पश्चिम बंगाल के 24 परगना में गुरूवार को टीएमसी के 3 कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई। मृतकों की पहचान टीएमसी कार्यकर्ता भूतनाथ, स्वपन और झंटू हलदात के रूप में हुई है। ये तीनों एक ही मोटर वाहन पर सवार थे। इस दौरान अज्ञात शख्स ने उन्हें गोली मारी जिसने तीनो की मृत्यु हो गई। हालाकि पुलिस की प्रारंभिक जांच में हत्या को व्यक्तिगत रंजिश का कारण बताया जा रहा है।
पश्चिम बंगाल उन राज्यों की सूची में सबसे ऊपर है जहां राजनीति हिंसा का एक मकसद है।भारतीय जनता पार्टी का आरोप लगाती रहती है कि उसके कई कार्यकर्ता बंगाल में राजनीतिक हिंसा के शिकार हुए है, क्योंकि जब उसके कार्यकर्ताओं पर हमला होता है तो पुलिस दूसरी तरफ देखती है। ये दुखद बात है की राजनीति हिंसा बंगाल के राजनीतिक जीवन से जुड़ा दुखद पहलू हैं।
आंकड़ों से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल उन राज्यों की सूची में सबसे ऊपर है जहां राजनीति हत्या का मकसद है। राजनीति के लिए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों को हत्या के कारण के रूप में दिखाया गया है कि संख्या काफी कम है। राजनीति के कारण मारे गए लोगों का अखिल भारतीय आंकड़ा केवल 61 है। लेकिन 12 हत्याओं के साथ, पश्चिम बंगाल दूसरों को पीछे छोड़ देता है।
भारतीय जनता पार्टी आरोप लगाती रहती है कि उसके कई कार्यकर्ता बंगाल में राजनीतिक हिंसा के शिकार हुए है। बीजेपी का आरोप सबसे ज्यादा बंगाल में राजनीतिक हिंसा उसके कार्यकर्ताओं पर हुई है। साथ ही साथ बीजेपी का आरोप है की राज्य सरकार पुलिस को एक तरफा कारवाही के लिए निर्देशित करती है। पार्टी ने दावा किया है कि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) कार्यकर्ताओं द्वारा कथित तौर पर किए गए हमलों में 120 से अधिक पार्टी कार्यकर्ताओं की जान चली गई है। टीएमसी हमेशा हिंसा के आरोपों का खण्डन करती आई है।
वही हालही में पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में 3 लोगों को गोली मार कर हत्या कर दी गई इससे न केवल राज्य की कानून व्यवस्था एक बार फिर सवालो के घेरे में खड़ी हो गई है। बल्कि वहां स्थानीय स्तर पर सत्ता के संघर्ष को भी बयां करती है। असल में बंगाल में राजनीतिक हत्या का मामला कोई नया नहीं है। अगर तीन साल 2018 से2020 के आंकड़े देखें जाए तो बिहार के बाद बंगाल में सबसे ज्यादा राजनीतिक हत्याएं होती हैं। इन तीन साल में बिहार में जहां 31 लोगों की जान गई , वहीं पश्चिम बंगाल में 27 लोगों को राजनीतिक हत्याओं का शिकार होना पड़ा।
क्या सबसे हालिया राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ।
(एनसीआरबी) की रिपोर्ट (2021) के अनुसार, पश्चिम बंगाल में देश में सबसे अधिक राजनीतिक हत्याएं हुईं। जबकि केरल ने पिछले तीन दशकों में 200 से अधिक राजनीतिक हत्याएं देखी हैं, जो बड़े पैमाने पर वाम दलों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बीच प्रतिद्वंद्विता से उत्पन्न हुई हैं, यह कहीं भी बंगाल के करीब नहीं है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, बंगाल 1999 से हर साल औसतन 20 राजनीतिक हत्याओं की रिकॉर्डिंग कर रहा है। फिर से, एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से टीएमसी और भाजपा कार्यकर्ताओं की 47 राजनीतिक हत्याएं हुई हैं। हालांकि, हिंसा केवल पार्टी कार्यकर्ताओं तक ही सीमित नहीं है। इसने राज्य में 2021 के विधानसभा चुनावों के दौरान दोनों दलों के शीर्ष नेताओं को भी छुआ है। दिलचस्प बात यह है कि राज्य में राजनीतिक हिंसा चुनाव से पहले या चुनाव के बाद की हिंसा तक ही सीमित नहीं है। यह ‘रोजमर्रा की हिंसा’ है जो बंगाल के मामले को बहुत अलग और चिंताजनक बनाती है। लेकिन असली सवाल यह है कि राजनीतिक रूप से स्थिर समाज में राजनीतिक हिंसा की संस्कृति इतने लंबे समय तक कैसे बनी रहती है।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो रखती है देश में अपराधिक रिकॉर्ड ।
भारत सरकार, गृह मंत्रालय के साथ संलग्न एक कार्यालय है। नई दिल्ली स्थित इस ब्यूरो का प्रमुख उद्देश्य भारत की पुलिस के आधुनिकीकरण व सूचना प्रौद्योगिकी में सशक्त करना है।
यह ब्यूरो देश भर में “अपराध अपराधी सूचना प्रणाली” (Crime Criminal Information system, CCIS, सी.सी.आई.एस.) के अंतर्गत प्रत्येक राज्य अपराध रिकार्ड ब्यूरो एवं जिला अपराध रिकार्ड ब्यूरो में 762 सर्वर-आधारित कम्प्यूटर सिस्टम स्थापित कर चुका है, ताकि अपराध, अपराधियों एवं अपराधियों की सम्पत्ति से संबंधित राष्ट्रीय स्तर के डाटा बेस को व्यवस्थित किया जा सके। इसके अतिरिक्त यह ब्यूरो “अपराध एवं अपराधी खोज नेटवर्क और प्रणाली” (Crime and Criminal Tracking Network and Systems, CCTNS, सी.सी.टी.एन.एस.) को भी कार्यान्वित कर रहा है, जो भारत सरकार के राष्ट्रीय ई-गर्वनेंस योजना के अंतर्गत एक मिशन मोड परियोजना है।