आयुर्वेद में वासा को महत्वपूर्ण औषधि के रूप में शामिल किया गया है! वासा के बारे में कौन नहीं जानता। असल में दादी-नानी के जमाने से वासा का प्रयोग सर्दी-जुकाम के इलाज के लिए घरेलू नुस्ख़ों के तौर पर सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में भी वासा का औषधि के रुप में विशिष्ट स्थान है। वासा को अडूसा भी कहते हैं। आयुर्वेद में कहा जाता है कि वासा वात, पित्त और कफ को कम करने में बहुत काम आता है। इसके अलावा वासा सिरदर्द, आँखों की बीमारी, पाइल्स, मूत्र रोग जैसे अनेक बीमारियों में बहुत फायदेमंद साबित होता है, तो चलिये वासा किन-किन बीमारियों में लाभदायक है इसके बारे में जानने से पहले वासा के बारे में विस्तार से जानते हैं।
आचार्य चरक ने वासा को रक्तपित्त की चिकित्सा में श्रेष्ठ माना है। चरकसंहिता में दशेमानि‘ में वासा का उल्लेख नहीं है। वासा का पत्ता शाक कफपित्त को कम करने वाला होता है। नेत्ररोगों के साथ अश्मरी (पथरी) शर्करा (ब्लड ग्लूकोज), कुष्ठ, ग्रहणी, योनिरोग और वात संबंधी बीमारियों में अन्य द्रव्यों के साथ वासा का प्रयोग मिलता है। सुश्रुत-संहिता में क्षारक्रिया में इसकी गणना की गई है। इसकी तीन जातियाँ पाई जाती है, जो निम्न प्रकार हैं।
वासा क्या है?
आचार्य चरक ने वासा को रक्तपित्त की चिकित्सा में श्रेष्ठ माना है। चरकसंहिता में दशेमानि‘ में वासा का उल्लेख नहीं है। वासा का पत्ता शाक कफपित्त को कम करने वाला होता है। नेत्ररोगों के साथ अश्मरी (पथरी) शर्करा (ब्लड ग्लूकोज), कुष्ठ, ग्रहणी, योनिरोग और वात संबंधी बीमारियों में अन्य द्रव्यों के साथ वासा का प्रयोग मिलता है। सुश्रुत-संहिता में क्षारक्रिया में इसकी गणना की गई है।यह लगभग 3-4 मी ऊँचा शाखा-प्रशाखायुक्त क्षुप या झाड़ी होता है। फूल सफेद रंग के होते हैं। कई जगहों पर वासा के स्थान पर इसका प्रयोग किया जाता है। इसके पत्ते, जड़ तथा फूल का प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है। पत्ते वमनरोधी तथा रक्तस्तम्भक होते है। इसका पौधा कफ करने वाला तथा बलकारक होता है। फूलों का प्रयोग आँखों की बीमारियों की चिकित्सा में किया जाता है।
अडूसा वातकारक, कफपित्त कम करने वाला, स्वर के लिए उत्तम, हृदय की बीमारी, रक्त संबंधी बीमारी, तृष्णा या प्यास, श्वास या सांस संबंधी, कास, ज्वर, वमन, प्रमेह, कोढ़ तथा क्षय रोग में लाभप्रद है। श्वसन संस्थान पर इसकी मुख्य क्रिया होती है। यह कफ को पतला कर बाहर निकालता है तथा सांस-नलिकाओं का कम, परन्तु स्थायी प्रसार करता है। श्वास नलिकाओं के फैल जाने से दमे के रोगी का सांस फूलना कम हो जाता है। कफ के साथ यदि रक्त भी आता हो तो वह भी बंद हो जाता है। इस प्रकार यह श्लेष्म् या , कास, कंठ्य एवं श्वासहर है। यह रक्तशोधक एवं रक्तस्तम्भक है, क्योंकि यह छोटी रक्तवाहनियों को संकुचित करता है। यह प्राणदानाड़ी को अवसादित कर रक्त भार को कुछ कम करता है। इसकी पत्त्तियां सूजन कम करने वाला, वेदना कम करने वाला, जंतु को काटने पर तथा कुष्ठ से राहत दिलाने में मदद करता है। यह मूत्र जनन, स्वेदजनन तथा कुष्ठघ्न है। नवीन कफ रोगों की अपेक्षा इसका प्रयोग पूराने कफ रोगों में अधिक लाभकारी होता है।
कृष्णवासा-काला वासा रस में कड़वा, तीखा तथा गर्म, वामक व रेचक होता है एवं बुखार, बलगम बीमारी से राहत दिलाने तथा अर्दित आदि रोगों में लाभकारी होता है।
रक्त वासा-इसकी पत्तियाँ मृदुकारी तथा सूजन कम करने में मदद करता है।
यह ग्राम धनात्मक एवं ग्राम ऋणात्मक जीवाणुओं के प्रति सूक्ष्मजीवीनाशक क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है। यह एंटीकोलीनेस्टेरेज क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।
