राजस्थान की राजनीति को एक बार फिर अशोक गहलोत ने नचा दिया। रविवार शाम को कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई थी। मुख्यमंत्री आवास पर बैठक चल रही थी, जिसमें अजय माकन, मल्लिकार्जुन खड़गे, गहलोत, पायलट, रघु शर्मा और कुछ वरिष्ठ मंत्री मौजूद हैं। गहलोत के विधायकों को मनाने और उनकी राय जानने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे अशोक गहलोत के समर्थक विधायकों ने कांग्रेस आलाकमान के सामने एक गंभीर समस्या खड़ी कर दी है। दिल्ली पहुंचे कांग्रेस नेताओं का प्रयास के इस संकट का समाधान रविवार रात को ही हो जाए। आलाकमान के फैसले के खिलाफ गहलोत गुट ने बगावती तेवर दिखा दिए हैं। प्रदेश कांग्रेस के दो फाड़ हो चुके हैं। अभी तक अशोक गहलोत और सचिन पायलट के गुटों में जुबानी जंग ही देखने को मिलती थी। लेकिन नए सीएम के नाम पर यह जंग खुलकर सामने आ गई। पायलट को छोड़कर कोई भी चलेगा, डिमांड रखते हुए गहलोत कैंप के 90 से अधिक विधायकों ने रविवार रात अपना इस्तीफा विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी को सौंप दिया विधायकों के इस रुख को देखते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी अजय माकन और बतौर पर्यवेक्षक जयपुर भेजे गए मल्लिकार्जुन खड़गे को सभी विधायकों से एक-एक करके बात करने का निर्देश दिया. हालांकि कांग्रेस के ये विधायक उनसे बात नहीं की. ये विधायक घंटों तक सीपी जोशी के आवास पर ही डटे रहे और फिर वहां से देर रात अपने घर को लौट गए. सीपी जोशी के घर से निकलने के बाद प्रदेश कांग्रेस के मुख्य सचेतक महेश जोशी ने मीडिया से बातचीत में कहा, ‘विधायकों के मन में कुछ चीज़ों को लेकर शिकायत थी. विधायकों ने अपनी-अपनी बातें रखीं, जिसे अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे तक पहुंचा दी गई हैं.’ इसके साथ ही उन्होंने साफ किया कि कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव हो जाने के बाद ही राजस्थान में नए सीएम पर फैसला हो.
गहलोत सरकार के मंत्री और सीएम के करीबी प्रताप खाचरियावास ने 92 विधायकों के इस्तीफे के बात कही। उन्होंने कहा कि आलाकमान ने विधायकों की राय के बिना अपना फैसला सुनाने का फैसला किया है, जो ठीक नहीं है। उन्हें एक लाइन का यह प्रस्ताव पास करने को कहा गया था कि मुख्यमंत्री का फैसला आलाकमान करेगा। हालांकि, जब उनसे यह सवाल किया गया कि क्या सरकार गिरने वाली है तो उन्होंने इस बात से इनकार किया। उन्होंने कहा कि सरकार ऐसे नहीं गिर जाती है। इस बवाल के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हाथ खड़े कर दिए और कहा कि उनके बस में कुछ नहीं है। उन्होंने कहा है कि यह विधायकों का निजी फैसला है और इसमें उनका कोई हाथ नहीं। इसके बाद वेणुगोपाल ने खड़गे से भी बात की है। जिसके बाद दिल्ली आलाकमान से निर्देश आया कि सभी विधायकों से बात करके मसले को सुलझाया जाए। विधायक दल की बैठक से पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि ऐसी बैठकों में एक लाइन का रिजोल्यूशन पास करते हैं कि जो हाईकमान तय करेगा, वही हमें मंजूर होगा। मैंने तो 9 अगस्त को ही हाईकमान से कह दिया था कि जो सरकार रिपीट करवा सके, उसे ही सीएम बनाना चाहिए। अगला मुख्यमंत्री जो बनेगा उसे कहूंगा कि वो युवाओं पर ध्यान दे। मेरी कलम गरीब के लिए चली। अब मैं चाहता हूं कि नौजवानों के बीच जाऊं।
सूत्रों के अनुसार, नाराज और इस्तीफा दे चुके विधायकों के गुट ने आलाकमान के सामने अपनी तीन शर्ते रखी हैं। जिसमें कहा गया है कि अशोक गहलोत अध्यक्ष चुनाव के बाद CM पद से इस्तीफा देंगे। वहीं जो भी मुख्यमंत्री बनेगा वो उन 102 विधायकों में से हो जिन्होंने 2020 में सचिन पायलट की बगावत के दौरान सरकार गिरने से बचाने का काम किया था। और तीसरी शर्त यह है कि अगला मुख्यमंत्री आशोक गहलोत की राय पर ही बनाया जाए। विधायकों ने साफ़ कर दिया है कि जब तक उनकी बातें नहीं मानी जाएंगी, तब तक कोई विधायक बैठक में शामिल नहीं होगा। अगर 92 विधायकों का इस्तीफा मंजूर हो जाता है तो अशोक गहलोत की सरकार गिर जाएगी। हालांकि, इसकी संभावना बेहद कम है क्योंकि जानकार मान रहे हैं कि यह सब कुछ कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बनाने के लिए किया जा रहा है ताकि सचिन पायलट को सीएम बनने से रोका जा सके। दरअसल, गहलोत समर्थक शुरू से ही कह रहे थे कि सचिन पायलट के अलावा राजस्थान का सीएम कोई भी बने, लेकिन पायलट और उनके समर्थक नहीं।