Saturday, March 15, 2025
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लोकसभा में पास हुआ फैमिली कोर्ट्स संशोधन बिल, विपक्ष इस पर क्या बोला?

लोकसभा में फैमिली कोर्ट संशोधन बिल पास हो चुका है! मॉनसून सत्र में इस समय दोनों सदनों में विपक्ष की ओर से हंगामे का दौर जारी है। विपक्षी सांसद केंद्र सरकार से महंगाई और जीएसटी को लेकर चर्चा करना चाहते हैं। सदन से लेकर सड़क तक प्रदर्शन हो रहे हैं। लोकसभा में 4 और राज्यसभा से 19 सांसदों को अबतक निलंबित किया जा चुका है। इसी कड़ी में कई दलों के सदस्यों ने फैमिली कोर्ट्स में पेंडिंग पड़े 11.4 लाख मामलों पर चिंता जताई है। सदस्यों की ओर से इनके तेजी से निपटारे की बात भी की गई है। आपको बता दें कि लोकसभा में आज फैमिली कोर्ट्स संशोधन अधिनियम पास हो चुका है।

11 लाख मामलों के निपटारे के लिए क्या कर रही है सरकार?

सदन में चर्चा में हिस्सा लेते हुए बीजू जनता दल के भर्तृहरि महताब ने कहा कि कुटुम्ब न्यायालयों में 11 लाख से अधिक मामले लंबित हैं। ऐसे में सरकार को बताना चाहिए कि वह इनके निपटारे के लिए क्या कर रही है। उन्होंने कहा, ‘देश के 26 राज्यों एवं संघ राज्य क्षेत्रों में 715 परिवार अदालतें हैं। जब कानून बदलने एवं उस पर अमल की बात आती है तब संसद सर्वोच्च है और इसकी व्याख्या अदालतों की ओर से की जाती है। ’महताब ने पूछा कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद इसे पूर्व प्रभाव से अमल पर कौन सी अदालत निर्णय करेगी, यह स्पष्ट किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी कोई अदालत स्थापित होने के बाद सरकार को इसकी अधिसूचना जारी करनी चाहिण।

जनता दल यूनाइटेड के कौशलेंद्र कुमार ने कहा कि फैमिली कोर्ट्स में लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है, सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। चर्चा में हिस्सा लेते हुए भारतीय जनता पार्टी के निशिकांत दुबे ने कहा कि ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए कुटुम्ब अदालतों की संख्या और दायरा बढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पश्चिमी संस्कृति का आंख मूंदकर अनुकरण करने के कारण कई तरह के मामले सामने आ रहे हैं। इनमें ‘लिव-इन संबंध’, ‘समलैंगिक विवाह’ आदि शामिल हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में इससे जुड़े मामलों में भी काफी वृद्धि हो सकती है। उन्होंने दहेज उत्पीड़न से जुड़े कानून के दुरूपयोग के मामले सामने आने का भी जिक्र किया।

निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से पूर्व में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग से जुड़े कानून को खत्म करने का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि इसे सदन में सर्वसम्मति से पारित किया गया था। कानून के तहत हमें कानून बनाने का अधिकार है लेकिन इसे शीर्ष अदालत ने खत्म कर दिया। उन्होंने कहा कि बिहार और झारखंड को देखा जाए तब इन दोनों राज्यों की आबादी काफी अधिक है लेकिन सुप्रीम कोर्ट में इन दोनों राज्यों के बार से एक भी न्यायाधीश नहीं है। इस विषय पर संसद को विचार करना चाहिए!

चर्चा के दौरान, बहुजन समाज पार्टी के रितेश पांडे ने कहा कि फैमिली कोर्ट्स में न्यायाधीशों की नियुक्तियों में महिलाओं को आरक्षण देना चाहिए क्योंकि इसमें महिलाओं से जुड़े मामले भी बहुतायत में होते हैं। तेलुगू देसम पार्टी के जयदेव गल्ला ने कहा कि कुटुम्ब न्यायालयों की प्रक्रियाओं को सरल बनाना चाहिए ताकि मामलों का त्वरित निपटारा हो सके।

भारतीय जनता पार्टी के राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि भारतीय परिवार परंपराओं से चलते हैं और यही कारण है कि हमारे यहां तलाक के मामले तुलनात्मक रूप से कम हैं। उन्होंने कहा कि विवाह के संबंध में लक्जमबर्ग में तलाक के मामले 87 प्रतिशत हैं, अमेरिका में 46 प्रतिशत, रूस में 51 प्रतिशत और स्पेन में 65 प्रतिशत हैं, वहीं भारत में ये मामले करीब एक प्रतिशत हैं। रूडी ने परिवार विवाद निपटारा की व्यवस्था को बेहतर बनाने की जरूरत बतायी।बहुजन समाज पार्टी के दानिश अली ने सरकार से कुटुम्ब अदालतों की संख्या बढ़ाने की मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार ने कई कानूनों को पूर्व प्रभाव से लागू किया है जो गंभीर मुद्दा है। चर्चा में हिस्सा लेते हुए एआईएमआईएम के इम्तियाज जलील ने अदालतों में लंबित मामलों का जिक्र किया और न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरने की मांग की। जलील ने पूछा कि तीन तलाक संबंधी कानून का कितनी मुस्लिम महिलाओं को फायदा हुआ है, यह बताया जाए। समाजवादी पार्टी के एस टी हसन ने भी सरकार से यही सवाल पूछा।

अमरावती से सांसद नवनीत राणा ने कुटुंब अदालत के परिसर को सामान्य अदालतों से अलग रखने की जरूरत बताई। उन्होंने काउंसलिंग केंद्रों में अनुभवी वकीलों और विशेषज्ञों आदि को नियुक्त किये जाने की भी जरूरत बताई ताकि महिलाओं को अधिक परेशानी नहीं हो। बीजू जनता दल के अनुभव मोहंती ने कहा कि कुटुंब अदालतों में मामले लंबे समय तक नहीं खिंचने चाहिए। उन्होंने ऐसे मामलों में मीडिया ट्रायल पर रोक लगाये जाने की मांग भी की।

विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश और नगालैंड राज्यों मे कुटुंब अदालत अपनी स्थापना की तारीख से ही कार्य कर रही हैं तथा राज्य सरकार के साथ कुटुंब अदालतों की कार्रवाइयों को विधिमान्य करना अपेक्षित है, इसलिये इस अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है। इसके माध्यम से इन दोनों राज्यों में कुटुंब अदालतों के अधीन की गई सभी कार्रवाइयों को पूर्व प्रभाव से विधिमान्य किया जा सकेगा।

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