भूमि आंवला को एक प्रकार की जड़ी बूटी माना जाता है! आप भुई आंवला के बारे में शायद बिल्कुल नहीं जानते होंगे। असल में, बहुत कम लोग ही भुई आंवला के बारे में जानते हैं। भुई आंवला एक जड़ी-बूटी है। आयुर्देव के अनुसार, भुई आंवला का इस्तेमाल चिकित्सा कार्यों जैसे लोगों की अनेक बीमारियों को ठीक करने के लिए किया जाता है। भुई आंवला का उपयोग सिर्फ रोगों को ठीक करने के लिए ही नहीं बल्कि से भूख और कामोत्तेजना बढ़ाने के लिए भी किया जाता है।
पतंजलि के अनुसार, भुई आंवला स्वाद में चरपरा, कसैला तथा मीठा होता है। यह अधिक प्यास लगने की परेशानी, खांसी, खुजली, कफ और बुखार आदि में तो फायदा पहुंचाता ही है साथ ही लिवर के किसी भी प्रकार के रोग की दिव्य औषधि भी माना जाता है। अगर आप इसका लेप घाव पर करेंगे तो इससे घाव की सूजन तो ठीक होगी ही साथ ही घाव भी ठीक हो जाएगा। यह कुष्ठ रोग में भी उपयोगी होता है। आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि अगर भुई आंवला के प्रयोग से इतने सारे फायदे होते हैं तो यह आपको कितना लाभ पहुंचा सकता है।श्वसन तंत्र संबंधी विकार को ठीक करने के लिए भुई आंवला बहुत फायदेमंद होता है। भूम्यामलकी की 10 ग्राम जड़ को जल में पीसकर उसमें 1 चम्मच मिश्री या शहद मिलाएं। इसे पिलाने से और इसको नाक के रास्ते देने से श्वास रोग में लाभ होता है।
भुई आंवला के 50 ग्राम पञ्चाङ्ग को आधा लीटर जल के साथ औटाएं। जब यह एक चौथाई बच जाए तो इसे काढ़ा को एक-एक चम्मच दिन में दो बार पिलाने से श्वास रोग में लाभ होता है।
भूम्यामल की रस को घाव में लगाने से घाव ठीक होता है। इसी तरह भूम्यामल की पञ्चाङ्ग को चावलों के पानी के साथ पीसकर घाव पर लगाने पर घाव की सूजन ठीक हो जाती है। आमलकी के पत्तों का काढ़ा बनाकर घाव को धोने से भी घाव ठीक होता है। भुई-आंवला के कोमल पत्तों को पीसकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है।
भुई आंवला के पत्ते को पीसकर उसमें नमक मिलाकर खुजली पर लगाएं। खुजली ठीक हो जाती है।भुई-आंवला के कोमल पत्तों को चोट पर लगाने से चोट की पीड़ा शांत हो जाती है। इसे जांघों की खुजली में भी लगाया जा सकता है।तांबे के बर्तन में भुई आंवला को सेंधा नमक के साथ जल में घिसें। इसे आंख के बाहर लेप करने से आंखों के रोग में लाभ होता है।
भूम्यामलकी के 50 ग्राम पत्तों का 200 मिली जल में हिम बनाएं। इससे कुल्ला करने से मुंह के छाले ठीक होते हैं।भुई आंवला के 50 ग्राम पञ्चाङ्ग को आधा लीटर जल में औटाएं। जब काढ़ा एक चौथाई रह जाता है तो काढ़ा को एक-एक चम्मच दिन में दो बार पिलाने से खांसी में लाभ होता है।
इसी तरह पिप्पली, लाल चन्दन, भुई आंवला, सारिवा तथा अतीस आदि द्रव्यों से बनी घी का नियम से सेवन करने से भी खांसी की बीमारी में आराम मिलता है।
भुई आंवला के 20 ग्राम पत्तों को 200 मिली जल में उबालें। इसे छानकर थोड़ा-थोड़ा पीने से पेट दर्द से आराम मिलता है।
भुई आंवला की जड़ और पत्तों से बने ठंडे पदार्थ को लगभग 10-20 मिली मात्रा में दिन में दो बार लेने से जलोदर रोग में लाभ होता है।
भुई आंवला के 50 ग्राम पञ्चाङ्ग को 400 मिली पानी में पकाएं। जब पानी एक चौथाई हो जाए तो शेष काढ़ा को 10 मिली की मात्रा में दिन में तीन चार बार पिलाएं। इससे जलोदर में लाभ होता है।
त्रायमाणाद्य घृत में भूम्यामलकी को मिलाकर सेवन करने से पित्तज विकार के कारण होने वाली गांठ, रक्त विकार के कारण होने वाली गांठ में फायदा होता है।
छाया में सुखाए हुए भूमि आंवला को मोटा-मोटा कूटकर रख लें। 10 ग्राम भूम्यामलकी को 400 मिली पानी में पकाएं। जब एक चौथाई से भी कम रह जाए, तब छानकर सुबह खाली पेट और रात को भोजन से एक घण्टा पहले सेवन करें। यह आंतों में होने वाले घाव (अल्सर) को ठीक करने के लिए चमत्कारिक औषधि है।सिर दर्द से आराम पाने के लिए घी में पिप्पली, लाल चन्दन, भुई आंवला, सारिवा तथा अतीस आदि द्रव्यों से मिलाएंं। इसका सेवन करें। इससे सिर दर्द ठीक हो जाता है।भुई आंवला के कोमल पत्तों और काली मिर्च (चौथाई भाग) को पीसें। उनकी जायफल के बराबर गोलियां बना कर 2-2 गोली दिन में दो बार देें। इससे गंभीर ज्वर में तो लाभ होता ही है साथ ही बार-बार आने वाले गंभीर बुखार ठीक हो जाता है।
घी में पिप्पली, लाल चन्दन, भुई आंवला, सारिवा तथा अतीस आदि सामान पकाएं। इसका सेवन करने से बुखार में लाभ होता है।
बलादि घी में बला मूल, गोखरू, निम्ब, पर्पट, भूम्यामलकी तथा नागरमोथा को पकाएं। इसका सेवन करने से भी बुखार में लाभ होता है।10 मिली भुई आंवला के रस में जीरा तथा चीनी मिलाकर पिलाने से पेशाब में जलन सहित अन्य मूत्र विकार ठीक होते हैं।
एक चम्मच भुई आंवला के पत्ते के रस में जीरा और चीनी मिलाकर देने से पेशाब की जलन की परेशानी में लाभ होता है।
10 मिली भुई आंवले के रस में 10 मिली गाय का घी मिलाएं। इसका सेवन करने से पेशाब के रुक-रुक कर आने की परेशानी में लाभ होता है। इसके 100 ग्राम पत्तों को 250 मिली दूध के साथ मसलकर पिलाने से मूत्र संबंधी विकार ठीक होते हैं।
भुई आंवला के 50 ग्राम पञ्चाङ्ग को 400 मिली पानी में पकाएं। जब पानी एक चौथाई रह जाए तो उसमें मेथी चूर्ण 5 ग्राम मिलाएं। इसे थोड़ा-थोड़ा पीने से दस्त की गंभीर बीमारी में लाभ होता है।
भुई आंवला के 20 ग्राम पत्तों को 200 मिली जल में उबालें। इसे छानकर थोड़ा-थोड़ा पीने से आमातिसार में लाभ होता है।