सामान्य तौर पर कई प्रकार के पौधों का वर्णन हमारे वैदिक विज्ञान में किया गया है! क्या आपने कभी बाकुची का नाम सुना है? शायद ही कभी सुने होंगे। जिन लोगों को आयुर्वेद के बारे में जानकारी होगी, हो सकता है कि वे बाकुची के बारे में जानकारी रखते हों, कि बाकुची क्या है या बाकुची से फायदे क्या होते हैं लेकिन अन्य लोगों को बाकुची के उपयोग के बारे में कुछ भी पता नहीं होगा। दरअसल देखने में तो बाकुची बिल्कुल एक साधारण सा पौधा लगता है लेकिन यह बहुत काम की चीज है। यह एक बहुत फायदेमंद औषधि है।आयुर्वेद में बाकुची के बारे में अनेक फायदेमंद बातें बताई गई हैं। बाकुची के प्रयोग से खांसी, प्रमेह, बुखार, पेट के कीड़े, उल्टी, त्वचा की बीमारी, कुष्ठ रोग सहित कई और बीमारियों में लाभ पाया जा सकता है। आपने बाकुची को देखा जरूर होगा क्योंकि यह प्रायः जंगल-झांड़ में पैदा हो जाता है। वैसे इसकी खेती भी होती है। आइए जानते हैं कि इससे आप क्या लाभ ले सकते हैं।
बाकुची के पौधे की आयु एक वर्ष होती है लेकिन सही देखभाल करने से बाकुची का पौधा 4-5 वर्ष तक जीवित रह जाते हैं। बाकुची की बीजों से बने तेल और पौधे को चिकित्सा के लिए प्रयोग में लाया जाता है। बाकुची के फूल ठंड के मौसम में लगते हैं और गर्मी में फलों में बदल जाते हैं।
बिजौरा नीम्बू की जड़ तथा बाकुची की जड़ को पीसकर बत्ती बना लें। इससे दांतों के बीच में दबा कर रखने से कीड़ों के कारण होने वाले दांत के दर्द सहित अन्य तरह के दांतों के दर्द से राहत मिलती है।
बाकुची के पौधे की जड़ को पीस लें। इसमें थोड़ी मात्रा में साफ फिटकरी मिला लें। प्रत्येक सुबह शाम इसका मंजन के रूप में प्रयोग करने से दांतों में होने वाले संक्रमण की बीमारी ठीक हो जाती है और कीड़े खत्म होते हैं।आधा ग्राम बाकुची बीज चूर्णको अदरक के रस के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करें। इससे सांसों के रोग में लाभ होता है।बाकुची के पत्ते का साग सुबह-शाम नियमित रूप से कुछ हफ्ते खाने से दस्त में बहुत लाभ होता है।
10 मिली पुनर्नवा के रस में आधा ग्राम पीसी हुई बाकुची के बीजों का चूर्ण मिला लें। सुबह-शाम रोजाना सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है! बाकुची का उपयोग गर्भधारण रोकने के लिए भी किया जा सकता है। जो महिलाएं गर्भधारण नहीं करना चाहती हैं वे मासिक धर्म से शुद्ध होने के बाद बाकुची के बीजों को तेल में पीसकर योनि में रखें। इससे गर्भधारण करने की क्षमता समाप्त हो जाती है।फाइलेरिया में भी बाकुची का इस्तेमाल किया जा सकता है। बाकुची के रस तथा पेस्ट का फाइलेरिया या हाथी पांव से प्रभावित अंग पर लेप करें। इससे फाइलेरिया में लाभ होता है।
त्वचा रोग में लाभ लेने के लिए बाकुची तेल दो भाग, तुवरक तेल दो भाग तथा चंदन तेल एक भाग मिलाएं। इस तेल को लगाने से सामान्य त्वचा की बीमारी सहित सफेद कुष्ठ आदि रोग नष्ट होते हैं।
बाकुची के बीज चार भाग और तबकिया हरताल एक भाग का चूर्ण बना लें। इसे गोमूत्र में मिलाकर सफेद दागों पर लगाएं। इससे सफेद दाग दूर हो जाते हैं।
बाकुची और पवाड़ को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर सिरके में पीसकर सफेद दागों पर लगाएं। इससे सफेद दाग में लाभ होता है।
बाकुची, गंधक व गुड्मार को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर तीनों का चूर्ण कर लें। 12 ग्राम चूर्ण को रात में जल में भिगो दें। सुबह निथरा हुआ जल सेवन कर लें तथा नीचे के तल में जमा पदार्थ को सफेद दागों पर लगाते रहने से सफेद दाग खत्म हो जाते हैं।
10-20 ग्राम शुद्ध बाकुची चूर्ण में एक ग्राम आंवला मिलाएं। इसे खैर तने के 10-20 मिली काढ़ा के साथ सेवन करें। इससे सफेद दाग की बीमारी ठीक हो जाती है।
बाकुची को तीन दिन तक दही में भिगोकर फिर सुखाकर रख लें। इसका शीशी में तेल निकाल लें। इस तेल में नौसादर मिलाकर सफेद दागों पर लेप करें। इससे सफेद दागों में लाभ होता है।
बाकुची, कलौंजी तथा धतूरे के बीजों को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर आक के पत्तों के रस में पीसें। इसे सफेद दागों पर लगाने से सफेद कुष्ठ के रोग में लाभ होता है।
बाकुची, इमली, सुहागा और अंजीर के जड़ की छाल को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर जल में पीसें। इसे सफेद दागों पर लेप करने से सफेद दाग रोग में लाभ होता है।