Thursday, November 21, 2024
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100 लड़कियों के गैंगरेप कांड का ये इंसान है दोषी!

क्या आपने कभी सुना है कि कोई इंसान 100 से ज्यादा लड़कियों का गैंग रेप करके कानून के हाथों से अब तक बच रहा है? 21 अप्रैल 1992 को राजस्थान के अजमेर शहर की नींद खुली तो चाय की चुस्की लेते लोगों के हाथों में अखबारों ने पांव तले जमीन खिसका देने वाली खबर दी। स्थानीय अखबार दैनिक नवज्योति पढ़ने वाले हैरत में थे कि यह क्या हो गया? लोगों को यकीन नहीं हो पा रहा था या यूं कहें कि वो घिन आ जाने वाली ऐसी खबर पर यकीन करना नहीं चाहते थे, इसलिए एक-दूसरे के पास पहुंचने लगे और बात बढ़ने लगी। फिर 15 मई को धुंधली तस्वीरों के साथ उसी रिपोर्ट का दूसरा हिस्सा प्रकाशित हुआ तो पूरा शहर बेचैन हो उठा।वो तस्वीरें स्कूल-कॉलेज जाने वाली कमसिन लड़कियों की थीं जिनका यौन शोषण किया गया था और आरोप था शहर के सबसे रईस और ताकतवर खानदानों में से एक चिश्ती परिवार पर। उसी चिश्ती परिवार का हिस्सा जो अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह के खादिम हुआ करते हैं। पूरा शहर यह जानकर अचंभे में पड़ गया कि सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक हैसियत में शहर के शीर्ष परिवारों में शुमार खादिम परिवार के लड़के फारूक चिश्ती और नफीस चिश्ती आरोपों के केंद्र में हैं। पता चला कि दोनों यूथ कांग्रेस के प्रभावी नेता हैं।

फिर सुर्खियों में है अजमेर दरगाह का खादिम!

उसी अजमेर का एक और चिश्ती फिर से सुर्खियों में हैं। सलमान चिश्ती खुद को ख्वाजा के दरगाह का खादिम बताता है। उसने नूपुर शर्मा की हत्या करने वालों को अपना मकान देने का ऑफर करते वीडियो बनाया जो वायरल हो गया। अब सलमान गिरफ्तार हो चुका है। खबरों के मुताबिक, सलमान पर दरगाह थाने में पहले से ही कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। यानी, वह हिस्ट्रीशीटर है। ऊपर 1992 के जिस घटना का जिक्र किया गया है कि उसका एक मुख्य आरोपी नफीस चिश्ती भी हिस्ट्रीशीटर ही है। जो अभी जमानत पर जेल से बाहर है। फारूक समेत पांच आरोपियों के साथ उस पर भी 1992 अजमेर ब्लैकमेल कांड में पॉक्सो कोर्ट में मुकदमा चल रहा है।

न्यूज वेबसाइट द प्रिंट के मुताबिक, दिसंबर 2021 में अजमेर के पॉक्सो कोर्ट रूम में कुछ महिलाएं गुस्से में पुलिस वालों से झगड़ रही थीं। वो कह रही थीं- अब 30 वर्ष हो गए हैं। हम दादी, नानी बन चुकी हैं। आपलोग क्यों बार-बार बुलाते हैं हमें? उन्होंने पॉक्सो कोर्ट के जज और वकीलों पर भी अपना गुस्सा उतार रही थीं। मौके पर उनका यौन शोषण करने वाले भी मौजूद थे। महिलाओं ने कहा, ‘अब हम सबका परिवार है। अब तो हमें बख्श दीजिए।’ ये महिलाएं कोई और नहीं वर्ष 1992 में सामने आए अजमेर ब्लैकमेल कांड की शिकार थीं। यह 2004 के दिल्ली पब्लिक स्कूल (DPS) के एमएमएस कांड से बहुत पहले की बात है।अजमेर के ख्वाजा मुइनिद्दीन चिश्ती दरगाह से जुड़ा चिश्ती परिवार, स्कूल-कॉलेज जाने वाली करीब 100 लड़कियों के यौन शोषण की हैवानियत भरी घटना के केंद्र में था। लड़कियों के वीडियो और फोटो बनाए जाते थे और उन्हें अपनी सहेलियों को बुलाने को मजबूर किया जाता था। इस तरह एक के बाद एक करीब 100 लड़कियां इन वहशियों का शिकार हुईं। वह जमाना रील को साफ करके फोटो बनाने का था। जिस लैब में नग्न लड़कियों की रील धोकर तस्वीर निकाली जाती थी, उसका कारीगर भी गैंगरेप में शामिल हो गया। इस तरह, उनके पंजा में फंसी लड़कियों का महीनों गैंगरेप होता रहता था।

