जगदीप सिंह धनखड़ के रूप में बीजेपी ने अपना उपराष्ट्रपति उम्मीदवार तय कर लिया है! भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए का उम्मीदवार बनाया है। उनका मुकाबला विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा से होगा, जिनके नाम का ऐलान रविवार को 17 विपक्षी दलों की बैठक के बाद किया गया। बीजेपी ने धनखड़ को उम्मीदवार बनाकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी से धनखड़ की रार जगजाहिर है। ममता की कलम से निकले ‘फरमानों’ की धनखड़ धज्जियां उड़ाते रहे हैं। इसे जगदीप धनखड़ को पश्चिम बंगाल में बेहतर काम करने का फल भी बताया जा रहा है। जगदीप धनखड़ राजस्थान के जाट समुदाय से आते हैं। राजस्थान में जाटों को रिजर्वेशन दिलाने में उनकी भूमिका अहम रही है। अगले साल राज्य में विधानसभा चुनाव हैं। इसे देखते हुए धनखड़ की उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी अहम हो जाती है। इसके अलावा बीजेपी ने दोबारा मैसेज दिया है कि उसके फैसलों के बारे में अंदाजा लगाना फिजूल है। वह जो कुछ भी करती है उसके बारे में सिर्फ और सिर्फ उसी को पता होता है। वह स्थितियों और समीकरणों को देखकर अपने सदस्यों का इस्तेमाल करती है।
बीजेपी मुख्यालय में शनिवार को संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद धनखड़ के नाम का ऐलान हुआ। वह उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए के उम्मीदवार होंगे। अभी वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल हैं। सार्वजनिक जीवन में वह लगभग तीन दशकों से हैं। सियासी दांवपेंच में धनखड़ को धाकड़ माना जाता है। उनकी कानूनी समझ भी शानदार है। वह सुप्रीम कोर्ट के वकील रहे हैं। इन खूबियों के कारण ही उन्होंने बंगाल में ममता बनर्जी को चैन की सांस नहीं लेने दी। दोनों की आपस में कभी नहीं बनी। कई मौकों पर देखने को मिला जब धनखड़ ने ममता बनर्जी के फैसलों को पलट दिया। इस कारण सोशल मीडिया पर भी दोनों की जुबानी जंग देखने को मिली। बंगाल चुनाव में बीजेपी की शिकस्त के बावजूद धनखड़ ने सीएम ममता बनर्जी पर अंकुश बनाए रखा।
धनखड़ ने 2019 में बंगाल के राज्यपाल की कुर्सी संभाली थी। तब से बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ उनके रिश्ते तल्ख रहे हैं। टीएमसी सुप्रीमो धनखड़ पर पद के दुरुपयोग का आरोप भी लगाती रही हैं। इसके उलट धनखड़ राज्य में राजनीतिक अस्थिरता के लिए सीधे तौर पर टीएमसी सरकार को कसूरवार ठहराते रहे हैं। ममता को धनखड़ किस हद तक नापसंद हैं, इसकी बानगी यह है कि उन्हें हटाने की टीएमसी राष्ट्रपति से मांग तक कर चुकी है। हालांकि, दोनों के बीच इस रस्साकशी ने धनखड़ को बीजेपी का फेवरेट बना दिया। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे करीबी नेताओं में शामिल हो गए। तमाम नामों के ऊपर उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जाना धनखड़ को बंगाल में किए गए काम का फल बताया जा रहा है।
क्या है दांव?
बीजेपी कांग्रेस मुक्त भारत के मिशन पर है। उसे इसमें कामयाबी भी मिली है। अब वह राजस्थान से भी देश की सबसे पुरानी पार्टी को उखाड़ फेंकना चाहती है। अगले साल राजस्थान में विधानसभा चुनाव हैं। जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर उसे राजस्थान के जाट समुदाय की सहानुभूति पाने में मदद मिलेगी। जगदीप धनखड़ राजस्थान से आते हैं। उनका जन्म राज्य के झुंझुनू जिले के किठाना गांव में 18 मई 1951 में हुआ था। उनकी शुरुआती शिक्षा-दीक्षा भी यहीं से हुई। जयपुर के महाराजा कॉलेज से उन्होंने ग्रेजुए़शन किया। फिर राजस्थान विश्वविद्यालय से एलएलबी की। वह राजस्थान बार काउंसिल में एडवोकेट के तौर पर 1979 में रजिस्टर हुए। 1990 में राजस्थान हाई कोर्ट ने उन्हें सीनियर एडवोकेट के तौर पर नामित किया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भी प्रैक्टिस की।
धनखड़ ने राजस्थान में जाटों को आरक्षण दिलाने की लंबी लड़ाई लड़ी। इसने धनखड़ को राजस्थान में जाट आरक्षण की लड़ाई का चेहरा बना दिया। खुद भी जाट होने के कारण इस समुदाय में उनकी अच्छी पकड़ है। उनके इसी रुतबे को देख बीजेपी ने उन्हें बंगाल का राज्यपाल बनाया था। राजस्थान चुनाव से पहले दोबारा बीजेपी इसी को भुनाना चाहती है। धनखड़ शुरू से बीजेपी में नहीं थे। वह 1989-91 तक जनता दल से झुंझुनू लोकसभा सांसद रहे। इसके बाद वह कांग्रेस से जुड़ गए। उन्होंने अजमेर से चुनाव लड़ा। हालांकि, शिकस्त खाने के बाद 2003 में उन्होंने बीजेपी ज्वाइन कर ली।
पिछले कुछ सालों में एक ट्रेंड रहा है। बीजेपी ने तमाम अटकलों के उलट अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं। इस लिस्ट में अब धनखड़ का नाम भी जुड़ गया है। उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर कई नामों को लेकर कयासबाजी चल रही थी। इनमें मुख्तार अब्बास नकवी, कैप्टर अमरिंदर सिंह और केरल के राज्यपाल मोहम्मद आरिफ खान का नाम शामिल था। हालांकि, अंत में मुहर जगदीप धनखड़ के नाम पर लगी। ऐसा करके बीजेपी ने एक बार फिर मैसेज दिया कि उसकी चयन प्रक्रिया बेहद पारदर्शी है। इसमें किसी भी योग्य व्यक्ति को मौका मिल सकता है। पिछले उपराष्ट्रपति चुनाव 2017 में हुए थे। तब विपक्ष ने गोपालकृष्ण गांधी को मैदान में उतारा था। लेकिन, वह बीजेपी के एम वेंकैया नायडू से हार गए थे। उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने की अंतिम तारीख 19 जुलाई है। चुनाव 6 अगस्त को होगा। विपक्ष की तरफ से कांग्रेस की सीनियर लीडर मार्गरेट अल्वा उम्मीदवार हैं। वह केंद्रीय मंत्री रह चुकी हैं। इसके अलावा वह अलग-अलग समय पर राजस्थान, गोवा, गुजरात और उत्तराखंड की गवर्नर रह चुकी हैं।