आपने हाल ही के दिनों में जस्टिस पादरीवाला और सूर्यकांत के बारे में जरूर सुना होगा! जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा की नई याचिका पर सुनवाई करेगी। नूपुर ने अपनी वापस ली गई याचिका को बहाल करने का अनुरोध किया है। इस बाबत उन्होंने दोबारा सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता ने पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी की थी। इसे लेकर उनके खिलाफ कई राज्यों में एफआईआर दर्ज है। याचिका में इन अलग-अलग एफआईआर को एक साथ जोड़ने का आग्रह किया गया है। एक जुलाई को सुनवाई के दौरान इसी पीठ ने नूपुर को जमकर लताड़ लगाई थी। उसने अलग-अलग एफआईआर को एक साथ मिलाने की शर्मा की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था। यही पीठ अब नूपुर शर्मा की नई याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करेगी। पिछली सुनवाई में जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत ने नूपुर को खूब सुनाया था। इसके बाद दोनों की खूब चर्चा हुई थी। आइए, यहां सुप्रीम कोर्ट के इन दोनों जजों के बारे में जानते हैं।
कौन हैं जस्टिस पारदीवाला?
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला ने इसी साल मई के महीने में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के तौर पर शपथ ली थी। इसके पहले वह गुजरात हाई कोर्ट के न्यायाधीश थे। बतौर जज उनकी पहले भी कुछ टिप्पणियां ऐसी थीं जिसकी काफी चर्चा हुई थी। कोविड काल के दौरान की गई टिप्पणी उनमें से एक है। आरक्षण पर की गई एक टिप्पणी पर साल 2015 में 58 सदस्यों ने राज्यसभा के तत्कालीन सभापति और उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी से जस्टिस पारदीवाला के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की मांग की थी।2020 में कोरोना काल के दौरान पारदीवाला गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस थे। तब उनकी बेंच ने टिप्पणी की थी कि अहमदाबाद सिविल अस्पताल की हालत दयनीय और कालकोठरी जैसी है। बेंच ने अहमदाबाद सिविल अस्पताल के कामकाज पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि अस्पताल में कामकाज में समन्वय की कमी है, जहां अब तक कोविड-19 के करीब 400 मरीजों की मौत हो चुकी है। पारदीवाला और जस्टिस आईजे वोरा की खंडपीठ ने कहा था कि अस्पताल के प्रशासन और कामकाज पर नजर रखने की जिम्मेदारी स्वास्थ्य मंत्री की है।
2015 में 58 राज्यसभा सांसद गुजरात हाई कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश पारदीवाला के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाए थे। यह प्रस्ताव उनकी ओर से आरक्षण पर दी गई टिप्पणी के खिलाफ था। सांसदों ने कहा था कि उन्होंने अनुसूचित जाति और जनजाति के खिलाफ अपशब्द कहे हैं। पारदीवाला ने कहा था कि देश को आजाद हुए इतने साल हो गए हैं। लेकिन आज भी विकास की बात नहीं की जाती है, हम आज भी आरक्षण की बात कर रहे हैं। तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के पास महाभियोग का नोटिस जाने के बाद जज ने अपने जजमेंट से वह टिप्पणी हटा ली थी।
पारदीवाला ने अपने एक आदेश में कहा था कि मुस्लिम पुरुषों ने एक से ज्यादा पत्नी रखने या बहुविवाह प्रथा को जिंदा रखने के लिए कुरान की गलत व्याख्या की है। ऐसा स्वार्थ की पूर्ति के लिए किया गया। जस्टिस ने आईपीसी के सेक्शन 494 के तहत एक से ज्यादा पत्नी रखने के मामले में यह टिप्पणी की थी। 2015 में अपनी याचिका में जफर ने दावा किया था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ मुस्लिम पुरुषों को चार शादी की अनुमति देता है। ऐसे में इस मामले में कानूनी निगरानी के लिए एफआईआर का कोई औचित्य नहीं है।
पारदीवाला ने संपत्ति के उत्तराधिकार पर एक अहम फैसला दिया था। उन्होंने हिंदू अधिनियम का व्याख्या करते हुए कहा था कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम धर्म परिवर्तन करने पर पैतृक संपत्ति के लिए अयोग्य होना नहीं बताती है। इस आदेश के साथ हाई कोर्ट ने राज्य के राजस्व विभाग को भी आदेश दिया कि वह महिला के उस राजस्व रेकॉर्ड में परिवर्तन करें जिसमें उन्होंने यह सहमति दी थी कि कोई महिला मर्जी से उसका हिंदू धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपनाती है तो वह उसके हिंदू पिता की संपत्ति से अधिकार खो देगी।
परदीवाला का जन्म 12 अगस्त 1965 को मुंबई में हुआ था। उन्होंने सेंट जोसेफ ई. टी. हाई स्कूल, वलसाड में शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने 1998 में के.एम. लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री हासिल की। 1989 में उन्होंने वलसाड में ही प्रैक्टिस शुरू कर दी। वह 1994 से 2000 तक गुजरात बार काउंसिल के सदस्य के रूप में चुने गए। पारदीवाला गुजरात हाई कोर्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी के सदस्य के रूप में भी काम कर चुके हैं। 17 फरवरी 2011 को गुजरात हाई कोर्ट में उनकी एडिशनल जज के तौर पर नियुक्ति हुई। 28 जनवरी 2013 को उन्हें स्थायी जज बनाया गया। मई 2022 तक उन्होंने गुजरात हाई कोर्ट में सेवाएं दीं। 9 मई 2022 को वह सुप्रीम कोर्ट के जज बने।
कौन हैं जस्टिस सूर्यकांत?
