Saturday, March 15, 2025
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जानिए ‘फ्लाइंग कॉफिन’ मिग – 21 के बारे में सबकुछ!

गुरुवार के दिन राजस्थान के बाड़मेर में मिग-21 का हादसा आपको याद ही होगा!राजस्‍थान के बाड़मेर में भारतीय वायुसेना का एक लड़ाकू विमान मिग-21 गुरुवार रात को हादसे का शिकार हो गया। इस हादसे में भारतीय वायुसेना के दोनों पायलटों ने अपनी जान गंवा दी। इस हादसे के बाद एक बार फिर मिग-21 चर्चा में आ गया है। पिछले कुछ सालों में कई हादसों में कई मिग-21 खोए हैं। अभी एयरफोर्स के पास मिग-21 बाइसन की लगभग छह स्क्वाड्रन हैं, एक स्क्वाड्रन में करीब 18 विमान होते हैं। बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद जब पाकिस्तान के फाइटर जेट ने एयरस्पेस का उल्लंघन किया था तब मिग-21 बाइसन ने ही उन्हें खदेड़ा था। इसके अलावा भी कई मौकों पर मिग-21 ने अपने कारनामों से प्रभावित किया है।

साल 1964 में मिग-12 लड़ाकू विमान को पहले सुपरसोनिक फाइटर जेट के रूप में इंडियन एयरफोर्स में शामिल किया गया था। शुरुआत में ये जेट रूस में बने थे और फिर भारत ने इस विमान को असेम्बल करने का अधिकार और तकनीक भी हासिल कर ली थी। जिसके बाद हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को 1967 से लाइसेंस के तहत मिग-21 लड़ाकू विमान का प्रोडक्शन शुरू कर दिया था। रूस ने तो 1985 में इस विमान का निर्माण बंद कर दिया, लेकिन भारत इसके अपग्रेडेड वैरिएंट का इस्तेमाल करता रहा है।

क्यों कहते हैं उड़ता ताबूत

1964 से इस विमान को ऑपरेट कर रही भारतीय वायुसेना में इसके क्रैश रिकॉर्ड को देखते हुए फ्लाइंग कॉफिन (उड़ता ताबूत) नाम दिया गया है। 1959 में बना मिग-21 अपने समय में सबसे तेज गति से उड़ान भरने वाले पहले सुपरसोनिक लड़ाकू विमानों में से एक था। इसकी स्पीड के कारण ही तत्कालीन सोवियत संघ के इस लड़ाकू विमान से अमेरिका भी डरता था। यह इकलौता ऐसा विमान है जिसका प्रयोग दुनियाभर के करीब 60 देशों ने किया है। मिग-21 इस समय भी भारत समेत कई देशों की वायुसेना में अपनी सेवाएं दे रहा है। मिग- 21 एविएशन के इतिहास में अबतक का सबसे अधिक संख्या में बनाया गया सुपरसोनिक फाइटर जेट है। इसके अबतक 11496 यूनिट्स का निर्माण किया जा चुका है।मिग-21 बाइसन वही लड़ाकू विमान है, जिसके जरिए बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन ने पाकिस्तानी एफ-16 को मार गिराया था। हालांकि, पाकिस्तान ने कभी भी खुलकर इस सच्चाई को नहीं स्वीकार पाया। क्योंकि, लगभग 60 साल पुराने लड़ाकू विमान से पाकिस्तानी एयरफोर्स की रीढ़ कहे जाने वाले आधुनिक लड़ाकू विमान एफ-16 का मात खाना न तो अमेरिका को कबूल था और न ही पाकिस्तान को।

पाकिस्तान के साथ हुए 1971 और 1999 के कारगिल युद्ध में भी मिग-21 ने अहम भूमिका निभाई थी। मिग-21 बाइसन लड़ाकू विमान मिग-21 का एक अपग्रेडेड वर्जन है। जिससे अगले 3 से 4 साल तक इसका उपयोग किया जा सकता है। इस वर्जन का इस्तेमाल केवल भारतीय वायुसेना ही करती है। बाकी दूसरे देश इसके अलग-अलग वैरियंट का प्रयोग करते हैं।

क्या है खासियत

मिग-21 बाइसन लड़ाकू विमान मिग कई घातक एयरक्राफ्ट शॉर्ट रेंज और मीडियम रेंज एयरक्राफ्ट मिसाइलों से हमला करने में सक्षम है। इस लड़ाकू विमान की स्पीड 2229 किलोमीटर प्रति घंटा की है, जो उस समय सबसे तेज उड़ान भरने वाला लड़ाकू विमान था। इसकी रेंज 644 किलोमीटर के आसपास थी, हालांकि भारत का बाइसन अपग्रेडेड वर्जन लगभग 1000 किमी तक उड़ान भर सकता है। इसमें टर्बोजेट इंजन लगा हुआ है, जो विमान को सुपरसोनिक की रफ्तार प्रदान करता है।

वियतनाम युद्ध के दौरान इन विमानों ने वियतनाम की तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार की तरफ से लड़ते हुए अमेरिकी एयरफोर्स की नाक में दम कर रखा था। हालत यह थी कि अमेरिका को एक मिग-21 लड़ाकू विमान को घेरने के लिए अपने 6-6 लड़ाकू विमानों को तैनात करना पड़ा था। जिस इलाके में वियतनामी कम्युनिस्ट सरकार के मिग-21 उड़ान भरते थे, उस इलाके में अमेरिका भूलकर भी अपना कोई हेलिकॉप्टर नहीं भेजता था। हालांकि, अमेरिका के लड़ाकू विमान की संख्या और घातक मिसाइलों के कारण कई मिग-21 गिराए भी गए थे।इसके अबतक 11496 यूनिट्स का निर्माण किया जा चुका है।मिग-21 बाइसन वही लड़ाकू विमान है, जिसके जरिए बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन ने पाकिस्तानी एफ-16 को मार गिराया था। हालांकि, पाकिस्तान ने कभी भी खुलकर इस सच्चाई को नहीं स्वीकार पाया। क्योंकि, लगभग 60 साल पुराने लड़ाकू विमान से पाकिस्तानी एयरफोर्स की रीढ़ कहे जाने वाले आधुनिक लड़ाकू विमान एफ-16 का मात खाना न तो अमेरिका को कबूल था और न ही पाकिस्तान को।

पाकिस्तान के साथ हुए 1971 और 1999 के कारगिल युद्ध में भी मिग-21 ने अहम भूमिका निभाई थी। मिग-21 बाइसन लड़ाकू विमान मिग-21 का एक अपग्रेडेड वर्जन है। जिससे अगले 3 से 4 साल तक इसका उपयोग किया जा सकता है। इस वर्जन का इस्तेमाल केवल भारतीय वायुसेना ही करती है। बाकी दूसरे देश इसके अलग-अलग वैरियंट का प्रयोग करते हैं।

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