टीबी से कैसे बचे? क्या है उपाय!

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टीबी बहुत बड़ी और समस्या दायक बीमारी है! टीबी की बीमारी को अनेक नामों से जाना जाता है। कई लोग टीबी को यक्ष्मा, कई लोग तपेदिक तो कई क्षय रोग कहते हैं। यह एक जानलेवा बीमारी है। आंकड़े बताते हैं कि हर साल भारत में करीब दो लाख बच्चे टीबी के शिकार होते हैं। हर साल टीबी रोग के कारण अनेक लोगों की मृत्यु तक हो जाती है। अक्सर देखा जाता है कि जैसी ही रोगी को टीबी होने का पता चलता है, तो वह बहुत घबराने लगता है, जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए। टीबी का सफल घरेलू उपचार करने के लिए, सबसे पहले आपको जानकारी होना चाहिए कि टीबी क्या है, और इसके लक्षण क्या-क्या होते हैं। आइए इन सभी बातों के साथ-साथ टीबी के इलाज के बारे में भी जानते हैं।

टीबी, क्षय रोग क्या है?

टीबी का पूरार नाम ट्यूबरक्लोसिस है। यह कई लक्षणों से युक्त एक गंभीर संक्रामक बीमारी है। यह माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया से फैलती है, जो मुख्य रूप से फेफड़ों को नुकसान पहुँचाता है। यह एक धीमी गति से बढ़ते बैक्टीरिया के कारण होता ह। यह बैक्टीरिया शरीर के उन भागों में बढ़ता है जिनमें खून और ऑक्सीजन होता है। इसलिए टी.बी. ज्यादातर फेफड़ों में होता है। इस कारण इसे पल्मोनरी टीबी भी कहते हैं।

टी.बी. शरीर के अन्य भागों में भी हो सकता है। टीबी की बैक्टीरिया हवा के माध्यम से फैलता है। संक्रमित व्यक्ति की खाँसी, छींक या उसकी लार के द्वारा बैक्टीरिया स्वस्थ व्यक्ति तक पहुँचता है। इससे दूसरे लोगों को भी टीबी हो जाती है। वयस्क लोगों की तुलना में टीबी से ग्रस्त बच्चे कम संक्रामक होते हैं, इसलिए बच्चों से दूसरे लोगों में टीबी के जीवाणु के फैलने की संभावना कम होती है।

टीबी के लक्षण

पल्मोनरी टीबी अक्सर बहुत ही कम उम्र वाले बच्चों में या फिर अधिक उम्र वाले वृद्ध लोगों में होता है। बच्चों और व्यस्क लोगों में टीबी के ये लक्षण दिखाई देते हैंः-

खाँसी का लगातार बने रहना। शुरुआत में सूखी खाँसी आना। बाद में खाँसी के साथ खून भी निकलने लगता है। यह मुख्य लक्षण है।

टीबी के कीटाणु बच्चे के फेफड़ों से शरीर के अन्य अंगों में बहुत जल्दी पहुँच जाते हैं। इसके कारण बच्चों में हल्का बुखार हमेशा बना रहता है। रात को सोते समय बच्चे को पसीना आने लगता है।

टीबी में बच्चे को खाँसी और बुखार रहने के कारण बच्चा सुस्त रहने लगता है। थोड़ा चलने और खेलने में भी वह बहुत जल्दी थक जाता है।

टीबी में बच्चे को भूख नहीं लगती। उसकी खाने में रूचि नहीं रहती। इसलिए बच्चों का वजन घटता जाता है।

बच्चों की त्वचा बहुत ही नाजुक होने के कारण त्वचा का इन्फेक्शन होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

बिना मेहनत किए हुए थकान होना

खाँसी के साथ बलगम में खून आना

बुखार

रात में पसीना आना

साँस लेने के दौरान छाती में दर्द होना

साँस फूलना

भूख ना लगना एवं भोजन के प्रति अरूचि

लगातार वजन घटना

मांसपेशियों में दर्द (क्षति)

पीठ में अकड़न

पेट में दर्द

दस्त

टी.बी. होने के कारण

यह माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होता है।

टीबी के बैक्टीरिया संक्रमित रोगियों द्वारा हवा में फैल जाते हैं, और स्वस्थ व्यक्ति द्वारा सांस लेने पर शरीर के भीतर चले जाते हैं।

जब टीबी से पीड़ित लोग खाँसते, छींकते, गाते, थूकते या दूसरों के साथ बातें करते हैं, तो वे संक्रामक एयरोसोल बूंदों को बाहर निकालते हैं। एक छींक से लगभग 40,000 बूंदें निकल सकती हैं। इन बूंदों से रोग फैलने की बहुत अधिक संभवाना रहती है।

क्या है घरेलू उपाय?

100 ग्राम हल्दी को कूट-पीस कर छान लें। इसमें आक का दूध मिला लें। यदि खून की उल्टियाँ हो रही है, तो इसकी जगह बड़ (वट) या पीपल का दूध मिलाएँँ। इसे 2-2 रत्ती की मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम लें।तुलसी के ग्यारह पत्ते, थोड़ी-सी जीरा एवं हींग को 1 गिलास पानी में डालें। इसमें एक नींबू निचोड़कर दिन में तीन बार पिएँँ। यह टीबी रोग में लाभ पहुंचाता है।

काली मिर्च के 5 दाने, और तुलसी की 5 पत्तियों पीसकर शहद में मिलाकर चाटें।

दस काली मिर्च के दाने लेकर घी के साथ फ्राई करें। इसमें एक चुटकी हींग पाउडर डालकर मिलाकर रख लें। इसको तीन हिस्सों में बाँटकर दिन में तीन बार लें।

लहसुन की 1-2 कली सुबह खाकर, ऊपर से ताजा पानी पिएं। इससे टीबी (यक्ष्मा) में बहुत लाभ होता है।

लहसुन, टीबी के बैक्टीरिया को खत्म करने में मदद करता है। इसमें एलीसिन (Allicin) और एजोइन (Ajoene) भी होता है, जो बैक्टीरिया को बढ़ने से रोकता है। एक चम्मच पिसा हुआ लहसुन को एक कप दूध में मिला दें। इसमें चार कप पानी डालकर उबालें। जब यह दूध एक चौथाई रह जाए तब इसे पी लें।

नागबला का चूर्ण लें। इससे असमान भाग में घी लें। इन्हें शहद के साथ सेवन करने से टीबी रोग में लाभ मिलता है। बेहतर उपाय के लिए किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर परामर्श लें।