वासा के फायदे
आजकल के तनाव भरी जिंदगी में सिरदर्द आम बीमारी हो गई है। सिरदर्द होने पर अडूसा का सेवन बहुत लाभकारी होता है।
अडूसा के छाया में सूखे हुए फूलों को पीस लें, 1-2 ग्राम फूल के चूर्ण में समान मात्रा में गुड़ मिलाकर खिलाने से सिरदर्द से आराम मिलता है।
वासा की 20 ग्राम जड़ को 200 मिली दूध में अच्छी प्रकार पीस-छानकर, इसमें 30 ग्राम मिश्री तथा 15 नग काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से सिरदर्द, आँख का रोग, दर्द, हिचकी, खांसी आदि बीमारियों से राहत मिलता है।
छाया में सूखे हुए वासा पत्तों की चाय बनाकर पीने से सिरदर्द दूर होता है। स्वाद के लिए इस चाय में थोड़ा नमक मिला सकते हैं।
अगर किसी इंफेक्शन के कारण मुँह में घाव या सूजन हुआ है तो वासा का प्रयोग जल्दी आराम पाने में मदद करेगा।
यदि केवल मुख में छाले हों तो वासा के 2-3 पत्तों को चबाकर उसके रस को चूसने से लाभ होता है।
इसकी लकड़ी की दातौन करने से मुख के रोग दूर हो जाते हैं।
वासा के 50 मिली काढ़े में एक चम्मच गेरू और दो चम्मच मधु मिलाकर मुख में रखने से मुँह का घाव सूख जाता है।
बच्चे और वयस्क सभी दांतों के कैविटी से परेशान रहते हैं इसके लिए वासा का प्रयोग करने से लाभ मिलेगा। दाढ़ या दांत में कैविटी हो जाने पर उस स्थान में वासा पत्ते का निचोड़ भर देने से आराम होता है।ऐसा कौन है जो दांत दर्द से परेशान नहीं रहता है, इसके लिए अडूसा का प्रयोग इस तरह से करने पर जल्दी राहत मिलती है। वासा के पत्तों के काढ़े से कुल्ला करने से दांत दर्द कम होता है।
अगर सांस संबंधी समस्या से परेशान रहते हैं तो वासा का औषधीपरक गुण बहुत काम आता है।
अडूसा, हल्दी, धनिया, गिलोय, पीपल, सोंठ तथा रेगनी के 10-20 मिली काढ़े में 1 ग्राम मिर्च का चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार पीने से सम्पूर्ण सांस संबंधी रोग पूर्ण रूप से ठीक हो जाती है।
वासा के पञ्चाङ्ग को छाया में सुखाकर कपड़े में छानकर रोज 10 ग्राम मात्रा में खाने से सांस लेते वक्त खांसी होने पर उसमें लाभ होता है।हर बार मौसम बदलने के समय अगर आप दमे से परेशान रहते हैं तो अडूसा का सेवन करें। इसके ताजे पत्तों को सुखाकर, उनमें थोड़े से काले धतूरे के सूखे हुए पत्ते मिलाकर दोनों को पीसकर चूर्ण करके (बीड़ी बनाकर पीने) धूम्रपान करने से सांस लेने में आश्यर्चजनक लाभ होता है।
तपेदिक जैसे संक्रामक रोग में भी वासा का औषधीय गुण बहुत फायदेमंद तरीके से काम करता है। अडूसा के पत्तों के 20-30 मिली काढ़े में छोटी पीपल का 1 ग्राम चूर्ण मिलाकर पिलाने से खांसी, सांस संबंधी समस्या और क्षय रोग में लाभ होता है।आजकल के जीवनशैली में असंतुलित खान-पान आम बात है और फिर इसका सीधा असर पेट पर पड़ता है। एसिडिटी, अपच जैसी समस्याओं से हर इंसान परेशान है। इस बीमारी से राहत पाने के लिए वासा का सेवन इस तरह से करें। वासा छाल का चूर्ण 1 भाग, अजवायन का चूर्ण चौथाई भाग और इसमे आठवां हिस्सा सेंधा नमक मिलाकर नींबू के रस में खूब खरल कर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर भोजन के बाद 1-3 गोली को सुबह-शाम सेवन करने से वात के कारण बुखार तथा आध्मान (विशेषत भोजन करने के बाद पेट का भारी हो जाना, मन्द-मन्द पीड़ा होना) में लाभ होता है।
मसालेदार या रास्ते का तला हुआ खाना खाया कि नहीं संक्रमण हो गया। अगर ऐसे संक्रमण के कारण दस्त हो रहा और रुकने के नाम नहीं ले रहा तो वासा का घरेलू उपाय जल्द आराम दिलाने में मदद करेगा। 10-20 मिली वासा पत्ते के रस को दिन में तीन-चार बार पीने से दस्त में लाभ होता है।