तेज घाव को भरने का सबसे सरल उपाय, जानिए

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हमारे वैदिक विज्ञान में कई प्रकार के पेड़ पौधों को औषधीय संगत में रखा गया है! क्या आप जानते हैं कि दारुहरिद्रा क्या है और दारुहरिद्रा का इस्तेमाल किस चीज के लिए किया जाता है? नहीं ना! बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि दारुहरिद्रा एक बहुत ही उत्तम जड़ी-बूटी है और दारुहरिद्रा का प्रयोग बहुत सालों से चिकित्सा के लिए किया जा रहा है। कई पुराने ग्रंथों में चिकित्सा के लिए दारूहरिद्रा के प्रयोग का जिक्र मिलता है।आयुर्वेद में दारुहरिद्रा के उपयोग के बारे में बहुत सारी अच्छी बातें बताई गई हैं। दारूहरिद्रा का इस्तेमाल कान की बीमारी, आंखों के रोग, घाव को सुखाने के लिए, मुंह की बीमारी, चर्म रोग, डायबिटीज आदि रोगों में किया जाता है।

दारुहरिद्रा क्या है?

इसका पौधा सीधा और छोटा होता है। इसके तने की छाल खुरदरी, खांचयुक्त होती है। इसके पत्ते लम्बे, चौड़े और चर्मिल होते हैं। इसके पत्ते गहरे हरे रंग के और चमकीले होते हैं। इसके फूल छोटे होते हैं। इसके फल 7-10 मिमी लम्बे, अण्डाकार, लाल या शयामले-नीले रंग के होते हैं। इसमें फूल आने का समय मार्च से अप्रैल तथा फल आने का समय मई से जून तक होता है।

रसांजन (रसौत) – दारुहरिद्रा का प्रयोग रसौत (रसांजन) के रूप में भी किया जाता है। दारुहरिद्रा के मूलभाग और उसके तने के निम्न भाग से रसक्रिया विधि द्वारा एक प्रकार का पेय पदार्थ बनाया जाता है। यह शयामले-भूरे रंग का होता है। यह आसानी से पानी में आसानी से घुलने वाला होता है। इसको बनाने की विधि का जिक्र नीचे किया गया है।दारुहरिद्रा की जड़ की छाल से काढ़ा बनाएं। इसे 10-20 मिली की मात्रा में सेवन करने से साधारण बुखार और गंभीर बुखार में लाभ होता है।

क्या है फायदे?

दारुहल्दी की जड़ की छाल को पीस लें। इसे घाव पर लगाएं। घाव जल्दी सुख जाता है।50 ग्राम दारुहल्दी पेस्ट को 16 गुना जल में पकाएं। इस काढ़ा को मधु मिला कर आंखों में काजल की तरह लगाने से आंखों के विकार ठीक होते हैं।1 भाग रसांजन तथा 3 भाग त्रिकटु को मिलाकर 250 मिग्रा की गोलियां बनाएं। इसे जल में घिसकर काजल की तरह लगाने से आंखों की खुजली, आंखों का लाल होना आदि रोगों में लाभ होता है।रसांजन, दारुहल्दी, हल्दी, चमेली और निम्बु के पत्ते लें। इन्हें गोबर के पानी में पीस लें। इसकी वर्ति बनाकर जल में घिसकर काजल की तरह लगाएं। इससे आंखों के पलकों से संबंधित विकारों में लाभ होता है! बराबर-बराबर मात्रा में हरीतकी, सेंधा नमक, गैरिक तथा रसांजन का लेप बनाएं। इसे पलकों पर लेप करने से पलकों से संबंंधित रोगों में लाभ होता है।दारुहल्दी तथा पुण्डेरिया की त्वचा का काढ़ा बनाएं। इसे कपड़े से अच्छी तरह छानकर आंखों में बूंद-बूंद डालें। इससे नेत्र रोग में फायदा होता है।रसाञ्जन को आंखों में लगाने भी आंखों की बीमारी ठीक होती है।दारुहल्दी की छाल के पेस्ट की वर्ति बनाएं। इसका धूम्रपान करने से जुकाम ठीक होता है।

दारुहल्दी काढ़ा का रसांजन बनाएं और मधु के साथ खाएं। इसके साथ ही लेप के रूप में प्रयोग करें। इससे मुंह का रोग, रक्त विकार तथा साइनस ठीक होता है।चमेली के पत्ते, त्रिफला, जवासा, दारुहरिद्रा, गुडूची तथा द्राक्षा को मिलाकर काढ़ा बनाएं। 10-30 मिली काढ़ा को शहद में मिलाकर पीने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।

दार्व्यादि काढ़ा (10-30 मिली) में 6 माशा मधु मिलाकर सेवन करने से सभी तरह के पेट के रोगों में लाभ होता है।1.5 लीटर गोमूत्र, दारुहल्दी तथा कालीयक पेस्ट को 750 ग्राम भैंस के घी में पकाएं। इसे दार्वीघी कहते हैं। इसे 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है।दारुहल्दी के 5-10 मिली रस लें या निम्बू के पत्ते के रस या गुडूची के रस के साथ 1 चम्मच मधु मिलाकर पीने से भी पीलिया में फायदा होता है।

सुबह दारुहल्दी के रस (5-10 मिली) या काढ़ा (10-30 मिली) में मधु मिलाकर सेवन करें। इससे एनीमिया में फायदा होता है। यह पीलिया में भी लाभ पहुंचाता है।कफज विकार को ठीक करने के लिए दारुहल्दी का प्रयोग लाभ देता है। दारुहल्दी के 2-4 ग्राम पेस्ट को गोमूत्र के साथ सेवन करें। इससे कफज-वृद्धि रोग का ठीक होता है।

दार्व्यादि काढ़ा (10-30 मिली) में मधु मिलाएं अथवा रसांजन एवं चौलाई की जड़ के पेस्ट में मधु मिला कर चावल के धोवन के साथ पिएं। इससे सभी तरह की ल्यूकोरिया ठीक होती है।दारुहरिद्रा, रसाञ्जन, नागरमोथा, वासा, चिरायता, भल्लातक तथा काला तिल लें। इससे काढ़ा बना लें। 10-30 मिली काढ़ा में मधु मिलाकर पीने से ल्यूकोरिया रोग में लाभ होता है।दारुहल्दी, रसाञ्जन, नागरमोथा, भल्लातक, बिल्वमज्जा, वासा पत्ते और चिरायता का काढ़ा बना लें। इस काढ़ा में 1 चम्मच मधु मिलाकर पीने से गर्भाश्य में सूजन आदि के कारण होने वाली ल्यूकोरिया की  बीमारी सहित पेट के रोगों में लाभ होता है।रसौत को बकरी के दूध के साथ सेवन करने से ल्यूकोरिया में लाभ होता है।रसौत एवं चौलाई की जड़ से पेस्ट बनाएं। इसमें मधु मिलाकर चावल के धोवन के साथ पीने से सभी दोषों के कारण होने वाली ल्यूकोरिया में फायदा होता है।