Saturday, March 15, 2025
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क्या पुलिस अब आपकी गुप्त चीजों को भी जान सकती है? जानिए!

आज के समय में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या पुलिस हमारी सीक्रेट चीजों के बारे में जान सकती है? कैदियों की पहचान के लिए ब्रिटिश राज में बने मूल कानून आइडेंटिफिकेशन ऑफ प्रिजनर्स ऐक्ट, 1920 के तहत पुलिस को कैदी के शारीरिक माप को लेने की इजाजत थी। इनमें फोटोग्राफ के अलावा फिंगरप्रिंट्स और फुटप्रिंट्स भी शामिल थे। लेकिन क्रिमिनल प्रोसीजर (आइडेंटिफिकेशन) ऐक्ट, 2022 में पुलिस को और ताकत मिल गई है। अब आपकी सबसे सीक्रेट निजी चीजों यानी आपके बायोमेट्रिक डीटेल्स तक को लेना पुलिस के लिए बहुत आसान हो गया है। नया कानून गुरुवार से लागू हो गया है। इसके तहत पुलिस को भी पुतलियों और रेटिना की तस्वीरें, फीजिकल और बायोलॉजिकल सैंपल, सिग्नेचर और हैंडराइटिंग के नमूने लेने की इजाजत है।

बायोमेट्रिक डीटेल ले सकेगी पुलिस?

पुराने कानून के तहत पुलिस को ये इजाजत थी कि वह दोषी ठहराए जा चुके किसी शख्स या कम से कम एक साल की सश्रम कारावास की सजा वाले अपराधों के आरोपियों की शारीरिक पहचान से जुड़े आंकड़े (लंबाई, वजन आदि) इकट्ठे कर सके। नए कानून में सश्रम कारावास वाली शर्त को हटा दिया गया है। पुलिस अब किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी भी शख्स की पहचान से जुड़े डीटेल ले सकती है। हालांकि, बायोलॉजिकल सैंपलों के लिए शर्त है। महिलाओं या बच्चों के खिलाफ किए गए अपराध के मामले में या फिर कम से कम 7 साल जेल तक की सजा वाले मामलों में ही बायोलॉजिकल सैंपल लिए जा सकेंगे।पुराने कानून के तहत कम से कम सब-इंस्पेक्टर रैंक का अफसर ही फीजिकल मीजरमेंट्स यानी शारीरिक माप लिए जाने का आदेश दे सकते थे। हालांकि अब हेड-कॉन्स्टेबल तक बायोमेट्रिक डीटेल ले सकता है।

पुराने कानून के तहत, कैदियों के शारीरिक माप से जुड़े रेकॉर्ड्स को राज्य और केंद्रशासित प्रदेश संभालकर रखते थे। लेकिन अब ये डेटा केंद्रीय स्तर पर रखे जाएंगे। नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) पुलिस समेत सभी लॉ एन्फोर्समेंट एजेंसियों से दोषियों/आरोपियों की पहचान से जुड़े डीटेल्स को इकट्ठा करेगा और उन्हें डिजिटल फॉर्मेट में 75 सालों तक संभाकर रखेगा। सभी रेकॉर्ड्स के देखभाल, इस्तेमाल और उन्हें नष्ट करने का काम भी एनसीआरबी का ही होगा।

पुराने कानून के तहत, अगर कोई आरोपी ट्रायल के बिना ही छोड़ दिया गया या फिर ट्रायल के बाद बरी हो गया तो उसके मीजरमेंट और फोटोग्राफ्स को नष्ट कर दिया जाता था। अब रेकॉर्ड्स तभी नष्ट होंगे जब कैदी सभी ‘कानूनी हथियारों या विकल्पों’ का इस्तेमाल कर चुका होगा। मान लीजिए कि अदालत से कोई शख्स बरी हो गया। अब अगर बरी किए जाने के फैसले को अभियोजन पक्ष ने ऊपरी अदालत में चुनौती दे दी, फैसले के खिलाफ अपील कर दी तो आरोपी से जुड़े बायोमेट्रिक डीटेल को नष्ट नहीं किया जाएगा।

अन्य बड़े लोकतांत्रिक देशों में भी गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए संदिग्धों के बायोमेट्रिक डीटेल इकट्ठे किए जाते हैं, भले ही वे अभी दोषी न ठहराए गए हों। उदाहरण के लिए ब्रिटेन में पुलिस गिरफ्तारी के वक्त ही चेहरे का फोटोग्राफ, फिंगरप्रिंट, मुंह के स्वैब या सिर के बालों से डीएनए नमूने इकट्ठे करती है। हालांकि, ब्लड और यूरीन के सैंपल या दांतों की छाप (डेंटल इंप्रेशंस) के लिए ब्रिटिश पुलिस को संदिग्ध और एक सीनियर पुलिस अफसर से इजाजत लेना जरूरी है।

अमेरिका में बायोमेट्रिक डीटेल को लेकर फेडरल कानून और राज्यों के कानून में थोड़ा अंतर है। यूएस फेडरल लॉ के तहत 2004 से ही दोषियों का डीएनए सैंपल लिया जाना जरूरी है। सिर्फ दोषियों के ही नहीं, गिरफ्तार किए गए हर शख्स या वे आरोपी जिनके खिलाफ चार्जशीट फाइल की जा चुकी हो, उनके भी डीएनए सैंपल लिए जाने जरूरी हैं। इतना ही नहीं, डीएनए सैंपल देने में आनाकानी अपने आप में अपराध है।

उदाहरण के तौर पर लॉस ऐंजिलिस में, ’14 साल से ज्यादा उम्र के उन सभी व्यक्ति का फिंगरप्रिंट लिया जाएगा जो किसी भी अपराध के लिए गिरफ्तार किए गए हों (वॉरंट के साथ या वॉरंट के बिना भी) या उनके खिलाफ केस दर्ज किया गया हो।’ गंभीर अपराध के संदिग्धों के लिए डीएनए सैंपल देना अनिवार्य है।

न्यू यॉर्क सिटी में पुलिस संदिग्धों का थाने में फिंगरप्रिंट लेती है और उनकी तस्वीर खींचती है। वॉशिंगटन राज्य में पुलिस को और ज्यादा अधिकार है। जिन मामलों में फोटो या फिंगरप्रिंट लिया जाना जरूरी है, उनमें पुलिस अफसर अपनी मर्जी के हिसाब से फोटो और फिंगरप्रिंट के अलावा हथेलियों की छाप, पैर के तालुओं की छाप, पैर के अंगूठों की छाप या पहचान से जुड़े दूसरे आंकड़े भी इकट्ठे कर सकते हैं।

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