एन. रघुरामन का कॉलम:याद रखिए, हर वाहन मालिक भी कहीं न कहीं पैदलयात्री है!

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मॉल के बाहर बने संकरे फुटपाथ की दोनों ओर की सड़कों पर खड़े दोपहिया वाहनों के चलते अधेड़ उम्र का व्यक्ति वहां से निकलने में जद्दोजहद कर रहा है। चंद मीटर दूर, एक महिला के पीछे से तेजी से गुजरते वाहनों के कारण उसे मजबूरन मुख्य सड़क पर धकेल दिया जाता है, क्योंकि फुटपाथ पर दुकानदारों का कब्जा है। क्या ऐसा आपके शहर में भी होता है? जब तक आप इसका जवाब तैयार करें, मैं आपको सोमवार को लिखे मेरे आर्टिकल पर ले चलता हूं, जहां मैंने लिखा था, “भारत में होम डिलीवरी बिजनेस में अल्ट्रा क्विक डिलीवरी सिस्टम छाने वाला है।’ उस दिन सैकड़ों प्रतिक्रियाएं आईं, जहां दैनिक भास्कर के पाठकों ने दिल की बात लिखी और रोष व्यक्त किया कि कैसे इस सुविधा से समाज बड़ी त्रासदी की ओर बढ़ रहा है। एक पाठक सतीश आर. बंसल ने पत्र लिखकर गुस्सा जाहर किया, “अल्ट्रा क्विक डिलीवरी सिर्फ सहूिलयत नहीं बल्कि अभिशाप है’। उन्होंने लंबी-चौड़ी सूची बता दी कि कैसे पड़ोस में चलकर अपनी चीजें खुद लेने का आनंद, शहर में उड़ते दोपहिया वाहन किरकिरा करने वाले हैं। पहले तो मुझे लगा कि वह जरूरत से ज्यादा भावनात्मक हो रहे हैं, लेकिन दिन समाप्त होते-होते साबित हो गया कि वह 100% सही थे। इस सोमवार को बेंगलुरु से मेरे एक कजिन ने देर रात फोन करके बताया कि अकेले एक दिन 9 नवंबर को बेंगलुरु ट्राफिक पुलिस ने 2670 डिलीवरी एजेंट्स का चालान करके 13.8 लाख रु. जुर्माना पसूला, वो भी आठ घंटे की शिफ्ट में। मैं यहां दोहराऊंगा कि जुर्माने का ये आंकड़ा सिर्फ डिलीवरी एजेंट्स का है, इसमें बाकी दोपहिया मालिक शामिल नहीं हैं। उसने बताया कि आधे से ज्यादा जुर्माने वन-वे में एंट्री, फुटपाथ पर गाड़ी चलाने, नो-एंट्री में घुसने, रेड सिग्नल जंप करने, फुटपाथ पर गाड़ी खड़ी करने से जुड़े थे। ये सारे यातायात अपराध पैदल चलने वालों के लिए जोखिम खड़ा करते हैं। बाकी आधा जुर्माना हेलमेट नहीं पहनने, या ड्राइविंग के दौरान मोबाइल फोन चलाने का था, जो कि राइडर की अपनी सुरक्षा का मसला था। दिलचस्प बात यह है कि इसी पुलिस ने साल 2024 के पहले 10 महीनों में बेंगलुरु की नौ ई-कॉमर्स कंपनियों के केवल 10 हजार डिलीवरी एजेंट्स से ट्रैफिक उल्लंघन के लिए जुर्माना वसूला था। संख्या में यह असमानता अब उन्हें आने वाले दो महीनों में कम से कम 20 हजार गिग वर्कर्स को प्रशिक्षित करने के लिए मजबूर कर रही है। वहीं पुलिस ने अपने सर्वे में पाया कि नौकरी की तलाश में गांवों से शहरों की ओर आने वाले गिग वर्कर्स की संख्या में भारी उछाल आया है और उन्हें ट्रैफिक नियमों की ज्यादा जानकारी नहीं है। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या हमें सर्वे करने की आवश्यकता है जब हर कोई डिलीवरी एजेंट्स में कोई ट्रैफिक सेंस नहीं देख सकता है। ट्रैफिक नियमों के बारे में सख्त हुए बिना आप डिलीवरी राइडर्स में एक जिम्मेदार ड्राइविंग संस्कृति का निर्माण कैसे कर सकते हैं? अब मैं आप सभी से पूछना चाहता हूं कि आखिरी बार कब आपने अपनी कॉलोनी के आसपास टहलने का समय निकाला, खासकर यदि आप एक आकार लेते शहर में रह रहे हैं? भले ही आपने वॉक की हो, लेकिन क्या यह तनावपूर्ण रही? जहां ऐसे विचार आए हुए होंगे कि ‘हमें पता नहीं, बाइकर्स कहां से आकर टकरा जाएं।’ जैसा कि उन अखबार के पाठक सतीश जी ने महसूस किया कि आसपड़ोस में वॉक करने जाना पहले छोटी-छोटी खुशियां हुआ करती थीं, जिसे हम कोई तवज्जो नहीं देते थे और आज इसका अस्तित्व कम से कम मेट्रो शहरों में समाप्त हो गया है। यदि कोई बुजुर्ग व्यक्ति, रोजमर्रा का कुछ सामान खरीदने के लिए पड़ोस की दुकान पर जाता है, तो घर के युवा तब तक चिंता करते हैं जब तक कि वह व्यक्ति सुरक्षित नहीं लौट आते। फंडा यह है कि हमारे ट्रैफिक रेगुलेटर यह क्यों भूल जाते हैं कि हर वाहन मालिक कहीं न कहीं पैदल यात्री होता है। धीमे चलने वाले इस समाज को अगर हम जगह नहीं देंगे, तो तेजी से आगे बढ़ते इस समाज को कभी न कभी तकलीफ होगी। तेजी से बढ़ने वाले समाज को यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी दिन उनकी गति भी मंद पड़ जाएगी।