Friday, September 20, 2024
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कुटज हो सकता है कई कारणों में लाभदायक!

हमारे वैदिक विज्ञान में कई प्रकार की औषधियों का वर्णन किया गया! कुटकी भारत की बहुत ही प्रचलित और प्राचीन औषधि है। यह भारत के पर्णपाती वनों में 1000 मीटर तक की ऊंचाई पर पाया जाता है। बरसों से कुटज का प्रयोग दस्‍त से लेकर घुटनों के दर्द के इलाज के लिए किया जा रहा है। सच कहा जाए तो हर मर्ज का इलाज छिपा है इस औषधि में। आप भी कुटज का इस्तेमाल कर रोगों को ठीक कर सकते हैं।आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में कुटज की बहुत चर्चा मिलती है। पेट खराब होने, बार-बार पतला शौच आने, शौच के साथ खून आने की बीमारी, पित्त, आम (आंव) आदि की स्थिति या फिर पेट में मरोड़ के साथ दस्त होने पर कुटज का सेवन बहुत की लाभकारी होता है। आइए जानते हैं कि किन-किन रोगों के लिए गुणकारी है यह औषधि।

कुटज क्‍या है? 

यह स्‍वाद में कड़वा होता है। इस वृक्ष का पत्‍ता, छाल और बीज बच्‍चों से लेकर बुजुर्ग तक के बीमारियों के लिए बेहत उपयोगी है। कुटज को आमतौर पर करची, दूधी, इन्द्रजव, कड़वा इंद्र जौ आदि नामों से भी पुकारा जाता है। इसकी दो प्रजातियां होती हैं।​

कुटज,

श्‍वेत कुटज

कुटज के फायदे

दांत के दर्द में कुटज के छाल का काढ़ा बनाकर कुल्‍ला करने से लाभ होता है।नागरमोथा, अतीस, पान, कुटज की छाल तथा लाक्षा चूर्ण को बराबर बराबर (2-5 ग्राम) लें। इसे जल के साथ सेवन करने से दस्‍त पर रोक लगती है।5-10 मिलीग्राम कुटज छाल के रस में 1 चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से दस्‍त में फायदा होता है।इद्रजौ की छाल के काढ़े (50 मिली) को गाढ़ाकर लें। इसमें 6 ग्राम अतीस का चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार पिलाएं। इससे कफ, वात व पित विकार के कारण होने वाले दस्‍त का उपचार होता है।टीबी रोगी को दस्‍त होने लगे तो बराबर भाग में शुण्ठी तथा कुटज बीज (इद्रजौ) के चूर्ण (6 ग्राम) लें। इसको चावल के धोवन के साथ खाने से पचाने वाली अग्नि सक्रिय होती है और दस्‍त रुक जाती है।40 ग्राम इद्रजौ की छाल को 400 मिलीग्राम पानी में उबाल लें। जब काढ़ा एक चौथाई रह जाए तो इसे छानकर इतना ही अनार का रस मिला लें। इसे आग पर गाढ़ा कर लें और छह ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ सुबह-शाम मिलाकर पिएं। इससे पेचिश में लाभ होता है।कुटज बीज को 50 मिलीग्राम जल में उबाल लें। इसे छानकर शहद मिलाकर दिन में तीन बार पिलाने से पित्‍तज विकार के कारण होने वाले दस्‍त (पित्तातिसार) में लाभ या इन्द्रजौ के फायदे होते हैं।15 ग्राम कुटज की ताजी छाल को छाछ में पीसकर सेवन करने से रक्तज प्रवाहिका में लाभ होता है।10 ग्राम कुटज छाल को पीस लें। इसमें 2 चम्मच शहद या मिश्री मिलाकर सेवन करने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) में लाभ होता है।कुटज छाल का काढ़ा बना लें। इसे 15-20 मिली मात्रा में 5 ग्राम गाय का घी तथा 1 ग्राम सोंठ मिला कर सुबह और शाम पिएं। इससे बवासीर में होने वाले खून के बहाव पर रोक लगती है।कुटज की जड़ के छाल को फाणित के साथ सेवन करें या कुटज की जड़ और बन्दाल के जड़ के पेस्‍ट को छाछ के साथ सेवन करें। इससे बवासीर में लाभ होता है।कुटज की छाल, इंद्रयव, रसौत तथा अतिविषा के चूर्ण (1-3 ग्राम) में शहद मिला लें। इसे चावल के धोवन के साथ रोगी को पिलाने से तुरंत खूनी बवासीर में लाभ होता है।

कुटज, रोहिणी, बहेड़ा, कैथ, शाल, छतिवन तथा कबीला के फूलों को बराबर भागों में लेकर चूर्ण बना लें। इसके 2-5 ग्राम चूर्ण में दो चम्मच शहद मिलाकर सेवन करने से कफ तथा पित्त से होने वाले डायबिटीज में लाभ होता है।कुटज के फूल या पत्‍ते को चूर्ण बना लें। इसे 2-3 ग्राम मात्रा में सेवन करने से डायबिटीज में लाभ होता है।6 ग्राम इद्रजौ (कुटज बीज) को चार पहर (करीब 12 घंटे) भैंस के दूध में भिगोकर रखे। इसे पीसकर, इंद्रिय पर लेपकर पट्टी बांधे। कुछ देर बाद गुनगुने जल से धो दें। कुछ दिन तक निय‍मित रूप से ऐसा करने से लिंग की कमजोरी दूर होती है और लिंग में तनाव आता है, 10 ग्राम कुटज की छाल को जल में पीस लें। इसे दिन में तीन बार सेवन करने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।कुटज की छाल को चावल के पानी में पीसकर लेप करें। इससे फफोले तथा फूसिंयों में लाभ होता है। इसकी ताजी छाल का प्रयोग अधिक लाभकारी होता है।20-30 मिली कुटज की छाल के काढ़ा में कठगूलर (काकोदुम्बर), विडंग, नीम की छाल, नागरमोथा, सोंठ, मरिच तथा पिप्पली का पेस्‍ट मिलाएं। इसे पीने से सभी प्रकार के त्वचा रोगों में लाभ होता है।कुटज का दूध अथवा इसके पत्‍ते या फिर इसके छाल का पेस्‍ट बना लें। इसे एक्जिमा, खुजली, त्‍वचा छिद्रों में होने वाली सूजन सहित अन्य त्‍वचा रोगों में लाभ होता है।कुटज की छाल के पेस्‍ट को घी में पकाएं। इस घी को 5-10 ग्राम की मात्रा में नियमित सेवन करें। इससे रक्तपित्त नाक-कान से खून बहने की समस्या में लाभ होता है।

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