अजमेर दरगाह से जुड़े परिवार के लड़के मुख्य आरोपी

दरगाह से जुड़ा परिवार होने के कारण उनकी धार्मिक, सामाजिक रसूख था। वो काफी पैसे वाले थे और उनकी राजनीतिक ताकत भी थी। मुख्य आरोपियों में दो फारूक चिश्ती और नफीस यूथ कांग्रेस के प्रभावशाली नेता हुआ करते थे। उनके पास रॉयल एनफिल्ड बुलेट, येज्दी और जावा बाइक हुआ करती थीं। स्थानीय स्तर पर वो मशहूर हस्तियों जैसा रसूख रखते थे। अपनी खुली जीप, एंबेसडर और फिएट कार में टहलने निकलते। यह तब की बात है जब किसी के घर में गैस और फोन कनेक्शन होना रईसी का सबूत हुआ करते थे। चिश्ती परिवार के पास वो सब था। इन दरिंदों का शिकार हुईं कई लड़कियां अच्छे घरानों से आती थीं जिनके गार्जियन सरकारी नौकरी में थे। खबर सुर्खियों में आते ही कई परिवारों ने अजमेर छोड़ दिया।

2003 में एक पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह अपने बॉयफ्रेंड के साथ होती थीं तब नफीस और फारूक उनसे कई बार मिले। एक बार जब वो बस स्टैंड जा रही थीं तभी मारुति पर सवार नफीस और फारूक ने उन्हें कांग्रेस में एक बड़ा प्रॉजेक्ट दिलाने का वादा किया। इन दोनों के सहयोगी सैयद अनवर चिश्ती ने लड़की को कांग्रेस का फॉर्म लाकर भी दिया। एक दिन जब वो स्कूल जा रही थीं तभी रास्ते में नफीश और फारूक ने उन्हें अपनी गाड़ी से स्कूल छोड़ने का ऑफर दिया। तब तक उनकी अच्छी जान-पहचान हो चुकी थी तो लड़की मान गईं। लेकिन गाड़ी स्कूल नहीं जाकर एक फार्महाउस पहुंच गई।

बहरहाल, 27 मई को पुलिस ने कुछ आरोपियों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत नोटिस जारी किया। तीन दिन बाद उस वक्त के नॉर्थ अजमेर डीएसपी हरि प्रसाद शर्मा ने एफआईआर दर्ज किया। फिर सीआईडी-क्राइम ब्रांच के एसपी एनके पत्नी को जांच के लिए जयपुर से अजमेर भेजा गया। सितंबर 1992 में पत्नी ने 250 पन्नों की पहली चार्जशीट फाइल की जिसमें 128 गवाहों के नाम और 63 सबूतों का जिक्र था। अजमेर कोर्ट ने 28 सितंबर को मामले की सुनवाई शुरू की। तब आठ आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ती गई, मासूम बच्चियों का यौन शोषण करने वालों का खुलासा भी होता गया। इस तरह, कुल 18 आरोपियों का पता चला और इस सनसनीखेज मामले में इन पर मुकदमा दर्ज हुआ।

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