क्या है पूर्व PM चन्‍द्रशेखर का दिलचस्‍प किस्‍सा?

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भारत की पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को कौन नहीं जानता, आपातकाल को खत्‍म हुए ज्‍यादा वक्‍त नहीं हुआ था। भारत के उपराष्‍ट्रपति रहे भैरों सिंह शेखावत का नाम उन दिनों जनसंघ के बड़े नेताओं में शुमार था। वह किसी काम से कहीं जाने को दिल्‍ली एयरपोर्ट पहुंचे थे। नरेंद्र मोदी भी साथ में थे। अचानक शेखावत की नजर मोदी से हटकर किसी और पर पड़ी और उनके चेहरे का रंग बदल गया। वह घबराहट में अपनी जेबें खाली करने लगे। जो कुछ था, सब निकालकर मोदी के कुर्ते में छिपा दिया। मोदी यह सब देखकर हैरान थे, वह समझ नहीं सके कि क्‍या हो रहा है। कुछ सेकेंड बाद जिस शख्‍स को देखकर शेखावत यूं घबरा गए थे, वह सामने आ खड़ा हुआ। यह शख्‍स थे जनता पार्टी के अध्‍यक्ष चन्‍द्रशेखर। चन्‍द्रशेखर ने वहां पहुंचते ही शेखावत की जेबें टटोलीं। मुतमईन होने के बाद चन्‍द्रशेखर ने शेखावत से कुशलक्षेम पूछा और मोदी से उनका परिचय हुआ।24 जुलाई 2019 को मोदी ने दिल्‍ली में चन्‍द्रशेखर पर किताब ‘Chandra Shekhar – The Last Icon of Ideological Politics’ का विमोचन करते हुए यह किस्‍सा सुनाया था। मोदी के मुताबिक, जल्‍द ही उन्‍हें पता चल गया कि शेखावत ने चन्‍द्रशेखर को देखकर ऐसा क्‍यों किया था।

चन्‍द्रशेखर से क्‍यों घबराते थे शेखावत?

मोदी ने किस्‍सा पूरा करते हुए बताया। ‘भैरों सिंह जी को पान, तंबाकू… ये सब खाने की आदत थी। चन्‍द्रशेखर जी उसके बड़े विरोधी थे। जब भी भैरों सिंह जी मिलते थे, वो छीन लेते थे और कूड़े में फेंक देते थे। अब इससे बचने के लिए भैरों सिंह जी ने अपना सामान मेरी जेब में डाला…।’ मोदी ने यह किस्‍सा सुनाते हुए कहा, ‘कहां जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के लोग और कहां चन्‍द्रशेखर जी और उनकी विचारधारा… लेकिन ये खुलापन, ये अपनापन… और भैरों सिंह जी की भविष्‍य में कुछ न हो जाए, इसकी चिंता चन्‍द्रशेखर जी को रहना, यह अपने आप में बड़ी बात है।’उत्‍तर प्रदेश के बलिया में जन्‍मे चन्‍द्रशेखर के भीतर अपने इलाके की ‘बागी’ भावना कूट-कूटकर भरी थी। यह भावना ताउम्र उनके व्‍यवहार में झलकी। वह खरी-खरीद कहने से नहीं कतराते थे। कोई कितनी भी बड़ी हस्‍ती हो, चन्‍द्रशेखर सीधे टकराने से नहीं हिचकते थे। वह अटल बिहारी वाजपेयी को ‘गुरुजी’ कहकर बुलाते थे, यह भी मोदी ने उसी कार्यक्रम में बताया। मोदी के अनुसार, 1991 में जब राजीव गांधी ने चन्‍द्रशेखर की सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दी तो उन्‍होंने वाजपेयी से इजाजत देकर त्‍यागपत्र सौंपा था।

चन्‍द्रशेखर की सरकार कांग्रेस के रहमोकरम पर चल रही थी, इसके बावजूद चन्‍द्रशेखर ने कई कड़े फैसले लिए। चन्‍द्रशेखर नवंबर 1990 को जिस समय प्रधानमंत्री बने, देश-दुनिया अस्थिरता के दौर से गुजर रही थे। अयोध्‍या का मसला गर्मा रहा था, मंडल कमीशन की सिफारिशों से आग लगी हुई थी। पंजाब, जम्‍मू व कश्‍मीर से लेकर उत्‍तर में असम और दक्षिण में तमिलनाडु तक अलगाववादी आंदोलन सिर उठा रहे थे। ऊपर से देश कर्ज के बोझ में डूबा हुआ था। चन्‍द्रशेखर यह सब संभालने में जुट गए।

कांग्रेस ने जब चन्‍द्रशेखर के पर कतरने चाहे तो उनके भीतर का ‘बागी’ जाग उठा। उन्‍होंने राष्‍ट्रपति आर. वेंकटरमण को इस्‍तीफा लिख भेजा। राजीव गांधी ने फिर शरद पवार को भेजा कि चन्‍द्रशेखर से इस्‍तीफा वापस लेने को कहें। चन्‍द्रशेखर ने उन्‍हें जवाब दिया, ‘जाकर उनसे कहिएगा कि चन्‍द्रशेखर दिन में तीन बार अपना मन नहीं बदलता। मैं उनमें से नहीं जो किसी भी कीमत पर सत्‍ता से चिपके रहें। एक बार मैं कुछ तय कर लेता हूं तो उसे करके रहता है।’

जवानी में लोहिया जैसे दिग्‍गज से भिड़ गए

दिग्‍गज समाजवादी राम मनोहर लोहिया से जुड़ा एक किस्‍सा है। उस वक्‍त चन्‍द्रशेखर बलिया में जिला स्‍तर के पदाधिकारी थे। लोहिया ने बलिया से बाहर जाने के लिए एक जीप मंगाई थी। चन्‍द्रशेखर कार लेकर पहुंच गए। गुस्‍साए लोहिया ने कहा क‍ि चन्‍द्रशेखर ने उनसे झूठ बोला। आखिरकार चन्‍द्रशेखर को गुस्‍सा आ गया और उन्‍होंने लोहिया को वहां से जाने के लिए कह दिया। 1955 में जब सोशलिस्‍ट पार्टी टूटी तो ज्‍यादातर युवा नेता लोहिया के साथ चले गए मगर चन्‍द्रशेखर आचार्य नरेंद्र देव के साथ बने रहे।

1977 का वो किस्‍सा, मोदी की जुबानी

मैं और भैरों सिंह शेखावत दोनों हमारी पार्टी के काम से दौरे पर जा रहे थे। दिल्‍ली एयरपोर्ट पर हम दोनों थे। चन्‍द्रशेखर जी भी अपने काम से कहीं जाने वाले थे तो एयरपोर्ट पर थे। दूर से कहीं दिखाई दे गया कि चन्‍द्रशेखर जी आ रहे हैं… तो भैरों सिंह जी मुझे पकड़कर के साइड में ले गए और अपनी जेब में जो था, वो मेरी जेब में डाल दिया। और इतनी जल्‍दी-जल्‍दी हो रहा था… ये सब मेरी जेब में क्‍यों डाल रहे हैं। इतने में चन्‍द्रशेखर जी पहुंचे। आते ही चन्‍द्रशेखर ने पहला काम किया। भैरों सिंह की जेब में हाथ डाला। मैं तब समझा कि क्‍यों (हाथ) डाला?

नरेंद्र मोदी, जुलाई 2019 में