नागरमोथा क्या है? जानिए इसके महत्वपूर्ण फायदे!

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हमारे वैदिक विज्ञान में कई प्रकार के पौधों का वर्णन है जो औषधीय रूप में काम करती है! आपने नागरमोथा का पौधा जरूर देखा होगा, लेकिन नागरमोथा के फायदे के बारे में नहीं जानते होंगे। यह एक प्रकार का खर-पतवार है जो धान की फसल के साथ होता है। आप नागरमोथा का उपयोग एक औषधि के रूप में कर सकते हैं और भूख बढ़ाने, पाचन विकार को ठीक करने के साथ-साथ अन्य कई रोगों में नागरमोथा के फायदे ले सकते हैं।आयुर्वेद के अनुसार, अधिक प्यास लगने की समस्या, बुखार और पेट में कीड़े होने पर नागरमोथा से लाभ मिलता है। इसका लेप लगाने से सूजन ठीक होती है। इतना ही नहीं यह स्तनपान कराने वाली महिलाओं के दूध को बढ़ाता है। आइए जानते हैं कि नागरमोथा से और क्या-क्या लाभ मिलता है।

नागरमोथा तीखा और कड़वा होता है। इसकी तासीर ठंडी होती है। यह पचने में हल्का होता है। यह कफ, पित्त, खून की अशुद्धता को ठीक करने में सहायता करता है।  नागरमोथा का पौधा अधिकांशतः तालाबों और नदियों के किनारे नमी वाली जमीन में होता है। इसमें फूल जुलाई तथा फल दिसम्बर में लगते हैं। नागरमोथा तीन प्रकार का होता हैः–

मोथा

नागरमोथा

केवटीमोथा

नागरमोथा का पौदा कोमल, पतला, सुगंधित और घास की तरह छोटा होता है। नागरमोथा का तना जमीन से ऊपर सीधा, तिकोना और बिना शाखा का होता है। नीचे कंद होता है, जिससे प्रकंद जुड़े होते हैं। ये गूदेदार सफेद होते हैं, लेकिन बाद में रेशेदार भूरे रंग के, और पुराने होने पर लकड़ी की तरह कठोर हो जाते हैं। इसके पत्ते विभिन्न आकार के, लम्बे, पतले, घास जैसे तथा कमजोर होते हैं। इसके भूमि में रहने वाले हिस्से में अंडाकार, सुगन्धित, बाहर से पीले रंग के दिखने वाले और अन्दर से सफेद दिखने वाले अनेक कन्द लगे रहते हैं। इन कंदों को ही नागरमोथा कहते हैं।

बाजारों में नागरमोथा के स्थान पर Cyperus diffusus Vahl नामक पौधे के प्रकन्द को बेचा जाता है। यह नागरमोथा से भिन्न दूसरी प्रजाति है। नागरमोथा के प्रकन्द सुगन्धित होते हैं, लेकिन इसके प्रकन्द नागरमोथा से कम गुण वाले और कम सुगन्धित होते हैं। यहां नागरमोथा से होने वाले सभी फायदे को आपकी भाषा और बहुत ही आसान शब्दों में बताया गया है।

नागरमोथा को बकरी के दूध व जल में घिसकर आँखों में काजल की तरह लगाएं। इससे आँखों में होने वाली जलन, लालिमा, कालापन व रात में कम दिखने की बीमारी ठीक होती है।

नागरमोथा प्रकंद का काढ़ा बनाकर ठंडा कर लें। इससे आँखों को धोने से नेत्र रोग में लाभ होता है।नागरमोथा, सोंठ, हरीतकी, मरिच, पिप्पली, वायविडंग तथा नीम को पीस लें। इसमें गोमूत्र मिलाकर छाया में सुखा लें। इसकी वटी बना लें। रात में 1-2 मुंह में रखने से दाँतों के रोग में लाभ होता है।नागरमोथा, पिप्पली, मुनक्का तथा बड़ी कटेरी के अच्छे पके फलों को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह घोट लें। इसे घी और मधु के साथ मिलाकर चाटें। इससे टीबी के कारण होने वाली सूखी खाँसी और अधिक प्यास लगने की समस्या में लाभ होता है।

अडूसा, सोंठ, नागरमोथा, भारंगी, चिरायता तथा नीम की छाल का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मि.ली. काढ़ा में मधु डालकर पिलाएं। इससे सूखी खाँसी तथा सांस के फूलने की समस्या ठीक ठीक होती है।

नागरमोथा, पित्तपापड़ा, उशीर (खस), लाल चन्दन, सुगन्धबाला, सोंठ को डालकर काढ़ा बना लें। इसे ठंडा करके रोगी को पिलाने से अधिक प्यास लगने की समस्या तथा बुखार ठीक होता है।

नागरमोथा, इंद्रजौ, मैनफल तथा मुलेठी को समान मात्रा में लेकर कूट-पीसकर लें। इसे कपड़े से छान लें। इसके चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करने से उलटी बंद होती है।नागरमोथा की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-30 मि.ली. मात्रा में पिलाने से पाचनक्रिया तेज होती है।

5-10 ग्राम नागरमोथा चूर्ण का सेवन करने से पेट के कीड़े खत्म होते हैं।

नागरमोथा, सोंठ तथा अतीस से बने काढ़े का सेवन करने से अनपच की समस्या ठीक होती है।

नागरमोथा, अतीस, हरड़ अथवा सोंठ चूर्ण को गर्म पानी के साथ सेवन करने से अपच की समस्या ठीक होती है।

10 ग्राम नागरमोथा तथा 10 ग्राम पित्तपापड़ा का काढ़ा बना लें। इसे सुबह और शाम भोजन से 1 घण्टा पहले पिएं। इससे बुखार तथा बुखार के कारण भूख न लगने की परेशानी ठीक होती है।

नागरमोथा का काढ़ा बनाकर सुबह, दोपहर तथा शाम को सेवन करने से अनपच के कारण होने वाली दस्त की समस्या ठीक होती है।

अदरक और नागरमोथा को पीस लें। इसे 2.5 ग्राम की मात्रा में मधु के साथ सेवन करें। इससे अनपच के कारण होने वाले दस्त में लाभ होता है।

बराबर मात्रा में सुंधबाला, नागरमोथा, बेल, सोंठ तथा धनिया का काढ़ा बना लें। इससे 10-40 मि.ली. की मात्रा में पीने से दस्त में लाभ होता है।