देश के 15 राष्ट्रपति चुने जा चुके हैं, लेकिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की कुछ ऐसी बातें हैं जो आज भी सभी को याद आती है! भारत के 14वें राष्ट्रपति के रूप में रामनाथ कोविंद गहरी छाप छोड़कर जा रहे हैं। सज्जन, विनम्र, सौम्य, मृदुभाषी… कोविंद के लिए कई सारे विशेषण प्रयोग किए जा सकते हैं। आपको पता ही होगा कि राष्ट्रपति कोविंद मूल रूप से उत्तर प्रदेश के कानपुर के रहने वाले हैं। कोविंद के रूप में यूपी की तरफ से पहली बार कोई राष्ट्रपति भवन पहुंचा। राष्ट्रपति के पद पर आसीन होने के बावजूद कोविंद में कोई दंभ नहीं आया। पिछले साल वह अपने स्कूल BNSD इंटर कॉलेज गए थे। राष्ट्रपति कोविंद ने प्रोटोकॉल की परवाह न करते हुए मंच पर मौजूद गुरुओं के पैर छू लिए। इस महीने राष्ट्रपति भवन से अलविदा ले रहे कोविंद देश के दूसरे दलित राष्ट्रपति रहे। रामनाथ कोविंद गर्व कर सकते हैं कि उनका कार्यकाल विवादों से परे रहा। एक नजर भारत के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के कार्यकाल पर।
क्या थी खास बातें?
पिछले साल जून की एक घटना याद आती है। राष्ट्र्रपति बनने के बाद पहली बार कोविंद अपने गांव परौंख जा रहे थे। उन्होंने ट्रेन से यात्रा करने का फैसला किया। जहां ट्रेन नहीं जा सकती थी, वहां के लिए हेलिकॉप्टर लिया। जब चॉपर उतरा तो कोविंद झुके और गांव की मिट्टी माथे से लगा ली। कोविंद के लिए यह बेहद भावुक पल था। उन्होंने कहा भी, ‘इस मातृभूमि की ही प्रेरणा थी जो मुझे हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट ले गई, सुप्रीम कोर्ट से राज्य सभा, राज्य सभा से राज भवन और राज भवन से राष्ट्रपति भवन तक ले गईं।’ कोविंद ने मानों एक पंक्ति में अपनी पूरी जिंदगी सामने रख दी थी।
राष्ट्रपति कोविंद जब अपने गांव गए हुए थे, उस वक्त की एक घटना ने उन्हें बेहद दुख पहुंचाया। जब वह कानपुर पहुंचे तो VIP मूवमेंट के चलते ट्रैफिक रेंगने लगा। पोस्ट-कोविड परेशानियों से जूझ रही महिला को ले जा रही एंबुलेंस जाम में फंस गई। जब तक अस्पताल पहुंचती, महिला की मौत हो चुकी थी। जब कोविंद को यह पता चला तो वह बेहद ‘क्रोधित और दुखी’ हुए। जिला अधिकारियों को डांट लगाते हुए राष्ट्रपति ने उनसे मृतका के परिजनों से सार्वजनिक रूप से माफी मांगने को कहा। आम आदमी से जुड़ने का राष्ट्रपति कोविंद का यह अपना ही तरीका रहा।कोविंद ने बतौर राष्ट्रपति पब्लिसिटी से परहेज रखा। वह अक्सर प्रोटोकॉल तोड़ दिया करते थे। पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब परौंख गए तो भी कोविंद ने यही किया। राष्ट्रपति ने प्रोटोकॉल को दरकिनार कर अपने गांव में मोदी की मेजबानी की।
न्यूट्रल रहे कोविंद
राष्ट्रपति के रूप में रामनाथ कोविंद रूलबुक से चले। मोदी के साथ राष्ट्रपति कोविंद का रिश्ता बेहद सम्मान का रहा है। संसद से पारित अधिनियमों को मंजूरी देने में कोविंद ने देरी नहीं लगाई। राष्ट्रपति कोविंद ने छह दया याचिकाएं भी खारिज की। राजनीतिक रूप से पांच सालों में उन्होंने निष्पक्षता बरकरार रखी। उनके राष्ट्रपति रहते राष्ट्रपति भवन के दरवाजे हमेशा विपक्षी दलों के लिए खुले रहे। विपक्षी नेताओं को अपॉइंटमेंट देने में कोविंद हिचकते नहीं थे।
राष्ट्रपति के रूप में कोविंद ने कई मामलों में पूर्ववर्तियों का अनुसरण किया तो कुछ रवायतें भी बदलीं। उनके कार्यकाल में राष्ट्रपति भवन का सेक्युलर चरित्र बना रहा। धार्मिक आयोजनों को राष्ट्रपति भवन से दूर ही रखा गया। राष्ट्रपति कोविंद ने मंदिरों, गुरुद्वारों, दरगाहों से लेकर गिरजाघरों में शीश नवाया, लेकिन राष्ट्रपति भवन के भीतर धर्म की परछाई नहीं आने दी।
राष्ट्रपति कोविंद पिछले साल अयोध्या गए थे। वहां निर्माणाधीन राम मंदिर के लिए अपनी जेब से 5 लाख रुपये का चंदा दिया। उससे साल भर पहले, 2020 में ईद के मौके पर कोविंद ने रियाज नाम के एक नौजवान मुस्लिम साइकलिस्ट को राष्ट्रपति भवन बुलाया था। उस नौजवान की माली हालत ठीक नहीं थी मगर उसे साइकिलिंग का बड़ा शौक था। राष्ट्रपति को यह पता चला तो उन्होंने बुलाकर अपने हाथों से ईदी के रूप में रियाज को रेसिंग साइकिल दी।
बतौर राष्ट्रपति, कोविंद की कोशिश रही कि राष्ट्रपति भवन हमेशा आम आदमी का स्वागत करे। उन्होंने कथित रूप से अपने स्टाफ से कहा था, ‘मैं भवन के एक हिस्से में रहता हूं। दूसरा हिस्सा लोगों के लिए खुला होना चाहिए।’ जब राष्ट्रपति भवन के भीतर खेल के मैदान का रेनोवेशन पूरा हुआ तो कोविंद ने वहां स्लम के बच्चों को खेलने बुलावा भेजा।
वकालत कर चुके कोविंद ने राष्ट्रपति बनने पर न्यायपालिका में सुधार की जरूरत बार-बार समझाई। एक मौके पर उन्होंने न्यायपालिका से कहा कि अगर राष्ट्रपति की आलोचना हो सकती है जो न्यायपालिका के सदस्यों की क्यों नहीं। कोविंद के भाषणों में बार-बार उनके आदर्शों- महात्मा गांधी और बीआर अम्बेडकर का जिक्र आता है।
राष्ट्रपति रहते हुए रामनाथ कोविंद ने नागरिक सम्मानों से लेकर वीरता पुरस्कार व अन्य अलंकरण बांटे हैं। राष्ट्रपति कोविंद के कार्यक्रमों में उनकी विनम्रता लोगों का दिल जीतती रही। पद्म सम्मान देते वक्त कोविंद ने कई बार प्रोटोकॉल तोड़कर सम्मान पाने वाली हस्ती से आशीर्वाद लिया।कोविंद ने मई 1974 में सविता से शादी की थी। उनके बेटे का नाम प्रशांत और बेटी का नाम स्वाति है। राष्ट्रपति भवन छोड़ने के बाद कोविंद कहां रहेंगे, अभी यह साफ नहीं है। चर्चा है कि उन्हें लुटियंस जोन में पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान वाला बंगला दिया जा सकता है।