आज से सौ साल पहले जब भारत गुलाम था तब एक छात्र को पानी पीने से मना किया गया था. उस छात्र ने भारत में जातिवाद के दंश को झेला और निखकर भीम राव अम्बेडकर बन गया. जिसे भारत के संविधान लिखने और देश के पहले कानून मंत्री होने का गौरव हासिल हो गया. उम्मीद तो यही करनी चाहिए की इस बड़े क्रांति से देश में एक बदलाव आता और यह भेदभाव और जातिवाद जड़ से समाप्त हो जाता. लेकिन यह देश का दुर्भाग्य ही है कि भीमराव अंबेडकर के संविधान लिख देने से यह भेदभाव का कीड़ा मरा नही.
राजस्थान की घटना को जानिए विस्तार से
जातिवाद के कीड़े का जिक्र मैंने इसलिए किया क्योंकि राजस्थान के जलोर में एक 9 साल के बच्चे को घड़े से पानी पीने के लिए जान से मार दिया गया. सबसे दुखद बात यह है कि मारने वाला कोई और नही बल्कि खुद उसका टीचर था. यह घटना 20 जुलाई की है. छात्र की मौत अस्पताल में 13 अगस्त को हुई है. छात्र इतने दिन से अस्पताल में भर्ती था. घरवाले कई दिनों तक छात्र को अलग-अलग अस्पतालों में लेकर दौड़ते रहे लेकिन अहमदाबार के सिविल अस्पताल में बच्चे ने आख़िरी सांस ली.
मरने वाला छात्र था दलित जाति से
छात्र जिसे पानी पीने के लिए पीटा गया वह दलित जाति से था. कई बार लोग यह तर्क देने की कोशिश करते हैं कि पीड़ित की जाति बताकर आप लोग जातिवाद फैलाते हैं. इस पर किसी ने बड़ा ही सटीक जवाब दिया की हिंसा कई प्रकार से हो सकती है. एक सामान्य हिंसा होती है जिसमें सामने वाले के किसी हरकत पर आप नाराज होते हैं. लेकिन एक हिंसा यह भी होती है आपको सामने वाले के अस्तित्व से ही नफ़रत होती है. इसमें में कई बेस होता है. कही किसी को किसी के रंग से नफरत है तो कही किसी को उसके लिंग से नफरत है. यहाँ इस घटना में शिक्षक को छात्र के जाति से दिक्कत थी. और जब भी ऐसी घटनाएं हो तो यह बड़ा जरूरी बन जाता है कि आप खुलकर जाति का नाम लिखे और इस घनघोर समस्या को रेखांकित करे.
भेदभाव का इलाज क्या है
जब देश में एक अध्यापक ही जातिवाद से ऐसा पीड़ित हो कि वह छात्र के पानी पीने के लिए के लिए जान से मार दे. तो देश के समान्य लोगों की बात ही क्या किया जाए. लेकिन हमें अपने स्तर से इस समस्या को दूर करने का प्रयास करना चाहिए. अपने सहपाठी, दोस्त और खासकर से बच्चों को यह समझना चाहिए कि इन्सानियत को प्राथमिकता दे नाकि जाति को.
रैदास ने इस विषय मे बड़ा सुदंर लिखा है पढ़िए
जनम जात मत पूछिए, का जात अरू पात
रैदास पूत सब प्रभु के, कोए नहिं जात कुजात
रैदास कहते हैं कि किसी की जाति नहीं पूछनी चाहिए क्योंकि संसार में कोई जाति−पाँति नहीं है. सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं और ईश्वर अपने संतानों में भेदभाव क्यों करेगा.
ऊँचे कुल के कारणै, ब्राह्मन कोय न होय
जउ जानहि ब्रह्म आत्मा, रैदास कहि ब्राह्मन सोय
मात्र ऊँचे कुल में जन्म लेने के कारण ही कोई ब्राह्मण नहीं कहला सकता। जो ब्रहात्मा को जानता है, रैदास कहते हैं कि वही ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी है.
रैदास इक ही बूंद सो, सब ही भयो वित्थार
मुरखि हैं तो करत हैं, बरन अवरन विचार
रैदास कहते हैं कि यह सृष्टि एक ही बूँद का विस्तार है अर्थात् एक ही ईश्वर से सभी प्राणियों का विकास हुआ है; फिर भी जो लोग जातकुजात का विचार अर्थात् जातिगत भेद−विचार करते हैं, वे नितांत मूर्ख हैं.
रैदास ब्राह्मण मति पूजिए, जए होवै गुन हीन
पूजिहिं चरन चंडाल के, जउ होवै गुन प्रवीन
रैदास कहते हैं कि उस ब्राह्मण को नहीं पूजना चाहिए जो गुणहीन हो. गुणहीन ब्राह्मण की अपेक्षा गुणवान चांडाल के चरण पूजना श्रेयस्कर है.
जात पांत के फेर मंहि, उरझि रहइ सब लोग
मानुषता कूं खात हइ, रैदास जात कर रोग
अज्ञानवश सभी लोग जाति−पाति के चक्कर में उलझकर रह गए हैं.रैदास कहते हैं कि यदि वे इस जातिवाद के चक्कर से नहीं निकले तो एक दिन जाति का यह रोग संपूर्ण
मानवता को निगल जाएगा.
नीचं नीच कह मारहिं, जानत नाहिं नादान
सभ का सिरजन हार है, रैदास एकै भगवान
मनुष्य ही दूसरे मनुष्य को छोटा समझकर उसे सताता है.रैदास कहते हैं कि नादान मनुष्य यह नहीं जानता कि
सभी मनुष्यों को जन्म देने वाला एक ही ईश्वर है.
बेद पढ़ई पंडित बन्यो, गांठ पन्ही तउ चमार
रैदास मानुष इक हइ, नाम धरै हइ चार
सब मनुष्य एक समान हैं किंतु उसके चार नाम (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र) रख दिए हैं, जैसे वेद पढ़ने वाला मनुष्य पंडित (ब्राह्मण) और जूता गाँठने वाला मनुष्य चर्मकार (शूद्र) कहलाता है