सामान्य तौर पर कई प्रकार की औषधियों का वर्णन हमारे वैदिक विज्ञान में किया गया है! बदर जड़ी बूटी के बारे में शायद कम ही लोगों को पता है। लेकिन बदर के गुणों के आधार पर आयुर्वेद में इसको कई तरह के बीमारियों के लिए औषधि के लिए इस्तेमाल किया जाता है। क्या आपको पता है कि बदर को बेर भी कहते हैं।आयुर्वेद में बदर या बेर सिरदर्द, नकसीर, मुँह के छाले, दस्त, उल्टी, पाइल्स, बवासीर जैसे कई बीमारियां ऐसी है जिसके लिए बदर के पत्ते, फल और बीज का इस्तेमाल किया जाता है। चलिये आगे इसके बारे में विस्तार से जानते हैं कि बदर या बेर के कौन-कौन से गुण हैं और बदर के फायदे क्या हैं।
बदर क्या होता है?
चरक के हृद्य, हिक्कानिग्रहण, उदर्द प्रशमन, विरेचनोपग, श्रमहर, स्वेदोपग गणों में तथा फलासव, कषाय एवं अम्लस्कन्ध में व सुश्रुत के आरग्वधादि एवं वातसंशमन में बदर या बेर का उल्लेख मिलता है। आयुर्वेदीय-निघण्टुओं में बेर की कई प्रजातियों का वर्णन प्राप्त होता है। भावप्रकाश-निघण्टु में सौवीर, कोल तथा कर्कन्धु नाम से तीन प्रजातियों का एवं राजनिघण्टु में सौवीर, कोल, कर्कन्धु तथा घोण्टा नाम से बेर की चार प्रजातियों का वर्णन प्राप्त होता है।यह लगभग 5-10 मी ऊँचा, शाखा-प्रशाखायुक्त, फैला हुआ, कंटकित तथा पर्णपाती छोटा वृक्ष होता है। इसकी तने की छाल खुरदरी, गहरे धूसर-कृष्ण अथवा भूरे रंग की, दरार युक्त, प्रबल तथा भीतर का भाग रक्ताभ रंग का व नवीन शाखाएं घने रोम वाली होती है। इसके पत्ते सरल, एकांतर, विभिन्न आकार के, 2.5-6.8 सेमी लम्बे एवं 1.5-5 सेमी चौड़े, दोनों ओर गोलाकार, ऊपर के पत्ते गहरे हरित रंग के एवं अरोमश तथा आधे पत्ते सघन सफेद अथवा भूरे रंग के मुलायम-सघन रोमश होते हैं। इसके फूल हरे-पीले रंग के तथा गुच्छों में होते हैं। इसके फल 1.2-2.5 सेमी व्यास या डाइमीटर के, गोल अथवा अण्डाकार, मांसल, कच्ची अवस्था में हरे व पके अवस्था में पीले और नारंगी से लाल-भूरे रंग के तथा पूर्णतया पकने पर लाल रंग के होते हैं। फलों के अन्दर गोल, कड़ी तथा खुरदरी गुठली होती है। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल सितम्बर से फरवरी तक होता है।
बदर या बेर प्रकृति से मधुर, कषाय, अम्ल, गर्म, वात-पित्त कम करने वाले होते हैं। यह शक्ति बढ़ाने वाले, वीर्य या स्पर्म काउन्ट बढ़ाने वाले, होते हैं। यह सांस संबंधी समस्या, खांसी, प्यास, जलन, उल्टी, नेत्ररोग, बुखार, सूजन, रक्तदोष, विबंध या कब्ज तथा आध्मान या अपच नाशक होते हैं।बदर के फल मज्जा या पल्प मधुर, वात को दूर करने वाला, स्तम्भक, शीतल, दीपन, बलकारक, वृष्य तथा शुक्रल होती है। यह खांसी, सांस लेने में प्रॉबल्म, प्यास, दाह तथा उल्टी को कम करने वाला होता है। इसके पत्ता बुखार, जलन तथा विस्फोट नाशक होते हैं।बदर का बीज नेत्ररोग नाशक तथा हिक्का शामक होते हैं।बदर का फूल कुष्ठ तथा कफपित्त कम करने वाले होते हैं। पके हुए बदर पित्तवातशामक, मधुर, शक्तिवर्द्धक, कफकारक, दस्त रोकने वाले, उल्टी में फायदेमंद, रक्त संबंधी रोग में फायदेमंद होते हैं। सूखे बदर कफवातशामक होते हैं।
बदर के फायदे
अगर आपको काम के तनाव और भागदौड़ भरी जिंदगी के वजह से सिरदर्द की शिकायत रहती है तो बेर का घरेलू उपाय बहुत लाभकारी सिद्ध होगा। बेर के जड़ तथा पिप्पली या बदर की छाल को पीसकर सिर पर लेप करने से सिर दर्द से छुटकारा मिलता है।आजकल देर तक कंप्यूटर पर काम करने या दिन भर काम करने के बाद आँखों में दर्द होने लगता है इससे राहत पाने में बेर बहुत काम आता है। बेर की छाल को पीसकर नेत्र के बाहर चारो तरफ लगाने से आँखों का दर्द कम होता है।
कुछ लोगों को अत्यधिक गर्मी या ठंड के कारण भी नाक से खून बहने की समस्या होती है। बेर से बना घरेलू उपाय नाक से खून बहना कम करने में काम आता है। बेर वृक्ष के पत्तों को पीसकर कनपटी पर लेप करने से नकसीर बन्द हो जाती है।
बेर के पत्ते के काढ़ा में नमक मिलाकर गरारा करने से मुख के घाव एवं मसूड़ों से होने वाली ब्लीडिंग व गले का दर्द कम होता है। इसके अलावा बेर तथा बबूल की छाल को मिलाकर, काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुख के छाले मिट जाते हैं।
मौसम बदला कि नहीं बच्चे से लेकर बड़े-बूढ़े सबको सर्दी-खांसी की शिकायत हो जाती है। बेर के पत्ते को घी में भूनकर, पीसकर सेंधानमक मिला कर चाटने से स्वरभेद तथा खांसी की समस्या से राहत मिलती है। 2-4 ग्राम बेरमज्जा चूर्ण को दधि अथवा दही के पानी के साथ सेवन करने से वातज-कास में लाभ होता है। समान मात्रा में दंती, द्रंती, तिल्वक तथा घी में भुने हुए बेर के पत्ते के चूर्ण (1-2 ग्राम) में सेंधानमक मिलाकर कोष्ण (गुनगुने) जल के साथ सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।