द्रौपदी मुरमू देश की 15वीं राष्ट्रपति बन चुकी है! देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू को चुन लिया गया है। मुर्मू भारत के सबसे पुराने आदिवासी समुदाय ‘संथाल’ से ताल्लुक रखती हैं। संथाल समुदाय का इतिहास बहुत ही गौरवशाली और रीति रिवाज अनोखा रहा है। भारत में जब आजादी की पहली सामूहिक कोशिश भी नहीं हुई थी, उसके तकरीबन 80 साल पहले संथाल के तिलका मांझी ने धनुष बाण से ही अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया था।
रीति रिवाज ऐसे अनोखे-अनोखे कि गैर-आदिवासी सुनकर ही दंग रह जाएं। संथाल समुदाय में 12 तरह के विवाह प्रचलित हैं। इसमें सिंदूर की जगह तेल लगाने से लेकर गर्भवती महिला से विवाह करने तक का चलन शामिल है। इस समुदाय में लिव-इन-रिलेशनशिप भी अलग तरह का होता है। अगर लड़का-लड़की को प्रेम हो लेकिन परिवार उनके खिलाफ हो, तो कपल लिव-इन में रहने के लिए अंजान जगह पर चला जाता है। प्रेमिका के मां बनते ही उन्हें शादीशुदा मान लिया जाता है।
भारत और संथाल
2011 की जनगणना के मुताबिक देश में करीब 8 प्रतिशत आदिवासी हैं। आबादी के मामले में सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय भील है। दूसरे नंबर पर गोंड तीसरे नंबर पर संथाल आते हैं। संथाल शब्द का मतलब होता है शांत व्यक्ति। अन्याय के खिलाफ विद्रोह की ऐतिहासिक विरासत वाला यह समुदाय आम तौर पर बेहद शांति पूर्वक जीवन यापन करना पसंद करता है। यह समुदाय शिकार के लिए जहरीले तीर तो बनाता था लेकिन भयानक युद्ध में भी उनका इस्तेमाल अपने दुश्मनों पर नहीं करता था।
छोटानागपुर के पठार में बसने से पहले संथाल समुदाय खानाबदोश था। 18वीं शताब्दी के अंत में उन्होंने झारखंड (पहले बिहार) के संथाल परगना में रहना शुरू किया। फिर वहीं से उड़ीसा और पश्चिम बंगाल की तरफ बढ़ें। पूर्वोत्तर भारत के आदिवासियों को छोड़ दें तो आम तौर पर जनजातीय समुदायों में साक्षरता का स्तर कम होता है लेकिन संथालों के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता। 1960 के दशक से ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल के अन्य जनजातियों की तुलना में संथाल अधिक साक्षर पाए गए हैं।
सामाजिक उत्थान के बावजूद संथाल आमतौर पर अपनी जड़ों से जुड़े होते हैं। वे प्रकृति उपासक हैं। उनकी पारंपरिक पोशाक में पुरुषों के लिए धोती और गमछा, वहीं महिलाओं के लिए एक शॉर्ट-चेक साड़ी जिसपर चेक नीले और हरे रंग का होता है। अन्य जनजातियों की तरह ही इस समुदाय में भी गोदना (टैटू) का चलना है। जादोपटिया इस समुदाय की प्रमुख लोक चित्रकला है, यह कला संथालों के लिए हमेशा से ही अपने इतिहास और दर्शन को अभिव्यक्त करने का प्रमुख साधन रहा है, इस समुदाय के लोगों का अपना लोक गीत और नृत्य भी है, जिसका प्रदर्शन वो विभिन्न सामुदायिक कार्यक्रमों और समारोहों के दौरान करते हैं। अपने जड़ से जुड़े ज्यादातर संथालियों को कामक, ढोल, सारंगी और बांसुरी जैसे म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट बजाने आते हैं। यह समुदाय मुख्य रूप से अपने खेतों और जंगलों पर निर्भर है। खाना पान में विशेष रूप से चावल चावल को शामिल करने वाला यह समुदाय गाय का मांस और अन्य जानवरों के साथ साथ पक्षियों का मांस भी खाता है।
संथाल समुदाय के लोग अपने घर को ओलाह कहते हैं। घर की बाहरी दीवारों पर तीन रंगों (काला, लाल, सफेद) का विशेष पैटर्न बना होता है। इस समुदाय के लोगों के जीवन चक्र का दामोदर नदी से गहरा संबंध है। किसी भी संथाली व्यक्ति की मृत्यु पर उसकी अस्थियों को उसी नदी में विसर्जित किया जाता है।
1855 में सिद्धू-कानू, उनके भाई चांद, भैरव और हजारों संथाल जनजाति के लोगों ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था। इसे ‘संथाल हूल’ यानी संथाल विद्रोह के नाम से जाना जाता है। 30 जून 1855 में भोगनाडीह में एकत्रित हुए 20 हजार संथालों ने अंग्रेजों, जमींदारों और साहूकारों के शोषण, अत्याचार और अन्याय के खिलाफ हथियारबंद आंदोलन चलाया था। इसमें करीब 10 हजार संथाली शहीद हो गए थे। लंदन में बैठे विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक कार्ल मार्क्स तक इस क्रांति की गूंज पहुंची थी। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘नोट्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री’ में संथाल हूल को सशस्त्र जनक्रान्ति की संज्ञा दी है।
15वीं राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित द्रौपदी मुर्मू के अलावा भी कई संथाल नेता, मंत्री, अधिकारी, साहित्यकार चर्चित रहे हैं। ऐसा ही एक नाम संथाली कवयित्री निर्मला पुतुल का है। साल 2001 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित निर्मला की कविताओं से बना पोस्टर जन आंदोलनों में देखने को मिलता है। झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी संथाली हैं। मोदी सरकार में केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय संभाल रहे बिश्वेश्वर टुडू भी संथाली हैं। इनके अलावा सीएजी गिरीश चंद्र मुर्मू भी संथाल समुदाय से ही आते हैं।