इसी साल 6 मार्च को अमृतसर स्थित BSF की 144 बटालियन के हेडक्वार्टर में एक जवान ने अपने 4 साथियों पर गोली चला दी थी। चारों की मौत हो गई थी। बाद में ट्रीटमेंट के दौरान गोली चलाने वाला जवान भी नहीं बचा। वह मानसिक तौर पर बीमार था।
अब BSF की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी ने पांच अफसरों और एक व्यक्ति के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए हैं। यह घटना BSF की महज एक बानगी है। जमीनी हालात कितने खराब हैं, इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि बीते 10 सालों में सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्सेज, यानी CAPF (जिसमें BSF भी शामिल है) के 1205 जवानों ने सुसाइड किया है।
दो महीने पहले 21 मई को भास्कर भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर पहुंचा था और हमने BSF जवानों की जिंदगी को बहुत करीब से समझने की कोशिश की थी। उस रिपोर्ट को आज दोबारा पब्लिश कर रहे हैं।
1 मई 2022 की रिपोर्ट…
जगह : भारत-पाकिस्तान बॉर्डर
पोस्ट : बॉर्डर प्वाइंट 000
ये तीन जीरो हमने गलती से नहीं छोड़े हैं, जान बूझकर सही नंबर नहीं लिख रहे। जवानों ने मना किया है, ताकि पहचाने न जाएं। यहां BSF के 40 जवान तैनात हैं।
इसी के बहाने पहले दो सच साझा कर रहा…
पहला : 2016 से 2020 के बीच, यानी 4 साल में बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स, यानी BSF के 20,249 जवानों ने वॉलेंटरी रिटायरमेंट ले लिया है और 1,708 ने तो रिजाइन ही कर दिया।
दूसरा : बीते 10 सालों में सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्सेज, यानी CAPF (जिसमें BSF भी शामिल है) के 1,205 जवानों ने सुसाइड कर लिया।
ये बातें डराती हैं। हम तो इनके गीत गाते हैं, फिर ऐसा हो क्यों रहा। इसकी सबसे भीतरी परतें जवानों से जुड़ी हैं। इसलिए हम उन्हीं के पास पहुंचे। अब आपको बॉर्डर नंबर 000 से चार वक्त की कहानी सुना रहा…
पहली कहानी: सुबह के 4.30 बजे हैं, जवान टॉयलेट के सामने अपनी बारी के इंतजार में खड़े हैं
मैं BSF कैंप में हूं। जिन जवानों को सुबह 6 बजे वाली शिफ्ट में ड्यूटी पर जाना है, वे उठ चुके हैं। टॉयलेट कॉमन है, इसलिए हर कोई अपनी बारी के इंतजार में कतार में खड़ा है। जो हालात हैं उसकी फोटो दिखा नहीं सकते। फोटो लेने से भी मना किया है। इसे भास्कर के आर्टिस्ट गौतम चक्रवर्ती की बनाई इस पेंटिंग से समझिए…
जो लोग तैयार हो चुके हैं, वे ब्रेकफास्ट कर रहे हैं। तय वक्त पर बॉर्डर पर पहुंचना है, इसलिए जवान 5.30 बजे से पैदल निकलना शुरू कर रहे हैं। हाथों में इंसास राइफल है, पैरों में काले रंग के जूते, सिर पर कैप जिस पर BSF लिखा है। कुछ के हाथ में पानी की बोतल और बाइनाकुलर भी है। इसी बीच कैंप में रात वाली शिफ्ट से लौट रहे जवानों का सिलसिला भी जारी है।
दूसरी कहानी: दोपहर के साढ़े बारह बजे तक सब लौट आए हैं, सोने के लिए महज 2 घंटे का वक्त
दोपहर के 12 बजे हैं। जो लोग सुबह 6 बजे गए थे, उनकी शिफ्ट ओवर हो गई है। जवान बॉर्डर से कैंप के लिए निकलना शुरू कर चुके हैं। 12.30 बजे तक सब लौट आए हैं।
कोई टॉयलेट में है, कोई अपने छोटे-मोटे काम निपटा रहा, तो कोई नहा रहा है। इन सब एक्टिविटी में दोपहर के 1.30 बज जाते हैं, फिर लंच शुरू होता है। बेड पर जाते-जाते किसी को 2 तो, किसी को 2.30 बज चुके हैं।
इस बीच कुछ जवान मोबाइल लेकर आसपास कोई जगह ढूंढ रहे, जहां नेटवर्क आए तो घर बात हो जाए। जवानों के पास सोने के लिए अब महज 2 घंटे का वक्त है, क्योंकि शाम 6 बजे उन्हें फिर दूसरी शिफ्ट के लिए निकलना जो है।
तीसरी कहानी : शाम के 4.30 बज रहे हैं, जवानों के उठने का सिलसिला शुरू हो चुका है
शाम के 4.30 बज रहे हैं, जो जवान दो घंटे पहले सोए थे, उनके उठने का सिलसिला शुरू हो चुका है। कुछ कैंप के मेंटेनेन्स में जुट चुके हैं। कुछ देर काम के बाद डिनर शुरू हो गया। डिनर के बाद शाम 5.30 बजे से जवान सरहद के लिए निकल रहे हैं। तय वक्त पर शाम 6 बजे जवान सरहद संभाल चुके हैं।
चौथी कहानी : रात के 12.30 बजे आने का सिलसिला शुरू
अभी रात के 12 बज रहे हैं, जो जवान शाम को गए थे, अब उनकी दूसरी शिफ्ट पूरी हो गई है। 12.30 बजे तक कैंप में जवानों के आने-जाने का सिलसिला लगा हुआ है। अगला एक घंटा रुटीन एक्टिविटी में जाता है। कोई रात के 2 बजे सोने गया है तो किसी को 2.30 बज गए।
इन जवानों को दो घंटे बाद यानी 4.30 बजे तक किसी भी हाल में उठना होगा, क्योंकि सुबह 6 बजे फिर सरहद पर पहुंचना है। यानी दोनों शिफ्ट में जवान मुश्किल से 4 घंटे ही सो पाए। वो भी टुकड़ों में। जिन्हें तुरंत नींद नहीं आती, वे और भी कम सो पाते हैं।
नियम क्या है : BSF में कोई फिक्स ड्यूटी आवर्स नहीं हैं। आमतौर पर एक BOP यानी बॉर्डर आउटपोस्ट के पास तीन से साढ़े किमी का एरिया होता है, जिसे 18 से 20 जवान दिन-रात संभालते हैं। जवानों की संख्या के आधार पर वर्किंग आवर्स बदलते रहते हैं।
भास्कर रिपोर्टर ने BSF जवानों के साथ कई घंटे बिताए और यह जानने की कोशिश की कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। इसके कई रीजन सामने आए हैं। सिलसिलेवार तरीके से हम आपसे शेयर कर रहे हैं। पढ़िए ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट।
चैलेंज नंबर 1 : घने जंगल से रेतीले बीहड़ में पोस्टिंग
बात पिछले साल की है। एक बटालियन 29 जुलाई को नॉर्थ ईस्ट से चलती है, और 4 अगस्त को वेस्ट में पहुंच जाती है। अगले दो दिनों बाद यानी 6 अगस्त को इन्हें बॉर्डर पर तैनात कर दिया जाता है। मतलब मौसम, भौगोलिक स्थितियां, खाना-पीना सब कुछ एकदम अलग। घनी हरियाली से रेतीले बीहड़ में पोस्टिंग।