यदि पति पत्नी अलग रह रहे हैं, मियां-बीवी अलग-अलग रह रहे हैं। फैमिली कोर्ट से पत्नी और बच्चे को मासिक गुजारा-भत्ता देने का आदेश है। पत्नी घरेलू महिला है। आय का कोई स्रोत नहीं है फिर भी गुजारा-भत्ता को लेकर पति की नीयत में खोट है। अपनी आय को कम दिखाते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती देता है। हाई कोर्ट ने पति की दुर्भावना को देखते हुए न सिर्फ उसकी याचिका खारिज कर दी बल्कि जुर्माना भी लगाया। मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने 18 जुलाई को अपना फैसला सुनाया। आइए जानते हैं कि आखिर गुजारे-भत्ते से जुड़े नियम क्या हैं, किन स्थितियों में इसकी मांग की जा सकती है। साथ में जानते हैं इसे लेकर हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट के कुछ अहम फैसले।आगे बढ़ने से पहले दिल्ली हाई कोर्ट के ताजा फैसले पर नजर डाल लेते हैं। दरअसल, फैमिली कोर्ट ने पति को अलग रह रही पत्नी और बच्चे को 20 हजार रुपये अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ पति हाई कोर्ट पहुंच जाता है। वह दलील देता है कि उसकी सैलरी से बमुश्किल उसका खर्च चल पा रहा लिहाजा वह पत्नी को गुजारा भत्ता नहीं दे पाएगा। उसकी सैलरी 28 हजार रुपये महीने है और उसका अपना ही खर्च 25000 महीना है। वह 4000 रुपये महीने ही गुजारा भत्ता दे सकते है। दिल्ली हाई कोर्ट ने आय को कम करके दिखाने की कोशिश के लिए पति को कड़ी फटकार लगाते हुए याचिका खारिज कर दी। साथ में पति पर 20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट ने ‘रवैये में बदलाव’ की जरूरत बताते हुए कहा कि किसी मुकदमे में कड़वाहट किसी के भी हित में नहीं है।
गुजारा भत्ता के नियम
कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर यानी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की व्यवस्था की गई है। इसके तहत पत्नी, बच्चा या माता-पिता जैसे आश्रित तब मैंटिनेंस का दावा कर सकते हैं जब उनके पास आजीविका के अन्य साधन उपलब्ध नहीं हैं।
गुजारा भत्ता दो तरह के होते हैं- अंतरिम और स्थायी। अगर मामला अदालत में लंबित है तो उस दौरान के लिए अंतरिम गुजारे भत्ते का आदेश दिया जा सकता है। कोई शख्स पर्मानेंट मैंटिनेंस के लिए भी दावा कर सकता है। तलाक जैसे मामलों में स्थायी गुजाराभत्ता तबतक प्रभावी रहता है जबतक कि संबंधित पक्ष (पति या पत्नी) दोबारा शादी न कर ले या उसकी मौत हो जाए।हिंदू विवाह कानून, 1955 के तहत पति या पत्नी गुजारा भत्ते का दावा कर सकते हैं। इसकी धारा 24 कहती है कि अगर पति या पत्नी के पास अपना गुजारा करने के लिए आय का कोई स्वतंत्र स्रोत न हो तो वे इसके तहत अंतरिम गुजारा भत्ता और इस प्रक्रिया में लगने वाले खर्च की क्षतिपूर्ति का दावा कर सकते हैं। धारा 25 के तहत पति या पत्नी स्थायी गुजारा भत्ता का दावा कर सकते हैं अगर वे खुद का गुजारा करने में असमर्थ हैं। डोमेस्टिक वायलेंस ऐक्ट 2005 के तहत भी कोई महिला अपने और बच्चों के लिए गुजारे भत्ते की मांग कर सकती है। परिस्थितियों के हिसाब से अदालतें गुजारे भत्ते को घटा-बढ़ा या रद्द भी की जा सकती हैं।
गुजारा भत्ता कितना होगा, इसका कोई तय फॉर्म्युला नहीं है। यह केस के हिसाब से तय होगा। यह अदालतों के विवेक पर निर्भर है। हां, सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2020 में इसे लेकर गाइडलाइन जारी की थी जिसमें अदालतों से फैसले से पहले संबंधित पक्षों के आय और संपत्ति के पूरे ब्यौरे समेत अलग-अलग निर्देश थे।
नवंबर 2020 में ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि गुजारा भत्ता तय करते वक्त अदालतें ये ध्यान में रखे कि वह न्यायोचित हो। ये इतना ज्यादा न हो कि पति गरीबी में आ जाए। कोर्ट ने ये भी कहा कि ये प्रवृत्ति दिख रही है कि पत्नी अपने खर्च और जरूरतों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाती हैं। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस सुभाष रेड्डी की बेंच ने कहा कि गुजारा भत्ता बहुत अधिक खर्चीला नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ये ट्रेंड देखने को मिल रहा है कि पत्नी अपने खर्च और जरूरतों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही तो पति भी अपनी इनकम कम दिखाता है ताकि उसे कम से कम गुजारा भत्ता देना पड़े। कोर्ट ने कहा कि बेहतर ही होगा कि पति-पत्नी दोनों से एक-एक शपथपत्र लिए जाएं जिसमें उनकी आय, संपत्तियों और देनदारियों का डीटेल हो। इससे भत्ता तय करने में आसानी होगी।
इसी साल अप्रैल में बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने नांदेड़ सिविल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए महिला को अपने पूर्व पति को हर महीने 3 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। इस मामले में कपल की शादी 17 अप्रैल 1992 को हुई थी। महिला ने क्रूरता का आरोप लगाते हुए तलाक की मांग की। 17 जनवरी 2015 को दोनों का तलाक हुआ। तलाक के बाद पूर्व पति ने महिला से 15 हजार रुपये प्रति महीने के गुजारेभत्ते का दावा किया क्योंकि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं था। महिला एक हाई स्कूल में कार्यरत है। नांदेड़ सिविल जज ने महिला को अपने पूर्व पति को अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया जिसे महिला ने हाई कोर्ट में चुनौती दी।