलाया गया। शनिवार को एक पुलिसकर्मी को अप्सरा टॉकिज के पास रुकते और अपनी ओर आते देख सलमान चिंतित हो गए। लेकिन वे तुरंत संतोष को पहचान गए और उन्हें सलाम किया। देखने वाले हैरान रह गए, क्योंकि यह पहली बार था, जब किसी पुलिसकर्मी ने सब्जी विक्रेता को न केवल कुछ मिठाइयां और पैसे दिए, बल्कि उन्हें गले भी लगाया, क्योंकि असली दोस्त लंबे समय के बाद मिले थे। बाद में उन्होंने अपनी 14 साल की यात्रा के विवरण साझा किए। वेब-सीरीज की तरह लगने वाली इस कहानी की सबसे दिलचस्प बात यह है कि दोनों को कुछ देने की आदत है। सलमान ने सब्जियां इसलिए दीं क्योंकि उनके पास न केवल सब्जियां थीं बल्कि उनका मानना था कि किसी को भी बिना भोजन के नहीं सोना चाहिए, जबकि डीएसपी भी स्कूल की वर्दी और बैग खरीदकर संघर्षरत छात्रों को देते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि शिक्षा किसी के जीवन को उनके जैसा बना सकती है। फंडा यह है कि जिस चीज में आपका विश्वास है और जो आपके पास बहुतायत में है, उसे समाज को लौटाएं। अगर आपके पास एक मुस्कराहट के सिवा कुछ नहीं तो हर किसी से मुस्कराकर ही मिल लें। चाहे जो हो, देने को आदत बनाएं, क्योंकि इससे समाज बेहतर बनता है।
एन. रघुरामन का कॉलम:आपके पास जो भी हो वह दें, लेकिन दें जरूर
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