गंभारी क्या है? जानिए इसके फायदे!

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सामान्य तौर पर कई प्रकार की पेड़ पौधों का वर्णन हमारे वैदिक विज्ञान में औषधि के रूप में किया गया है! शायद आप गंभारी के बारे में बहुत अधिक नहीं जानते होंगे। गंभारी एक बहुत ही गुणी औषधि है। गंभारी का प्रयोग रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है। बहुत सालों से आयुर्वेदिक चिकित्सक गंभारी का उपयोग कर लोगों को स्वस्थ करने का काम कर रहे हैं।ग्रंथों में यह बताया गया है कि गम्भारी का प्रयोग सूजन दूर करने, वात को शांत करने के लिए किया जाता है। गम्भारी त्वचा रोग को ठीक करती है। यह पाचन तेज करती है, काम भावना को बढ़ाती है, शारीरिक ताकत देती है। यह खून की समस्याओं के लिए उत्तम औषधि है। इसके सेवन से कीड़ों से होने वाला रोग, दाद-खाज जैसे चर्म रोग तथा कुष्ठ इत्यादि बीमारियों तुरंत ठीक हो जाते हैं। आइए जानते हैं कि आप इन रोगों में गंभारी का प्रयोग कैसे कर सकते हैं।

गंभारी का प्रयोग कैसे कर सकते हैं?

गंभारी के पौधे की पत्तियाँ चिकनी और ठंडी होती हैं। इसकी छाल भी सूजन दूर करती है। छाल स्वाद में कडवी लेकिन पौष्टिक होती है। गंभारी के बीजों का तेल मीठा और कसैला दोनों होता है। यह तेल कफ-पित्त को नियंत्रित करती है।

गंभारी के पत्तों में मधु जैसा मीठा रस होता है। इस कारण इसे मधुपर्णिका भी कहते हैं। पत्ते सुन्दर होने के कारण इसे श्रीपर्णी कहा जाता है। इसके फूल पीले होते हैं। इस कारण इसे पीतरोहिणी नाम से भी जाना जाता है। गंभारी तीनों दोषों (वात, पित्त, कफ) को नियंत्रण में रखने में मदद करती है।  गंभारी की दो प्रजातियां होती है।

गम्भारी तथा

पानीय गम्भार।

कई स्थानों पर गम्भारी के स्थान पर पानीय गम्भार का भी प्रयोग किया जाता है। यह दोनों प्रजातियाँ गुण एवं कर्म में लगभग समान होती हैं।

गंभारी में बुखार और दर्द आदि दूर करने के गुण होते हैं।

इसके क्या है फायदे?

इसकी पत्तियों को पीसकर सिर पर लेप करने से बुखार के कारण होने वाला सिरदर्द तो दूर होता ही है, साथ ही जलन और सिर का भारीपन से भी छुटकारा मिलता है।यदि बाल असमय पकने लगे हों तो गम्भारी आपकी परेशानी दूर कर सकती है। इसके तेल की 1 से 2 बूँद नाक में डालते रहने से बालों का पकाना रुक जाता है।

फेफड़े तथा फेफड़े के कवच में किसी तरह की समस्या आने पर गंभारी का काढ़ा उपयोगी होती है। इस काढ़ा की 10 से 30 मिली लीटर की मात्रा नियमित रूप से पीने से फेफड़ों की समस्याएं ठीक होती हैंं।खूनी दस्त या पेचिश में गंभारी का सेवन लाभदायक होता है। गम्भारी के ताजे फलों को कूटकर उसका रस निकाल लें। दिन में 3-4 बार इस रस का 1-1 चम्मच सेवन करें। कुछ दिन तक लगातार पीने से तो खूनी दस्त या पेचिश रुक जाती है।गंभारी के फलों से रस बनाकर, इसमें अनार का रस तथा शक्कर मिलाकर पीने से खूनी दस्त तथा पेचिश में लाभ होता है।खाना ठीक से नहीं पचता हो या पाचन धीमा हो गया हो तो ऎसी स्थिति में गंभारी की जड़ का सेवन करना चाहिए। 3 ग्राम जड़ की चूर्ण को सुबह-शाम सेवन करने से पाचन ठीक हो जाता है।

गंभारी की जड़ का 40 मिली काढ़ा बना लें। इसे सुबह शाम सेवन करने से यह पेट की बीमारी में फायदा मिलता है। ये दोनों ही योग गैस बनने या पेट में कीड़े होने आदि की स्थिति में भी लाभ देते हैं।

सभी प्रकार के सूजन कम करने में भी इस चूर्ण और काढ़ा से मदद मिलाती है। इसके साथ ही पेट में दर्द होने पर गंभारी की जड़ का 3 ग्राम चूर्ण सेवन करने से आराम मिलता है।यदि आपको बहुत अधिक प्यास ज्यादा लग रही हो तो गम्भारी के 20 से 40 मिली काढ़ा में शक्कर मिलाकर पीने से प्यास कम होने लगती है।काढ़ा न हो तो इसके 5 से 10 मिली रस का सेवन शक्कर के साथ करने से भी यह लाभ होता है।

गम्भारी की छाल, आँवला का फल तथा लाल कचनार बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इस काढ़ा से बने खड्यूष में अनार, इमली आदि फलों के रस को मिलाकर सेवन करने से खून का थक्का बनने लगता है।इस तरह इस औषधि के प्रयोग से खूनी बबासीर में आराम मिलता है।

गम्भारी स्तनों को सुडौल एवं पुष्ट बनाता है। इसके लिए 2 किलोग्राम गंभारी छाल को कूटकर 16 लीटर जल में मिलाकर उबालें। एक चौथाई बचने तक उबाल कर काढ़ा बना लें। 250 ग्राम छाल को पानी के साथ पीसकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट और काढ़ा में 1 लीटर तिल का तेल मिलाकर तेल को पका लें। इस तेल में रूई को भिगोकर स्तनों पर रखे रहने स्तन सुडौल बनते हैं एवं पुष्ट होने लगते हैं।प्रसूति स्त्रियों के लिए यह उपाय बहुत फायदेमंद होता है। प्रसूति रोगों के उपचार के लिए गंभारी की 20 से 30 ग्राम छाल को 240 मिली जल में उबालें। इसका एक चौथाई हिस्सा बचने पर काढ़ा बना लें। सुबह और शाम काढ़ा का 10 से 20 मिली की मात्रा में नियमित सेवन करने से प्रसूति स्त्रियों से  जुड़े रोग दूर होते हैं।

इसके सेवन से गर्भाशय की सूजन भी कम हो जाती है।

इसके साथ ही बुखार वगैरह भी ठीक हो जाते हैं।

इससे सेवन से स्तनों में दूध की मात्रा भी बढ़ती है।

गंभारी के फल और मुलेठी को बराबर मात्रा में लेकर इसका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिला लें। इसे मधु के साथ सुबह और शाम सेवन करने से गर्भ में मौजूद बच्चे की रक्षा होती है।