सुप्रीम कोर्ट से पहले जस्टिस सूर्यकांत हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे। 8 मई को सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्यीय कॉलेजियम ने सूर्यकांत को सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त किए जाने के बारे में अपनी सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी थी। उन्होंने पांच अक्टूबर, 2018 को हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश का कार्यभार संभाला था। सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी, 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। उनका परिवार किसानी से जुड़ा हुआ है। इसका जिक्र भी जस्टिस सूर्यकांत ने एक सुनवाई के दौरान किया था।
जस्टिस सूर्यकांत की प्राइमरी एजुकेशन गांव से हुई। 1984 में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से उन्होंने कानून की डिग्री हासिल की। 1984 में इन्होंने जिला न्यायालय हिसार में वकालत शुरू की। वर्ष 1985 से चंडीगढ़ में वकालत करने लगे। जस्टिस सूर्यकांत को संविधान, सेवा संबंधी मामले और सिविल मामलों में माहिर बताया जाता है। 7 जुलाई, 2000 को वह हरियाणा के महाधिवक्ता नियुक्त हुए। मार्च 2001 में वरिष्ठ अधिवक्ता बने। 9 जनवरी, 2004 को उन्हें पंजाब व हरियाणा का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
एक मामले में जस्टिस सूर्यकांत ने कहा था, ‘मेरे पास कुछ कृषि भूमि और ट्यूब वेल हैं। सुबह के समय मेरे कार्यवाहक ने मुझे फोन किया और कहा कि चोरी हुई है। पोल और ट्यूबवेल से तांबे के तार चोरी हो गए हैं। मैंने उनसे स्थानीय पुलिस में शिकायत करने के लिए कहा। एसएचओ ने एक टिप्पणी की ‘क्या करें हम? इन चोरों को हमने परसो ही कोर्ट में पेश किया था।’ न्यायाधीश ने यह टिप्पणी उस समय की जब अपने मुवक्किल के लिए जमानत की मांग कर रहे एक वकील ने तर्क दिया कि मामला एक ‘छोटे अपराध’ का है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वैसे अपराध गंभीर नहीं है, लेकिन यह उनके मुवक्किल के 14 मामलों में शामिल होने से संबंधित है।
जस्टिस सूर्यकांत ने एक मौके पर दिल्ली में वायु प्रदूषण से संबंधित मामलों की सुनवाई करते हुए कहा था कि वह अभी भी एक किसान हैं। वह अपने मूल स्थान पर कृषि गतिविधियां करते हैं। यह टिप्पणी तब की गई जब पराली जलाने का मुद्दा चर्चा में आया। उन्होंने कहा कि एक किसान के रूप में वह किसानों की कठिनाइयों को समझने की स्थिति में हैं। उन्होंने अफसोस जताया कि किसी को भी किसानों की दुर्दशा से कोई सरोकार नहीं है, कौन सी परिस्थितियों में वे पराली जलाने को मजबूर हैं, और कौन से कारणों से वे सरकारों की ओर से सुझाई जा रही इन वैज्ञानिक रिपोर्टों का पालन करने में असमर्थ हैं।